प्रवर्तक क्या होता है प्रवर्तक की विशेषताएं और कार्य जाने


हेलो दोस्तों। 

आज के पोस्ट में हम प्रवर्तक के बारे में जानेंगे और इसकी विशेषताओ और महत्व को भी जानेंगे। 


प्रवर्तक (Promoters)

कम्पनी के निर्माण कार्य के जन्मदाता प्रवर्तक के नाम से पुकारे जाते है। प्रवर्तक नए विचार की खोज करके उसे व्यवहारिक रूप देने वाला व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह होता है। मतलब की वह व्यक्ति जिसके मस्तिष्क में सबसे पहले कंपनी के निर्माण की विचारधारा आती है, व्यापार सम्बन्धी अनुसन्धान करता है, किसी निश्चित योजना के अनुसार कंपनी का निर्माण करता है, जरूरी सामग्री एकत्रित करता है, अपने पास से प्रारम्भिक व्यय करता है। तथा कंपनी का संचालन करता है प्रवर्तक कहलाता है। इस प्रकार वह अपने ऊपर भारी जोखिम लेता है, क्योंकि यदि कंपनी असफल रहती है, तो समस्त हानि का भार उसी को सहन करना पड़ेगा।



प्रवर्तक क्या होता है प्रवर्तक की विशेषताएं और कार्य जाने
प्रवर्तक क्या होता है प्रवर्तक की विशेषताएं और कार्य जाने




प्रवर्तक की विशेषताएं (characteristics of promoter)

1. प्रवर्तक एक व्यक्ति है - प्रवर्तक को एक व्यक्ति कहा गया है लेकिन यहां पर व्यक्ति से तातपर्य केवल एकाकी व्यक्ति से ही नही है। एक फर्म, संघ तथा कम्पनी भी प्रवर्तक का कार्य कर सकती है। 


2. कंपनी के निर्माण का विचार उतपन्न करता है - प्रवर्तक सबसे पहले कम्पनी के व्यवसाय के स्वरूप, स्वभाव, स्थान, पूंजी आदि के सम्बंध में विचार करता है लेकिन ऐसा करते समय विचारों की व्यवहारिकता को भी ध्यान में रखता है।


3. विचार को व्यवहारिक स्वरूप देना - केवल कंपनी के निर्माण का विचार उतपन्न होने से प्रवर्तन नही हो जाता। इस विचार को व्यवहारिक स्वरूप देने के लिए प्रवर्तक अपने साधन लगाने के अतिरिक्त विशेषज्ञों की सेवाओं तथा अन्य व्यक्तियों के साधनों की भी सहायता लेता है। 


4. प्रवर्तक का नाम नही कार्य महत्वपूर्ण है - कोई भी व्यक्ति जो प्रवर्तक का कार्य करता है वैधानिक दृष्टि से प्रवर्तक के रूप में उत्तरदायी होता है, वह चाहे जिस नाम से सम्बोधित किया जाता हो, अर्थात प्रवर्तक का नाम नही, कार्य महत्वपूर्ण होता है। 


5. प्रस्तावित कम्पनी में प्रवर्तक का अंशधारी होना जरूरी नही - यह जरूरी नही है कि प्रवर्तक जिस कम्पनी का प्रवर्तन करते है उसमें अंशधारी या प्रबन्धक भी बने। वे अपने कार्यो के लिए कंपनी से पारिश्रमिक प्राप्त करके अलग भी हो सकते है। 


इन विशेषताओ से यह निष्कर्ष निकलता है कि यह जरूरी नही की प्रवर्तक एक व्यक्ति ही हो। एक फर्म, एक कम्पनी या इसी प्रकार की कोई संस्था प्रवर्तक के रूप में कार्य कर सकती है। 



प्रवर्तक के कार्य ( functions of promoters)

एक कम्पनी या तो पूर्णत नए सिरे से आरम्भ होती है या चालू कम्पनी को क्रय करती है या विद्यमान कम्पनियो को संयोजित किया जाता है। इन सभी दशाओ में एक प्रवर्तक को विविध कार्य करने पड़ते है। कौन कौन से कार्य प्रवर्तकों को करने पडते है यह उनके द्वारा स्थापित की जाने वाली कम्पनी के स्वभाव, वैधानिक प्रतिबन्ध तथा उस समय की परिस्थितियों पर निर्भर करता है। इसलिए कम्पनी प्रवर्तक के कार्य का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। इसके द्वारा सामान्य रूप से किये जाने वाले कार्यों का वर्णन इस प्रकार है चलो समझते है -


1. कम्पनी के निर्माण का विचार बनाना और उसकी सम्भावनाओ को देखना। 

2. कम्पनी को आरम्भ करने से पहले की समस्याओं जैसे स्थान, कच्चा माल इत्यादि पर विचार करना। 

3. यदि कम्पनी का निर्माण किसी विद्यमान विचार को खरीद कर करना है तो विक्रेताओं के साथ ठहराव करना। 

4. प्रथम संचालको के रूप में कार्य करने वाले व्यक्तियों का चुनाव करना तथा उनकी सहमति प्राप्त करना। 

5. कम्पनी का नाम, उदेश्य एवं पूंजी का निर्धारण करना।

6. कम्पनी के लिए बैंकर्स, अंकेक्षक, दलाल एवं वैधानिक सलाहकार आदि चुनना। 

7. पार्षद सीमानियम, पार्षद अंतर्नियम एवं प्रविवर्ण तैयार करना।

8. कम्पनी के रजिस्ट्रेशन के समय उपस्थित रहना।

9. सम्पति विक्रेता, अभिगोपक तथा प्रबन्ध अभिकर्ता इत्यादि के साथ प्रारम्भिक अनुबंध करना। 

10. प्रविवर्ण के प्रकाशन व विज्ञापन का प्रबन्ध करना। 

11. समामेलन प्रमाण पत्र रजिस्ट्रार से प्राप्त करना।

12. प्रारम्भिक व्ययों का भुगतान करना। 

13. पूंजी निर्गमन की व्यवस्था करना। 

14. न्यूनतम चंदे का प्रारम्भ करना।

15. अंशो व ऋण पत्रों का आबंटन करना। 

16. कम्पनी के कार्यालय का उचित प्रबंध करना। 

17. व्यापार आरम्भ करने का प्रमाण पत्र प्राप्त करना। 

संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि कम्पनी के प्रारम्भ से लेकर व्यवसाय आरम्भ करने तक जो भी आवश्यक कार्य है वे प्रवर्तक द्वारा ही सम्पादित किये जाते है। 

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