क्षेत्रीय असमानता के बारे में जानकारी


हेलो दोस्तों।

आज के पोस्ट में हम क्षेत्रीय असमानताओं के बारे में जानेंगे।


क्षेत्रीय असमानताएँ (Regional Imbalances)

संतुलित क्षेत्रीय विकास से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों के विकास से है। संतुलित क्षेत्रीय विकास से ही आर्थिक विकास का लाभ, भारत के सभी क्षेत्रों में रह रहे लोगों तक पहुँच सकता है। ग्यारहवीं योजना में समावेशी विकास को प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जिससे विकास का लाभ देश के सभी भौगोलिक हिस्सों में मिल सके। लेकिन भारत मे कुछ राज्य अपेक्षाकृत अधिक विकसित है और बहुत से राज्य आर्थिक रूप से पिछड़े हुए है। इस स्थिति को क्षेत्रीय असमानता कहा जाता है।




क्षेत्रीय असमानता के बारे में जानकारी
क्षेत्रीय असमानता के बारे में जानकारी




क्षेत्रीय असंतुलन के कारण (Causes of Regional Imbalances)

1. भौगोलिक घटक - कुछ क्षेत्र प्रतिकूल भौगोलिक व भौतिक स्थितियों के कारण पिछड़े हुए है। कुछ प्रदेशों की भूमि उपजाऊ नही है। अतः वहां कृषिस उत्पादकता कम है। कुछ प्रदेशों में अधिक सूखा पड़ता है। कुछ में अधिक वर्ग से बाढ़ आ जाती है। इससे भी कृषि उत्पादन कुप्रभावित होता है। कुछ प्रदेशो में बहुत ही ज्यादा गर्मी पड़ती है और कुछ के बहुत सर्दी। इस तरह जिन प्रदेशों में प्रतिकूल भौगोलिक परिस्थितियां है, वे पिछड़े रह जाते है।




2. कमजोर अधोसंरचना - कुछ प्रदेशों में आधारभूत सुविधाओं की कमी है, जैसे सड़के, रेल सुविधा, ऊर्जा निर्माण, बांध, सिचाई साधन, सार्वजनिक चिकित्सा सुविधा आदि। आधारभूत सुविधाओं की कमी किसी प्रदेश के आर्थिक विकास में बाधा है। दूसरी और जिन राज्यो में पर्याप्त आधारभूत सुविधाएं है, वहां आर्थिक विकास तीव्र गति से होता है।


3. पंचवर्षीय योजनाओं में वित्तीय साधनों का त्रुटिपूर्ण आवंटन - पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत वित्तीय साधनों का आवंटन विभिन्न राज्यों की जरूरत के अनुसार नही किया गया। कुछ राज्यों जैसे बिहार, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों को पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत प्रति व्यक्ति कम वित्तीय साधन मिले है। दूसरी तरफ पहले से विकसित राज्यों को प्रतिव्यक्ति अधिक वित्तीय साधन मिले है।


ऐतेहासिक घटक - स्वतंत्रता पूर्व अंग्रेजी सरकार ने उन्ही राज्यों के विकास पर ही जोर दिया, जिनका विकास उनके व्यापार में जरूरी था। उन्होंने महाराष्ट्र व पश्चिमी बंगाल के विकास पर ही ध्यान दिया तथा कोलकाता, मुम्बई व चेन्नई में ही औद्योगिक इकाइयो की स्थापना की। अंग्रेजी सरकार ने अन्य राज्यों के विकास पर बिल्कुल भी ध्यान नही दिया, इससे क्षेत्रीय असमानताएँ बढ़ गयी।


5. हरित क्रांति की त्रुटिपूर्ण नीति - हरित क्रांति में सुखा ग्रस्त खेती पर ध्यान नही दिया गया। हरित क्रांति से केवल उन्हीं राज्यों को ही लाभ हुआ, जिनमे सिचाई की सुविधाएं अच्छी थी, जैसे पंजाब, हरियाणा राज्य हरित क्रांति से बहुत लाभान्वित हुए, क्योकि यहां सिचाई की अच्छी सुविधाएं है। सूखा ग्रस्त राज्यो जैसे राजस्थान, मध्प्रदेश आदि के किसानों को हरित क्रांति से कोई विशेष लाभ नही है। इस तरह हरित क्रांति से क्षेत्रीय असंतुलन और बढ़ गया।


6. आधारभूत सुविधाओं की कमी - पिछड़े प्रदेशों में आधारभूत सुविधाओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, हाउसिंग, सड़के, पीने का पानी, बिजली आदि की कमी होती है। लोगों की आजीविका का मुख्य साधन कृषि होता है। आधारभूत सुविधाओं के अभाव में लोगों की योग्यताएं विकसित ही नही हो पाती, इससे उनकी आय अर्जन क्षमता कम ही रहती है।


7. वित्तीय संस्थाओं की त्रुटिपूर्ण ऋण नीति - हमारी वित्तीय संस्थाए अधिक ऋण प्रायः उन्ही राज्यों को देती है, जो पहले से विकसित है, जैसे दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा आदि। दूसरी तरफ पिछड़े राज्यों, जैसे असम, बिहार, ओडिशा, राजस्थान आदि को इन वित्तीय संस्थाओं से बहुत कम ऋण प्राप्त हुए है।


8. साक्षरता दर में अंतर - जिन राज्यों में साक्षरता दर अधिक है वहां विकास अधिक तीव्र गति से हुआ है जैसे केरल, गोवा, दिल्ली आदि। दूसरी तरफ बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि में जहां साक्षरता दर कम है, वहां विकास की गति धीमी रही है।


9. राजनैतिक अस्थिरता - कुछ राज्यों में राजनैतिक अस्थिरता के कारण विकास बहुत धीमी गति से हुआ है। राज्य सरकार के बार बार बदलने के कारण दीर्घकालीन विकास योजनाओं का निर्माण नही किया जा सकता।


10. साम्प्रदायिक दंगे - कुछ राज्यों की कानून व्यवस्था खराब है। ऐसे राज्य जिनमे अक्सर साम्प्रदायिक दंगे होते रहते है, उन राज्यों में उद्योगपति उद्योग स्थापित नही करते। इससे ये प्रदेश पिछड़े हुए ही रह जाते है।


11. राज्य सरकारों में पहल की कम भावना - कुछ राज्यों की सरकारों जैसे बिहार ओडिशा ने अपने राज्यों के विकास की और अधिक ध्यान नही दिया है। उन्होंने अपने राज्यो में अधोसंरचना के विकास पर विशेष ध्यान नही दिया, विदेशी कंपनियों को औद्योगिक इकाइयों के लिए आकर्षित नही किया। कुछ राज्य सरकारें अपने राज्यों में कानून व्यवस्था व शांति बनाए रखने तथा विकास के लिए दीर्घकालीन योजनाएं बनाने में असफल रही है। दूसरी तरफ महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा की राज्य सरकारें अपने राज्यों के विकास की और बहुत ध्यान देती है। 

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