संचार प्रक्रिया के आधारभूत प्रकार


हेलो दोस्तों।

आज के पोस्ट में हम संचार प्रक्रिया के प्रकारों के बारे में जानेंगे।


संचार प्रक्रिया के आधारभूत प्रकार (Basic Forms of Communication)

संचार प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने के लिए यह समझना जरूरी है कि यह प्रक्रिया कितने प्रकार की होती है। तो यह दो प्रकार की होती हौ

1. अशाब्दिक संचार

2. शाब्दिक संचार

(i) लिखित

(ii) मौखिक



1. अशाब्दिक संचार (Non-Verbal Communication)

यह संचार की सबसे पहली अवस्था है अशाब्दिक संचार का अर्थ है 'बिना शब्दो के' । अशाब्दिक संचार प्रक्रिया का अर्थ है "शब्दो की अनुपस्थिति में विचारों का आदान प्रदान ।" प्राचीन काल से ही जब तक मनुष्य को विचारो, तथ्यों तथा सूचनाओं का आदान प्रदान करने के लिए भाषा नही मिली थी, तब से ही अशाब्दिक संचार प्रक्रिया चलन में थी। विभिन्न आंतरिक भावों को प्रकट करने के लिए मनुष्य विभिन्न प्रकार की शारीरिक भाषा का प्रयोग करता था। नाराजगी व्यक्त करने के लिए दांतो का किटकिटाना, प्रसन्नता तथा अपनापन व्यक्त करने के लिए मुस्कुराना एवं एक दूसरे को छूना इत्यादि। अशाब्दिक संचार का प्रयोग अभी भी अपनी वरिष्ठता, निर्भरता, नापसन्द, आदर, प्यार तथा अन्य प्रकार की अनुभूतियों को प्रकट करनर के लिए किया जाता है।




Basic Forms of Communication in Hindi
Basic Forms of Communication in Hindi





अशाब्दिक संचार के कार्य (Functions of Non verbal Communication)

अशाब्दिक संचार के छः मुख्य कार्य है

1. चेतन या अचेतन रूप में सूचना उपलब्ध कराना।

2. बातचीत के प्रवाह को नियंत्रित करना।

3. भावनाओ को प्रकट करना।

4. मौखिक सन्देश को व्यवस्थित करने, बढ़ाना एवं विरोध करना।

5. दूसरे लोगों को प्रभाव या नियंत्रण में लेना।

6. कुछ कार्यों को सरल तथा सुगम बनाना।



अशाब्दिक संचार के लाभ (Advantages of Non verbal Communication)

1. विश्वसनीय - अशाब्दिक संचार विश्वसनीय है। एक व्यक्ति के हाव भाव बता देते है कि वह क्या सोच रहा है या क्या करने जा रहा है। शब्दो को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है परंतु भावों को नियंत्रित करना कठिन है। भावों के द्वारा, कोई व्यक्ति क्या कहना चाह रहा है या क्या करना चाह रहा है, ज्ञात किया जा सकता है।

2. दक्षतापूर्ण - अशाब्दिक संचार एक अन्य कारण से भी महत्वपूर्ण है। यह सन्देश भेजने वाले तथा सन्देश प्राप्त करने वाले दोनों के लिए दक्षतापूर्ण है। अशाब्दिक संचार साधनों का प्रयोग करके आप सन्देश को शीघ्रता, सुगमता तथा मितव्ययिता से भेज सकते है तथा उतनी ही शीघ्रता से सन्देश प्राप्त करने वाला भी सन्देश प्राप्त कर सकता है।

3. दृष्टिकोण की सही समझ - यदि कोई मनुष्य अशाब्दिक संचार को अच्छी तरह से समझ सकता है तो वह संचारकर्ता के दृष्टिकोण तथा भावनाओ को सही प्रकार से समझ सकता है। एक प्रबन्धक जब अपने सहकर्मियों, कर्मचारियों या ग्राहकों से वार्तालाप कर रहा है तब उसे उनके द्वारा समय समय पर दिए गए संकेतो को भी समझना चाहिए और उससे यह निष्कर्ष निकालना चाहिए कि बातचीत सही दिशा में चल रही है या नही।




अशाब्दिक संचार की हानियां (Disadvantages of Non verbal Communication)

अशाब्दिक संचार की हानियां इस प्रकार है :

(i) गोपनीयता का अभाव

(ii) कम मात्रा की सूचना के लिए ही लाभदायक

(iii) संकेतो की गलत अर्थ भी निकाला जा सकता है।

(iv) यह दोनों ही पक्षों में आमने सामने होने के लिए जरूरी है।

(v) लिखित साक्ष्यों के अभाव।

(vi) अध्यन करने के लिए अधिक कठिन

(vii) भूतकाल की सूचनाओ एवं तथ्यों का संग्रहण कठिन।



2. शाब्दिक संचार (Verbal Communication)

शाब्दिक संचार में संकेतो का प्रयोग किया जाता है जिनका सामान्यत सार्वभौमिक अर्थ होता है तथा जिसे वे सब लोग समझते है जो इस प्रक्रिया में भाग लेते है। यह दो प्रकार का होता है।

(i) मौखिक

(ii) लिखित



(i) मौखिक संचार (Oral Communication)

मौखिक संचार, संचार की वह शाखा है जिसमे सन्देश मौखिक रूप से प्रसारित किया जाता है। मौखिक शब्द का अर्थ है "मुख से निकला हुआ"। मौखिक संचार के दो घटक है - शब्द तथा इन शब्दों के उच्चारण का तरीका। मौखिक संचार में सन्देशकर्ता तथा सन्देश प्राप्तकर्ता अपने विचारों का आदान प्रदान या तो एक दूसरे के सम्मुख बैठकर या किसी यांत्रिक और विद्युत उपकरण जैसे टेलीफोन द्वारा करते है। इस प्रकार मौखिक संचार के दो मुख्य प्रकार है। पहला , एक दूसरे के सम्मुख बैठकर बातचीत करना जिससे कि हम विचार विनिमय कर अतिरिक्त शारीरिक भाषा के संकेतों को भी समझ सके। इस साधन को अति उत्तम माना जाता है। और दूसरा, टेलीफोन तथा कम्प्यूटर वौइस् मेल। परंतु यह साधन उतना प्रभावी नही है जितना कि एक दूसरे के सम्मुख बैठकर बात करना। इसका मुख्य कारण यह है कि इस साधन का प्रयोग करके सन्देश प्राप्तकर्ता के भावों का अध्यन नही किया जा सकता।




मौखिक संचार के लाभ (Advantages of Oral Communication)

1. विचार विनिमय में शीघ्रता - मौखिक संचार से विचार विनिमय शीघ्रता से हो सकता है। इस साधन में सन्देश लिखित रूप में देना जरूरी नही होता है इसलिए मौखिक संचार सन्देश को शीघ्रता से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचा सकता है।


2. शीघ्र प्रतिक्रिया - मौखिक संचार से सन्देश की प्रतिक्रिया भी तुरन्त प्राप्त हो जाती है। सन्देश प्राप्तकर्ता के भावों से अनुमान लगाया जा सकता है कि उसने मौखिक सन्देश को किस हद तक समझ किया है।


3. लचीलापन - जबानी संवाद में लचीलापन भी विद्यमान रहता है। लचीलापन का अर्थ है विचारों को मौके के अनुसार ढालना, सन्देश प्राप्तकर्ता के अनुमानों के अनुसार सन्देश प्रस्तुत करना।


4. मितव्ययी साधन - मौखिक संचार सन्देश देने का एक मितव्ययी साधन है।


5. प्रभावी साधन - मौखिक संचार कई बार अति प्रभावी होता है। जो सन्देश जबानी दिया जाता है उस सन्देश का प्राप्तकर्ता पर लम्बे समय तक प्रभाव रहता है।


6. प्रेरणा सम्भव - मौखिक संचार उच्च अधिकारी तथा उनके कर्मचारियों के बीच मे रहता है। अधिकारियों का यह सीधा संवाद कर्मचारियों को और कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।


7. गलतफहमी समाप्त करना - मौखिक संचार में किसी प्रकार की कोई गलतफहमी पैदा नही होती।


8. कार्यक्षमता में वृद्धि - यह संचार कम समय लेता है इस कारण अधिकारी अपना बचा हुआ समय दूसरे अधिक उत्पादक कार्यों में लगा सकते है।



मौखिक संचार की हानियाँ (Disadvantages of Oral Communication)

1. बड़े संवादों को भेजने में असक्षम - जबानी संचार छोटे संवादों के लिए ही ठीक है। बड़े संदेशो को भेजने या प्राप्त करने में मौखिक संचार सक्षम नही है।


2. नीतिगत मामलों के लिए असक्षम - वे सभी नीतिगत मामले जो मौखिक रूप से सँवादित किए जाते है, महत्वपूर्ण नही होते। सभी नीतिगत मामलों के महत्वपूर्ण होने के लिए यह जरूरी है कि वे लिखित रूप में हो।


3. खर्चीली प्रणाली - यह कम महत्वपूर्ण सूचना को दूरस्थ स्थानों पर टेलीफोन इत्यादि द्वारा भेजा जाता है तो यह काफी खर्चीला सिद्ध होता है।


4. स्पष्टता का अभाव - मौखिक संवाद में स्पष्टता का अभाव होता है। जब कभी भी सूचना को कम समय मे आगे प्रेषित करना हो तो कई बार गलत संवाद भी प्रेषित हो जाता है।


5. समय का अपव्यय - कई बार सभाओं के समय मे वार्तालाप लम्बा खींच जाता है और समय का अपव्यय होता है।



मौखिक संचार की उपयोगिता (Utility of Oral Communication)

1. जब सूचनाओ को गोपनीय रखना हो।

2.  जब सूचनाओ को लिखित रूप से देना सम्भव न हो।

3.  जब कोई सन्देश एक बड़े जनसमूह को देना हो।

4.  जब सन्देश प्राप्त करने वाला अनपढ़ हो।



(ii) लिखित संचार (Written Communication)

लिखित संचार, शाब्दिक संचार का दूसरा प्रकार है। जब सूचनाओ का आदान प्रदान लिखित रूप में किया जाए तो इसे लिखित संचार कहा जाता है। लिखित संचार में पत्र पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, रिपोर्ट्स आदि को सम्मिलित किया जाता है। आधुनिक युग मे लिखित समाचार को सभी सन्देशों का प्रमाण रखने में मदद करता है।



लिखित संचार के लाभ (Advantages of Written Communication)

1. लम्बे सन्देशों के लिए उपयुक्त - सन्देश चाहे कितना भी लम्बा हो लिखित संचार द्वारा आसानी से स्पष्ट किया जाता है।


2. लिखित प्रमाण - कुछ विशेष तथ्यों से सम्बंधित दस्तावेजों भविष्य के प्रयोग के लिए रखना जरूरी होता है। ऐसा लिखित संचार द्वारा ही सम्भव है।


3. अधिक स्पष्ट सन्देश - सन्देश छोटा हो या बड़ा, लिखित संचाद में लिखकर विस्तार से समझाया जा सकता है। इस पद्धति में किसी भी मुख्य बात के छूट जाने का डर नही रहता है।


4. समय की बचत - लिखित संचार के अंतर्गत लोगों के किसी समूह के साथ कोई खुला वार्तालाप नही होता। अतः बेकार की बातों में समय नष्ट नही होता।


5. विभिन्न स्थानों पर संचार - जब एक ही समय पर अलग अलग स्थानों पर सन्देश भेजने हो तो लिखित संचार का उपयोग लाभदायक रहता है।



लिखित संचार की सीमाएं (Limitations of Written Communication)

1. अशिक्षित व्यक्तियों के लिए अनुपयुक्त - लिखित संचार अनपढ़ व्यक्तियों के लिए कोई महत्व नही रखता क्योकि वे केवल जबानी संचार को ही समझ सकते है।


2. गोपनीयता का अभाव - लिखित प्रमाण होने के कारण इसमें गोपनीयता नही पाई जाती।


3. समय की हानि - संगठनात्मक शर्तों के कारण कम महत्व वाले तथ्यों को भी लिखकर भेजने के समय, श्रम और धन की बरबादी होती है।


4 प्रतिपुष्टि के बारे में कोई शीघ्र सूचना नही - जब सन्देश प्राप्त करने वाले कि कोई प्रतिक्रिया तुरन्त प्राप्त न हो तो सनफर7 में कठिनाई आती है क्योंकि सन्देश में अचानक कोई परिवर्तन करना सम्भव नही होता।



लिखित संचार की उपयोगिता (Utility of Written Communication)

(i) जब सन्देश की प्रकृति स्थायी हो।

(ii) जब प्राप्तकर्ता किसी अन्य या दूर स्थान पर होता है।

(iii) जब सन्देश लम्बा हो।

(iv) जब सन्देश में चित्र और रेखाचित्रों का होना जरूरी हो।

(v) जब सन्देश को मौखिक रूप से बिल्कुल भी न समझा जा सके। 

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