कम्पनी का प्रवर्तन और प्रवर्तन की अवस्थाएं


हेलो दोस्तों। 

आज के पोस्ट में हम बात करेंगे जी कम्पनी का प्रवर्तन क्या होता है और प्रवर्तन की अवस्थाएं क्या है। चलो शुरू करते है। सबसे पहले कम्पनी के प्रवर्तन के बारे में जानेंगे।


कंपनी का  प्रवर्तन (Promotion of company)

कम्पनी निर्माण में प्रवर्तन पहली सीढ़ी है जिसके आधार पर कंपनी के निर्माण के लिए जरूरी कार्यवाही की जाती है। प्रवर्तन का अर्थ आरम्भ से है। कंपनी का निर्माण प्रारम्भ करने से पहले कुछ लोग मिलकर किसी व्यवसाय को शुरू करने की कल्पना करते है। अर्थात उन लोगो के मन मे व्यावसायिक अवसर के बारे में विचार आता है और उस पर वे गहन अध्ययन व जांच पड़ताल करते है तथा व्यवसाय विई शुरुआत की योजना बनाते है तथा इन प्रश्नों पर विचार करते है कि किये जाने वाले व्यवसाय का क्षेत्र क्या होगा, इसकी पूंजी किस प्रकार प्राप्त होगी, इसके लिए सामग्री, श्रम, मशीनें आदि कहाँ से प्राप्त होगी, इसकी स्थापना के लिए क्या क्या वैधानिक कार्यवाहियां करनी होगी। इस कंपनी की स्थापना या निर्माण करने में या उसे वैधानिक अस्तित्व प्रदान करने में जो लोग सहायता करते है उन्हें हम प्रवर्तक कहते है। और उस सम्बन्ध में उन्हें जो भी क्रियाए करनी पड़ती है उन सभी क्रियाओं को ही प्रवर्तन कहते है। 




कम्पनी का प्रवर्तन और प्रवर्तन की अवस्थाएं
कम्पनी का प्रवर्तन और प्रवर्तन की अवस्थाएं






प्रवर्तन की अवस्थाएं (Stages of Promotion)

1. विचार की खोज - सर्वप्रथम किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के मन मे यह विचार आता है कि अमूक व्यवसाय करके लाभ कमाया जा सकता है। उस व्यवसाय में किसी वस्तु या सेवा का उत्पादन या व्यापार हो सकता है। व्यवसाय के संगठन के स्वरूप के सम्बंध में भी विचार कर लिया जाता है। बड़े आकार का व्यवसाय होने पर उसे कंपनी संगठन का रूप देने का निर्णय किया जाता है। 


2. विस्तृत छानबीन - विचार की खोज के बाद छानबीन की जाती है की क्या व्यवसाय सफलतापूर्वक ढंग से चलाया जा सकता है? इसके लिए कितनी पूंजी जी जरूरत होगी? उसे किन साधनों से प्राप्त किया जायेगा? कच्चा माल कहाँ से किस मूल्य पर उपलब्ध हो सकेगा? किस प्रकार के श्रमिकों की जरूरत होगी उसके और वे उपलब्ध हो सकेंगे या नही? इसके लिए कंपनी का आकार, भवन निर्माण एवं उपयुक्त जगह की तलाश, बाजार का पता लगाना, सरकार की उद्योग नीति, आदि को जान लेना जरूरी है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए विशेषज्ञों की सहमति ली जाती है।


3. आवश्यक सामग्री एकत्रित करना - विस्तृत जांच पड़ताल पूरी हो जाने के बाद प्रवर्तक कंपनी के निर्माण के लिए जरूरी सामग्री एकत्रित करने प्रारम्भ कर देता है। इस कार्य के लिए वह विभिन्न विशेषज्ञों और संस्थाओ से सम्पर्क स्थापित करता है और अनुबंध आदि करता है। 


4. धन की व्यवस्था करना - सभी जरूरी तत्वों की व्यवस्था तथा समन्वय करने के बाद संस्था को चालू करने के लिए आवश्यक वित्त की व्यवस्था करनी होती है। धन किसी भी व्यवस्थाया उद्योग का जीवन रक्त होता है। पर्याप्त वित्त के अभाव में अच्छी से अच्छी योजनाये फाइल्स तक सीमित रह जाती है। डर और ब्रेडस्ट्रीट ने तुलनात्मक अध्ययन करके पता लगाया है कि अनेक कम्पनिया इसलिये असफल रही है क्योंकि उनके पास चालू पूंजी पर्याप्त न थी। अतः आरम्भ से ही उपयुक्त योजना को लागू करने के लिए आवश्यक पूंजी के प्रबन्ध में सही सही अनुमान लगा लेना चाहिए और उसकी प्रप्ति के प्रस्तावित साधनों का भी अच्छी तरह से अध्यन कर लेना चाहिए। 

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