कंपनियो के सदस्यों के अधिकार व दायित्व जाने


हेलो दोस्तों। 

आज के पोस्ट में हम जानेंगे कि सदस्यों के क्या अधिकार और दायित्व होते हैं ?


सदस्यों के अधिकार (Rights of Members)

किसी कंपनी के अंश खरीदने के बाद कंपनी व अंशधारी के बीच मे जिस अनुबंध की उतपत्ति होती है उसके परिणामस्वरूप अंशधारी को पार्षद सीमानियम व अंतर्नियम और सामान्य अधिनियम के अधीन कुछ अधिकार प्राप्त होते हैं। जो इस प्रकार है 


1. वैधानिक अधिकार - वह अधिकार जो कंपनी अधिनियम के अंतर्गत सदस्यों को प्राप्त होते है, वैधानिक अधिकार कहलाते है। ऐसे अधिकार सीमानियम व अन्तर्नियमो की किसी भी व्यवस्था के अधीन छीने या संशोधित नही किये जा सकते। कंपनी अधिनियम के अधीन सदस्यों के अनेक अधिकार है। इनमे से कुछ अधिकार सदस्य द्वारा व्यक्तिगत रूप में प्रयोग किये जा सकते है और कुछ सामूहिक रूप में। 



कंपनियो के सदस्यों के अधिकार व दायित्व जाने
कंपनियो के सदस्यों के अधिकार व दायित्व जाने



2. सदस्यों के सामूहिक अधिकार - सदस्यों के सामूहिक अधिकारों से आशय उन अधिकारों से है जो कि सदस्यों द्वारा केवल सामूहिक रूप से ही प्रयोग किये जा सकते है व्यक्ति रूप से नही। ऐसे अधिकारों में कुछ अधिकारों इस प्रकार के है जोकि केवल साधारण बहुमत से प्रयोग किये जाते है, कुछ अधिकार वशेष बहुमत से तथा कुछ अन्य अल्पमत से प्रयोग किये जाते है।


3. अल्पसंख्यक सदस्यों के अधिकार - साधारणतया कंपनी के अधिसंख्यक सदस्य ही कंपनी के निर्णयों को सामूहिक रूप से करने का अधिकार रखते है किंतु कंपनी अधिनियम में यह व्यवस्था भी है कि अन्याय एवं कुप्रबंध की स्थिति में अल्प संख्यक सदस्य भी अपने हितों की रक्षा के लिए न्यायालय एवं केंद्रीय सरकार से प्रार्थना करने का अधिकार रखते है। इस बात की संभावना होती है कि कंपनी के बहुसंख्यक सदस्य अन्यायपूर्ण व दमनकारी आचरण करें।


4. प्रलेखीय अधिकार - इन अधिकारों में वे अधिकार शामिल है जो कि कंपनी के सीमानियम या अन्तर्नियमो द्वारा एक सदस्य को प्राप्त होते हौ जैसे लाभांश पाने का अधिकार, समापन की दशा में सम्पत्तियों में भाग लेने का अधिकार। 


5. कानूनी अधिकार - इन अधिकारों से आशय ऐसे अधिकारों से है जो कि एक सदस्य को देश के सामान्य नियमो के अंतर्गत प्राप्त होते है, जैसे कपट की दशा में वाद प्रस्तुत करने का अधिकार आदि। 



सदस्यों का दायित्व (Liabilities of members)

1. अंशो के मूल्य का भुगतान करने का दायित्व - प्रत्येक व्यक्ति जिसने कंपनी के साथ सदस्य बनने का ठहराव किया है, पार्षद सीमानियम के अंतर्गत अंशो के मूल्य का भुगतान करने के लिए दायी है। यदि अनुबंध कपटपूर्ण मिथ्यावर्णन द्वारा प्रेरित होकर किया गया है। तो वह निश्चित समय मे अनुबंध को समाप्त करने का अधिकारी होगा। 


2. असीमित कंपनी में दायित्व - यदि कंपनी असीमित दायित्व वाली है तो कंपनी के ऋणों का भुगतान करने के लिए प्रत्येक सदस्य का व्यक्तिगत दायित्व होता है। 


3. गारंटी द्वारा सीमित कंपनी में दायित्व - एक गारंटी द्वारा सीमित कंपनी की दशा में एक सदस्य का दायित्व उसकी गारंटी की सीमा तक होता है। 


4. सदस्यों की संख्या वैधानिक न्यूनतम से कम होने पर - जब कभी कंपनी की सदस्य संख्या कंपनी अधिनियम द्वारा निर्धारित न्यूनतम संख्या से कम रह जाती है और इस स्थिति में कंपनी 6 महीने से अधिक तक व्यापार जारी रखती है तो उन सदस्यों को दायित्व असीमित हो जाती है। 


5. हस्तान्तरण पर दायित्व - अंशो के हस्तांतरण पर , जब तक सदस्यों के रजिस्टर में हस्तान्तरनकर्ता के स्थान पर हस्तान्तरिती का नाक प्रविष्ट नही कर दिया जाता तब तक हस्तान्तरनकर्ता ही सदस्य के रूप में उत्तरदायी होगा।


6. कंपनी के समापन पर - यदि अंशो के हस्तांतरण के एक वर्ष के एक वर्ष के भीतर कंपनी का समापन हो जाता है तो अंशो के वर्तमान धारक के साथ साथ हस्तान्तरनकर्ता का नाम भी अंशो की अदत्त राशि के सम्बंध में सूची 'ब' में लिखा जाता है तथा आवश्यकता पड़ने पर उससे राशि वसूल की जाती है। 


7. सदस्य के रूप में दायित्व - यदि किसी व्यक्ति ने कंपनी के साथ न तो सदस्य होने का समझौता किया है और न ही वह सदस्य बनना चाहता है, फिर भी उसका नाम सदस्यों के रजिस्टर में लिख दिया गया है और वह कोई भी आपत्ति नही करता, तो वह सदस्य के रूप में उत्तरदायी होगा।


8. सदस्यों की सहमति द्वारा दायित्व में वृद्धि - यदि अधिनियम की व्यवस्था के अनुसार किसी सदस्य के दायित्व में वृद्धि होती है तो सदस्य की सहमति के बाद उसका दायित्व होता है वरना नही। 


9. कृत्रिम नाम मे अंश लेने पर - अंश लेने वाला व्यक्ति ही भुगतान, आदि के लिए उत्तरदायी होता है। 

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