संचार प्रक्रिया के मुख्य अंग


हेलो दोस्तों।

आज के पोस्ट में हम संचार प्रक्रिया के मुख्य अंगों के बारे में जानेंगे।


संचार प्रक्रिया के मुख्य अंग (Main Components of Communication Process)

संचार प्रभावपूर्ण तब होता है जब एक स्पष्ट तथा संक्षिप्त सन्देश भली प्रकार से दिया जाता है, सफलतापूर्वक प्राप्त किया जाता है तथा पूर्णतः समझा जाता है। संचार की प्रक्रिया के विभिन्न घटक इस प्रकार है :

1. विचार - विचार किसी व्यक्ति के मस्तिष्क में उतपन्न वास्तविकता का सरल एवं संक्षिप्त रूप हैं प्रत्येक मौखिक या लिखित संवाद एक विचार से ही प्रारम्भ होता है। प्रत्येक विचार किसी न किसी सन्दर्भ में उतपन्न होता है। प्रत्येक सन्दर्भ में कुछ आंतरिक तथा बाह्य घटनाक्रम होते है। प्रत्येक व्यावसायिक संगठन की सूचनाओं को समझने तथा उसका संचार करने का अपना तरीका होता है। प्रत्येक व्यवसाय सूचना को अपने आंतरिक वातावरण के अनुसार प्राप्त करता है। यह सन्दर्भ का आंतरिक रूप है। सन्दर्भ का दूसरा रूप जिसे बाह्य रूप भी कहा जाता है, आपको अपने विचार रखने के लिए प्रेरित करता है। यह बाह्य रूप एक पत्र, फैक्स, टेलीफोन, ई-मेल इत्यादि हो सकता है।



Main Components of Communication Process in Hindi
Main Components of Communication Process in Hindi




2. भेजने वाला या प्रेषक - सन्देश भेजने वाला व्यक्ति प्रेषक कहलाता है। संचार की प्रक्रिया तब प्रारम्भ होती है जब प्रेषक के मन मे कोई विचार उतपन्न होता है। प्रेषक उस विचार को किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किसी दूसरे व्यक्ति या संस्था को भेजना चाहता है। प्रेषक एक व्यक्ति, समूह या संगठन हो सकता है। प्रेषक के मस्तिष्क में इस बात की साफ तस्वीर होनी चाहिए कि वह क्या संचार करना चाहता है।


3. सन्देश - भेजे गए विचार, सूचना, भावना या राय को सन्देश कहते है। सन्देश वह विचार है जो शब्दों, चिन्हों या किसी अन्य माध्यम द्वारा प्राप्तकर्ता को भेजा जाता है। सन्देश का विषय, उद्देश्य, प्राप्तकर्ता की सामाजिक पृष्टभूमि पर निर्भर करता है।


4. संकेतभाव - किसी सन्देश को समझाने की विधि को संकेत भाव कहते है। सन्देश मन मे एक विचार के रूप में उतपन्न होता है। उस विचार को शब्दों चिन्हों, तस्वीरों तथा दौहिक भाषा के रूप में प्रेषित किया जा सकता है। अन्यथा प्राप्तकर्ता के लिए संचार संवाद को समझना सम्भव नही होगा। अतएव सन्देश को शब्दों या किसी अन्य रूप में प्रेषित करने की विधि को संकेत भाव कहते है। इसका अर्थ है विचारों को संकेतो या भाषा मे बदलना। संकेत भाव वह मानसिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्रेषक विचारों को संकेतों में बदलता है।


5. माध्यम तथा संवाद साधन - एक प्रेषक द्वारा प्राप्तकर्ता को संवाद जिस साधन द्वारा भेजा जाता है उसे क्रमशः माध्यम तथा संवाद साधन कहते है। उदहारण के लिए पत्र एक माध्यम है तथा डाक या कुरियर सेवा साधन है। यदि टेलीफोन पर किसी संवाद का संचार किया जाता है तो मौखिक संवाद माध्यम है तथा टेलीफोन साधन है। अतएव माध्यम तथा साधन में अंतर होता है।


6. प्राप्तकर्ता - प्राप्तकर्ता वह व्यक्ति या समूह या संगठन है जो सन्देश प्राप्त करता है। यह सन्देश की मंजिल है। इसके अभाव में संचार की क्रिया पूरी नही होती। यह सन्देश को सुनने वाला या पढ़ने वाला या देखने वाला हो सकता है यह सन्देश को केवल प्राप्त ही नही करता। उसके भाव को समझता है अर्थात सन्देशवचक होता है जो सन्देश का भाव समझ कर अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करता है।


7. विसनकेतन - विसनकेतन वह मानसिक प्रक्रिया है जिसमे प्राप्तकर्ता संवाद के शब्दों, संकेतो या दृश्यों में निहित भाव अर्थात अर्थ को समझता है। जिसे विसनकेतन कहते है। यदि प्राप्तकर्ता शब्दों या संकेतों के अर्थ ठीक ढंग से समझता है तो वह सन्देश में निहित भाव को सही सही समझ सकता है।


8. प्रतिपुष्टि - प्राप्तकर्ता की सन्देश के उत्तर में प्रतिक्रिया को ही प्रतिपुष्टि कहते है। सन्देश प्राप्त करने के बाद प्राप्तकर्ता उसके लिए प्रतिक्रिया प्रकट करता है। जिससे प्रेषक को यह मालूम हो जाता है कि प्राप्तकर्ता को उसका सन्देश प्राप्त हो गया है और उसकी क्या प्रतिक्रिया है। यह प्रतिक्रिया एक मुस्कुराहट, एक लंबी चुप्पी एक टिप्पणी, एक लिखित उत्तर या किसी और तरह से प्रकट की जा सकती है। वास्तव में प्रतिक्रिया का अभाव भी एक तरह की प्रतिक्रिया है। प्रतिपुष्टि संचार का मुख्य तत्व है। इस प्रतिपुष्टि से ही भेजने वाला अनुमान लगाता है कि उसका सन्देश मौलिक रूप से प्राप्त हो गया है या नही। संवेदनशील संचारक प्रतिपुष्टि का विशेष ध्यान रखता है तथा प्राप्त प्रतिपुष्टि के अनुसार अपने सन्देश को लगातार संशोधित करता है। 

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