वित्तीय प्रबन्ध की परंपरागत विचारधारा और आधुनिक विचारधारा में अंतर


हेलो दोस्तों।

आज के पोस्ट में हम वित्तीय प्रबन्ध की परंपरागत विचारधारा और आधुनिक विचारधारा में अंतर में जानेंगे।



वित्तीय प्रबन्ध की परंपरागत विचारधारा और आधुनिक विचारधारा में अंतर (Difference Between Traditional Approach and Modern Approach to Financial Management)


1. अंतर का आधार - परम्परागत विचारधारा में केवल दीर्घकालीन वित्त व्यवस्था की जाती थी। और आधुनिक विचारधारा में अल्पकालीन व दीर्घकालीन दोनों प्रकार की वित्त व्यवस्था को शामिल किया जाता है।




Difference Between Traditional Approach and Modern Approach to Financial Management in Hindi
Difference Between Traditional Approach and Modern Approach to Financial Management in Hindi




2. संस्था का स्वरूप - परम्परागत विचारधारा केवल समामेलित संस्थाओं पर ही लागू की जाती थी। और आधुनिक विचारधारा को सभी प्रकार के संगठनों जैसे समामेलित या गैर समामेलित जैसे एकल स्वामित्व व साझेदारी फर्म आदि पर लागू किया जाता है।


3. क्षेत्र - परम्परागत विचारधारा का क्षेत्र संकुचित होता है। इसमें केवल आवश्यक वित्त को एकत्रित करने का कार्य किया जाता है। और आधुनिक विचारधारा का क्षेत्र विस्तृत होता है। इसमें वित्त को इकट्ठा करने के साथ साथ इसके उचित उपयोग को भी शामिल किया जाता है।


4. वित्त का स्त्रोत - परम्परागत विचारधारा में केवल बाहरी पक्षकारों से वित्त व्यवस्था की जाती है और आधुनिक विचारधारा के अंतर्गत बाहरी व आंतरिक दोनों पक्षकारों से वित्त एकत्रित किया जाता है।

निष्कर्ष (Conclusion) - दोस्तो निष्कर्ष में यह कहा जा सकता है कि वित्तीय लेखांकन से प्राप्त महत्वपूर्ण सूचनाओं के आधार पर वित्तीय प्रबन्ध किया जा सकता है। अतः वित्तीय प्रबन्ध व वित्तीय लेखांकन एक दूसरे से पूरक है। 





वित्तीय प्रबन्ध तथा वित्तीय लेखांकन एक दूसरे के पूरक है। (Financial Management and Financial Accounting are Complimentary to Each other)

वित्तीय प्रबन्ध तथा वित्तीय लेखांकन एक दूसरे से पृथक होते हुए भी एक दूसरे के पूरक है। इसे निम्न वर्णन द्वारा स्पष्ट किया गया है -

1. लाभ व रोकड़ प्रवाह - वित्तीय प्रबन्ध में लिए जाने वाले वित्तीय निर्णय, पूंजी बजटिंग, विनियोग निर्णय आदि रोकड़ प्रवाह के आधार पर लिए जाते हैं जो वित्तीय लेखांकन द्वारा तैयार किए गए लाभ व हानि खाते से प्राप्त हुए शुद्ध लाभ पर निर्भर करता है। अतः बिना वित्तीय लेखांकन के वित्तीय प्रबन्ध सम्भव नही है।


2. लाभांश नीति निर्धारण - वित्तीय प्रबन्ध के अंतर्गत लाभांश नीति सम्बन्धी निर्णय भी वित्तीय लेखांकन द्वारा उपलब्ध करवाए गए लेखांकन लाभों पर निर्भर करता है। इसके लिए कर एवं अन्य समायोजनों के बाद का लाभ प्रयोग किया जाता है। अतः लाभांश नीति के निर्धारण के लिए वित्तीय लेखांकन जरूरी है।


3. कार्यशील पूंजी का प्रबन्ध - वित्तीय प्रबन्ध का एक अंत महत्वपूर्ण कार्य, कार्यशील पूंजी का प्रबन्ध भी वित्तीय लेखांकन पर निर्भर करता है। कार्यशील पूंजी प्रबन्ध के लिए वित्तीय प्रबन्धक को रोकड़ बजट, स्टॉक का स्तर, उधार नीति आदि का निर्धारण करना पड़ता है। वित्तीय प्रबन्धक को ये सभी जानकारियां केवल वित्तीय लेखांकन से ही प्राप्त होती है।


4. प्रति अंश आय - वित्तीय प्रबन्ध में सम्पदा अधिकतम उद्देश्य के लिए प्रति अंश की अवधारणा अति महत्वपूर्ण है। इस प्रति अंश आय की गणना करने के लिए प्रयोग किया जाने वाला लाभ वित्तीय लेखांकन द्वारा तैयार किए गए लाभ व हानि खाते से ही लिया जाता है। अतः स्पष्ट है कि वित्तीय प्रबन्ध के लिए प्रति अंश आय का निर्धारण वित्तीय लेखांकन की सहायता से ही सम्भव होता है।

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