पूंजी ढांचा  (Capital Structure)

एक उपक्रम की कुल पूंजी में भिन्न भिन्न दीर्घकालीन वित्तीय स्त्रोतों में प्रत्येक स्त्रोत का अनुपात निश्चित करना पूंजी ढांचा कहलाता है। दीर्घकालीन वित्तीय स्त्रोतों के अंतर्गत स्वामी कोष एवं ऋण कोष को सम्मिलित किया जाता है। तथा स्वामी कोष में समता पूंजी , पूर्वाधिकार पूंजी , संचय एवं आधिक्य व ऋण कोष में दीर्घकालीन ऋण व ऋणपत्र आदि को शामिल किया जाता है। दीर्घकालीन वित्तीय स्त्रोतों में कुछ स्त्रोत से वित्त की व्यवस्था करना अधिक जोखिमपूर्ण होता है जबकि कुछ अन्य स्रोतों की लागत अधिक होती है। जैसे ऋणपत्र अधिक जोखिमपूर्ण व समता अंश पूंजी अधिक खर्चीला वित्तीय स्त्रोत है। 




Capital Structure
Capital Structure


पूंजी ढांचे का महत्व

पूंजी ढांचे के निर्णय में विभिन्न दीर्घकालीन वित्तीय स्त्रोतों से वित्त व्यवस्था के अनुपातों को निर्धारित किया जाता है। फर्म का मूल्य अधिकतम करने के लिए पूंजी ढांचे का निर्धारण इस प्रकार किया जाता है। ताकि पूंजी की लागत कम से कम हो जाये तथा फर्म का मूल्य अधिकतम हो जाए। 

1. पूंजी ढांचे के माध्यम से फर्म में पूंजी की लागत का निर्धारण किया जाता हैं। 


2. पूंजी ढांचे के माध्यम से फर्म में निहित जोखिम का निर्धारण किया जाता है। 


3. पूंजी ढांचे सम्बन्धी निर्णयो का प्रभाव स्वामितवो के फर्म पर नियंत्रण सम्बन्धी अधिकारियों पर पड़ता है। 


4. पूंजी ढांचे से फर्म की तरलता व लोचशीलता प्रभावित होती है। 



पूंजी ढांचे के सिद्धान्त

एक फर्म के पूंजी ढांचे सम्बन्धी निर्णय व बाजार मूल्य के मध्य सम्बन्ध की व्याख्या पूंजी ढांचे की विचारधाराओ के द्वारा की जाती है। परंतु इस सम्बंध में भिन्न भिन्न विद्वानों के भिन्न मत है। कुछ विद्वानों का मानना है कि पूंजी ढांचा निर्णय व फर्म के बाजार मूल्य में घनिष्ठ सम्बन्ध है तथा कुछ अन्य विद्वानों का मानना है कि पूंजी ढांचा निर्णय व बाजार फर्म के बाजार मूल्य में कोई सम्बन्ध नही है। ये विचारधाराएं इस प्रकार है -


1) शुद्ध आय विचार धारा - शुद्ध आय विचारधारा का प्रतिपादन डेविड डुरंड ने किया है उनका मानना है कि पूंजी ढांचे के निर्णय व फर्म के बाजार मूल्य में गहरा सम्बन्ध है वित्तीय लीवरेज में जिस मात्रा व जिस दिशा में परिवर्तन होता है उतनी ही मात्रा व उसी दिशा में फर्म की पूंजी की औसत लागत व फर्म के मूल्य में भी परिवर्तन होता है। 


2) शुद्ध संचालन आय विचारधारा - इस विचारधारा का प्रतिपादन भी डेविड डुरंड द्वारा किया गया है। इस विचारधारा के अनुसार यह स्पष्ट किया गया है कि पूंजी ढांचे के निर्णय का फर्म के मूल्य पर कोई प्रभाव नही पड़ता। अतः यह विचारधारा शुद्ध आय विचारधारा से विपरीत मत रखती है। 


3) परम्परागत विचारधारा - पूंजी ढांचे की परम्परागत विचारधारा , शुद्ध आय विचारधारा और शुद्ध आय संचालन विचारधारा के बीच का मार्ग है। परम्परागत विचारधारा पूंजी ढांचे की शुद्ध आय विचारधारा के इस तथ्य का समर्थन करती है कि वित्तीय लीवरेज की मात्रा में परिवर्तन करने से पूंजी की कुल लागत व फर्म का मूल्य दोनों पर प्रभाव पड़ता है। तथा इस तथ्य का समर्थन नही करती है कि किसी भी सिमा तक ऋणों का प्रयोग करते रहने पर पूंजी की कुल लगत कम हो जायेगी व फर्म का मूल्य बढ़ता जाएगा। 


4) मिल्लर विचारधारा - करो को अनदेखा करने पर मिल्लर विचारधारा पूंजी ढांचे की शुद्ध संचालन आय विचारधारा के समान हो जाती है इस विचारधारा के अनुसार पूंजी ढांचे के निर्णय का प्रभाव फर्म की पूंजी की कुल लागत व फर्म के मूल्य पर नही पड़ता है। इस विचारधारा के अंतर्गत इस तथ्य की व्याववहारिकता का उचित प्रमाण प्रस्तुत किया गया है। जिसके कारण इस विचारधारा को शुद्ध संचालन आय विचारधारा से अधिक अच्छा माना जाता है। 

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