ठेका लागत विधि(CONTRACT COSTING)
कुछ कार्य इस प्रकार के होते है जो कारखाने में न किये जाकर कार्य स्थान पर ही सम्पन्न किये जाते हौ। इन कार्यों को पूरा कराने के लिए कार्य कराने वाला किसी ऐसे व्यक्ति के साथ जो कार्य करने का उत्तरदायी अपने ऊपर लेता है, एक लिखित या मौखिक समझौता करता है। इस समझौते को ठेका, ठेका देने वालों को ठेकेदाता तथा ठेका कार्य करने वाले को ठेकेदार कहा जाता है। कार्य को करने के प्रतिफल के रूप ने भुगतान की जाने वाली राशि को ठेका मूल्य कहते है। यह मूल्य ठेकेदाता एवं ठेकेदार द्वारा पूर्व निश्चित कर लिया जाता है। ठेका पूर्ण होने पर ठेकेदाता द्वारा ठेकेदार को ठेका मूल्य का पूर्ण भुगतान कर दिया जाता है। यह प्रायः छोटी अवधि के ठेकों पर सम्भव है। दीर्घकालीन ठेको को पूर्ण होने में कई वर्ष लग जाते है अतः इन ठेको पर ठेका मूल्य का जितना कार्य पूर्ण होता जाता है उसका भुगतान धीरे धीरे किया जाता है।
Contract Costing |
ठेका लागत विधि के प्रमुख तत्व(Features of Contract Costing)
1) ठेका पर कार्य ठेका स्थल पर किये जाते है जो ठेकेदार के व्यवसाय स्थल से अलग होता है।
2) ठेका बड़े आकार का कार्य होता है जो एक से अधिक लेखांकन वर्षों में पूर्ण हो सकता है।
3) प्रत्येक ठेका एक अलग लागत निर्धारण के लिए पृथक इकाई होती है।
4) ठेकेदाता द्वारा दिये गए कार्य आदेशानुसार ठेके को पूर्ण किया जाता है अर्थात उसके द्वारा बताए गए निर्देश , प्रकार, किस्म, रंग, रूप व डिज़ाइन आदि का विशेष ध्यान रखा जाता है।
5) ठेका एक निश्चित प्रतिफल के बदले में किया जाता है जिसे ठेका मूल्य कहते है।
6) ठेकेदार को भुगतान किस्तो में किया जाता है जो पूर्ण कार्य के प्रमाणित होने के पश्चात होता है। कार्य को प्रमाणित ठेकेदाता के इंजीनियर, विधेषज्ञ या आर्किटेक्ट द्वारा किया जाता है।
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