संचालको की वैधानिक स्थिति (Legal position of directors in hindi)


हेलो दोस्तों। 

आज के पोस्ट में हम संचालको की वैधानिक स्थिति के बारे में समझेंगे। 

दोस्तों एक प्रशन बार बार आपके दिमाग मे घूमता होगा कि संचालको की कंपनी में क्या स्थिति है और कंपनी से उसका क्या सम्बन्ध होता है। तो दोस्तों के आपको बताता हूं कि संचालक कंपनी का प्रबन्ध संचालन करते है और उन्हें इस योग्य बनाने के लिए अधिनियम ने कुछ व्यापक अधिकार भी प्रदान किये है। वास्तव में संचालको और कंपनी के पारस्परिक सम्बन्ध को परिभाषित करना बहुत ही कठिन काम होता है। इस सम्बंध में दो मत है एक मत के अनुसार वे कंपनी के प्रन्यासी होते है और दूसरे मत के अनुसार वे कंपनी के एजेंट है। उनका कंपनी के साथ एक विश्वासश्रित सम्बन्ध होता है। और ये अन्तर्नियमो तथा अधिनियम द्वारा अधिकारों के अधीन कंपनी की पूंजी और सम्पतियों का प्रबन्ध करते है। 




संचालको की वैधानिक स्थिति
संचालको की वैधानिक स्थिति





किसी भी कंपनी में संचालको की सही स्थिति का चित्रण तो सम्भव नही है पर उपयोगी दृष्टिकोणों के आधार पर इनकी स्थिति का बहुत से शीर्षकों के अंतर्गत अध्यन किया जा सकता है :-


1. प्रन्यासी के रूप में संचालको की स्थिति - यॉर्क एंड नार्थ मिडलैंड रेल के. बनाम हडसन के मामले में निर्णय देते हुए कहा गया है कि संचालक वे व्यक्ति है जो अंशधारियो के हित के लिए कंपनी के मामलों का प्रबन्ध करने के लिए चुने जाते है। यह चुनाव एक विश्वास का पद है, और यदि वे इसे स्वीकार करते है तो उन्हें इसको ततपरता से निभाना चाहिए। इस प्रकार संचालको का पद एक विश्वास का पद है। कंपनी की सारी सम्पतियाँ, पूंजी, धनराशि तथा अन्य मामले उन्हें इसलिए सौपें जाते है कि वे उनका प्रन्यासी की भांति प्रबन्ध करें। विश्वाश्रित व्यक्तियों की भांति कार्य करते हुए उनका कर्तव्य हौ की वे अपने निजी हितों का ध्यान रखें। यदि वे अपने पद का दुरुपयोग करते हौ तो उन्हें संयुक्त व पृथक दोनो तरह से दायी ठहराया जा सकता है। 


2. संचालक कंपनी के अभिकर्ता के रूप में - आधारभूत रूप में कंपनी एक कृत्रिम व्यक्ति है। इसलिए वह स्वयं कोई कार्य नही कर सकती। अतः कंपनी की और से संचालक कंपनी के अभिकर्ता के रूप में कार्य करते है। कंपनी के अन्तर्नियमो व वैधानिक प्रतिबन्धों के अधीन संचालक जिस कंपनी के लिए कार्य करते है, उसके लिए वे एजेंट कहे जाते है और कंपनी के साथ उनके सम्बन्ध एजेंसी के कानूनों द्वारा शामिल होते है। 


3. संचालक कंपनी के एक प्रबन्ध साझेदार के रूप में - संचालको को कंपनी के प्रबन्ध साझेदारों के रूप में भी माना जाता है क्योंकि वे कंपनी के प्रबन्ध के कार्य संचालन के लिए पारिश्रमिक प्राप्त करते है और साथ ही साथ वे उस कंपनी के स्वयं अंश भी लेते है। इसलिए वे कंपनी के साझेदार भी है और कंपनी के प्रबन्धको को नियुक्त करने का अधिकार भी रखते है। अतः उनको कंपनी के प्रबन्ध साझेदार भी कहा जा सकता है। 


4. संचालक कंपनी के एक अधिकारी के रूप में - कंपनी अधिनियम के अनुसार, संचालक कंपनी का एक पदाधिकारी होता है इसलिए यदि वह कंपनी अधिनियम जी व्यवस्थाओं का उल्लंघन करता है तो उसको कारावास की सजा या आर्थिक दंड या दोनों से दण्डित किया जा सकता है। 


5. संचालक कंपनी के एक कर्मचारी के रूप में - संचालक और कंपनी के बीच उनकी नियुक्ति के सम्बंध में एक अनुबंध होता है जिसके आधार पर संचालक एक निश्चित समय तक कंपनी को अपनी सेवाएं समर्पित करते है और उसके बदले में वे कंपनी से पारिश्रमिक प्राप्त करते है। इस प्रकार संचालक को कंपनी का कर्मचारी माना जा सकता है। 

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