कंपनियों का एकीकरण, संविलियन और पुनः निर्माण के बारे में जानकारी


हेलो दोस्तों। 

आज के पोस्ट में हम कंपनियों का एकीकरण, संविलियन और पुनः निर्माण के बारे में समझेंगे। 


एकीकरण (Amalgamation) - जब समान प्रकृति का व्यवसाय करने वाली दो या दो से अधिक कंपनियां आपस मे मिलकर एक नई कंपनी का गठन कर ले तो इसे एकीकरण कहा जाता है। यह बात ध्यान रखना दोस्तो की यह नई कंपनी एकीकरण में सम्मिलित होने वाली सभी कपनियों का व्यवसाय क्रय कर लेती है। 


संविलयन (Absorption) - जब पहले से विद्यमान किसी कंपनी द्वारा किसी अन्य विद्यमान कंपनी का क्रय कर लिया जाए तो इसे संविलयन कहा जाता है। इस प्रकार संविलयन के अंतर्गत किसी नई कंपनी का निर्माण नही किया जाता है। 




कंपनियों का एकीकरण, संविलियन और पुनः निर्माण के बारे में जानकारी
कंपनियों का एकीकरण, संविलियन और पुनः निर्माण के बारे में जानकारी





एकीकरण और संविलयन के उद्देश्य 
(Objectives of Amalgamation and absorption) 

1. एकीकरण होने वाली कंपनियां के मध्य परस्पर प्रतियोगिता एवं द्वेषभाव को समाप्त करना। 

2. बड़े पैमाने पर उत्पादन करने के फलस्वरूप होने वाली बचतो को प्राप्त करना। 

3. पूंजी में वृद्धि करना ताकि उन लक्ष्यों एवं योजनाओं को पूरा किया जा सके जिनके लिए धन की जरूरत है। 

4. वस्तु बाजारों पर बेहतर नियंत्रण स्थापित करने के लिए। 

5. उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं को अधिक व्यापक क्षेत्रो में वितरित करने के लिए।
 
6. ऊंचे वेतन वाले अत्यधिक कार्यकुशल व्यक्तियो की सेवाओं का लाभ उठाने के लिए। 




पुनः निर्माण - पुनः निर्माण एकीकरण और संविलयन से बिल्कुल अलग प्रकृति का होता है। इसका मुख्य उद्देश्य दो कंपनियों को आपस मे मिलाना नही होता है, बल्कि एक विद्यमान कंपनी द्वारा जिसे बहुत अधिक हानि हो चुकी है, इन हानियों को अपलिखित करने के लिए खुद को पुनः संगठित करना है। 


पुनः निर्माण दो प्रकारः का हो सकता है। 

(A). बाह्य पुनः निर्माण 

(B). आंतरिक पुनः निर्माण


(A). बाह्य पुनः निर्माण - यह एकीकरण से काफी मिलता जुलता होता है। परन्तु यह पूर्णतया एकीकरण की तरह नही होता है। इसके अंतर्गत एक नई कंपनी की स्थापना किसी ऐसी कपंनी को क्रय करने के लिए की जाती है जिसे बहुत अधिक हानियाँ हो चुकी हो और जो आर्थिक संकट में होती है। व्यवसाय को बेचने के बाद पुरानी कंपनी बन्द हो जाती है। बाह्य पुनः निर्माण के अंतर्गत स्थापित नई कंपनी का नाम भी सामान्यतः पुराने कंपनी से काफी मिलता जुलता होता है। और इसके अंशधारी भी सामान्यतः वही होते है जो पुरानी कंपनी के थे। 


बाह्य पुनः निर्माण के उद्देश्य

1. पिछले वर्षों की संचित हानियों को अपलिखित करना तथा सम्पतियों का मूल्य कम करके उन्हें वास्तविक मूल्य पर दिखाना। 


2. अंशधारियो को कंपनी की वास्तविक कीमत का प्रतिनिधित्त्व करने वाले उचित मूल्य के अंश देना। 


3. भविष्य में होने वाली हानियों से कंपनी को बचाना। 


4. कंपनी के पार्षद सीमानियम को पूरी तरह से परिवर्तित करना।
 

5. नए अंश जारी करके कंपनी को नई अंश पूंजी उपलब्ध कराना। 



(B) आंतरिक पुनः निर्माण - इसके अंतर्गत एक विद्यमान कंपनी खुद को आंतरिक रूप से पुनः संगठित करती है। कंपनी द्वारा ऐसा पुनः संगठन पूंजी संरचना में परिवर्तन तथा अंश पूंजी में कटौती करके किया जाता है। इसके अंतर्गत स्वयं को पुनः संगठित करने वाली कंपनी पूंजी कटौती की योजना बनाती है। पूंजी कटौती की योजना के अंतर्गत कंपनी द्वारा अंश पूंजी और कभी कभी लेनदारों तथा ऋणपत्रों को भी इनके वास्तविक मूल्य तक कम कर दिया जाता है। 


आंतरिक पुनः निर्माण के उद्देश्य

1. पिछले वर्षों की संचित हानियों एवं कृत्रिम सम्पतियों जैसे निर्गमन पर कटौती, प्रारम्भिक व्यय आदि को समाप्त करके एवं स्थिति विवेन में अधिक मूल्य पर दिखाई गई सम्पतियों का मूल्य कम करके कंपनी की स्थिति का सच्चा एवं उचित चित्र प्रस्तुत करना। 


2. अंशो के अंकित मूल्य को कम करके उन्हें उनके वास्तविक मूल्य पर लाना।


3. अंशधारियो को उनके द्वारा कंपनी में किये गए विनियोग पर उचित प्रतिफल का विश्वास दिलाना जिससे कि उनमें कंपनी के प्रति खोई हुई विश्वास की भावना पुनः उतपन्न हो सके। 

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