कंपनी manager के बारे में जानकारी


हेलो दोस्तों। 

आज के पोस्ट में हम प्रबन्धक के बारे में जानेंगे। 


प्रबन्धक (Manager) 

कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 2(53) के अनुसार प्रबन्धक से आशय उस व्यक्ति से है जो संचालक मंडल के निरीक्षण, नियंत्रण तथा निर्देशानुसार कंपनी के पूर्ण या अधिकांश कार्यों का प्रबन्ध करता है। इस परिभाषा में संचालक का भी समावेश किया जाता है, चाहे उसे किसी नाम से पुकारा जाता है तथा उसके साथ कोई भी अनुबंध हो या नही। 


कंपनी manager के बारे में जानकारी
कंपनी manager के बारे में जानकारी 



अतः कंपनी का प्रबन्धक माना जाने के लिए व्यक्ति का कंपनी के समस्त कारोबार का प्रभारी होना जरूरी है। इस धारा के प्रयोजन के लिए केवल मात्र एक विभाग का मुखिया होना या शाखा प्रबंधक होना प्रबन्धक नही माना जाता है। गिब्सन बनाम बर्टन ने न्यायाधीश ब्लैकबर्न ने प्रबन्धक की परिभाषा देते हुए कहा कि प्रबन्धक एक ऐसा व्यक्ति है जो कंपनी के प्रबन्ध की लगभग सम्पूर्ण शक्ति रखता है, वह किसी विशेष कार्य के लिए अभिकर्ता नही है और न ही आदेशो के पालन के लिए कर्मचारी, बल्कि एक ऐसा व्यक्ति है जिसे कंपनी का कारोबार संभालने की शक्ति सौंप दी जाती है।



प्रबन्ध संचालक (Managing director)

प्रबन्ध संचालक का आशय ऐसे संचालक से है जिसे कंपनी के समझौते के आधार पर या कंपनी द्वारा साधारण सभा मे पास हुए प्रस्ताव के द्वारा या संचालक मंडल द्वारा या कंपनी के पार्षद सीमानियम या अंतर्नियम द्वारा जिसे प्रबन्ध के पर्याप्त अधिकार दिए जाते है जिन्हें की वह ऐसा न होने पर प्रयोग नही कर सकता था, इसमें ऐसा संचालक भी शामिल किया जाता है जो प्रबन्ध संचालक का स्थान ग्रहण संचालक का स्थान ग्रहण किये हुए हो, चाहे उसे किसी भी नाम से पुकारा जाता हो। 



प्रबन्धक की नियुक्ति (appointment of Manager)

कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 196 में यह प्रावधान है कि केवल एक व्यक्ति की नियुक्ति कंपनी के प्रबन्धक के रूप में हो सकती है, चाहे वह सार्वजनिक कंपनी है या निजी कंपनी।


एक प्रबन्धक की नियुक्ति के सम्बंध में वही प्रावधान है जो प्रबन्ध संचालक के लिए है। कोई फर्म या निर्गमित निकाय को कंपनी का प्रबन्धक नियुक्त नही किया जा सकता है। 



प्रबन्धक की अयोग्यताएँ (Disqualification of Manager)

कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 196 में यह प्रावधान है कि कोई कंपनी किसी व्यक्ति को प्रबन्धक नियुक्ति या नियोजित नही करेगी:

1. जो अमुक्त दिवालिया है या अथवा

2. जो पिछले पांच वर्ष में किसी समय दिवालिया घोषित किया गया है या

3. जो अपने लेनदारों का भुगतान निलंबित करता है या जिसने निलंबित कर दिया है अथवा

4. जो अपने लेनदारों से समझौता करता है या पिछले पांच वर्षों में किसी समय कर लिया है अथवा

5. जो पिछले पांच वर्षों में न्यायालय द्वारा नैतिक नीचता का दोषी ठहराया गया है। 

प्रबन्धक की नियुक्ति की प्रक्रिया तथा पारिश्रमिक के सम्बंध में वही प्रावधान है जो एक प्रबन्ध संचालक के सम्बंध में है। 



पूर्णकालिक संचालक (Whole time Director)

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 203 जिसका सम्बन्ध प्रबन्ध संचालक या प्रबन्धक की मुख्य प्रबन्धकीय कार्मिक के रूप में नियुक्ति से है, पूर्णकालिक संचालक की नियुक्ति का भी प्रावधान करती है। एक पूर्णकालिक संचालक से आशय ऐसे व्यक्ति से है जो कंपनी के पुर्णकालिन नियोजन में है। अतः वह एक प्रबन्ध संचालक की तरह दोहरे पद पर होता है- एक संचालक तथा कंपनी का एक कर्मचारी भी उसका नियोजन कही और या कारोबार के किसी अन्य कार्यों में नही हो सकता। 

Post a Comment