पूंजी ढांचे को प्रभावित करने वाले तत्व के बारे में जाने


हेलो दोस्तों।

आज के पोस्ट में हम पूंजी ढांचे को प्रभावित करने वाले तत्वों के बारे में समझेंगे, चलो शुरू करते है।


पूंजी ढांचे को प्रभावित करने वाले तत्व (Factors Affecting the Capital Structure)

पूंजी ढांचे के सम्बंध में लिए गए निर्णयों के प्रभाव दीर्घकालीन होता है। अतः ये निर्णय भली प्रकार सोच विचार करके ही किए जाने चाहिए। पूंजी ढांचे पर बहुत से तत्वों का प्रभाव पड़ता है। इन्हें पूंजी ढांचे के निर्धारक तत्व कहते है इन तत्वों का वर्णन इस प्रकार है -


1. कंपनी के जीवन चक्र की अवस्था - पूंजी ढांचे का निर्धारण करते समय कंपनी के जीवन चक्र की अवस्था को ध्यान में रखना चाहिए। जैसे अपने जीवन चक्र की प्रारम्भिक अवस्था मे कंपनी को समता पूंजी का अधिक प्रयोग करना चाहिए ताकि जोखिम की मात्रा को कम से कम रखा जा सके। इसके विपरीत कंपनी को जीवन चक्र की परिपक्वता अवस्था मे समता अंश पूंजी की अपेक्षा दीर्घकालीन ऋणों का अधिक प्रयोग करना चाहिए।




Factors Affecting the Capital Structure in Hindi
Factors Affecting the Capital Structure in Hindi




2. वित्त एकत्रित करना - वित्त एकत्रीकरण की लागत को निर्गमन की लागत भी कहा जाता है। पूंजी ढांचे का निर्धारण करते समय इस लागत तत्व को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। वित्त एकत्रीकरण लागतों में दलालों, अभिगोपकों को भुगतान किए जाने वाला कमीशन, विज्ञापन व्यय, छपाई का व्यय आदि को शामिल किया जाता है। प्रायः ऋणपत्रों पर भुगतान किए जाने वाले ब्याज की लागत अंशो के निर्गमन की लागत से कम होती है। ऋणपत्र वित्त का एक सस्ता साधन है।




3. कंपनी का आकार - कंपनी के आकार से भी पूंजी ढांचा प्रभावित होता है। एक छोटे आकार की कंपनी प्रायः अपनी वित्त सम्बन्धी जरूरतों की पूर्ति अंशो के निर्गमन द्वारा अर्थात स्वामी पूंजी व संचित आय से ही करती है। छोटी कंपनियो को वित्तीय संस्थाएं ऋण देने में संकोच करती है। अतः छोटे आकार वाली कंपनियों के लिए दीर्घकालीन ऋणों से वित्त व्यवस्था करना कठिन होता है जबकि एक बड़े आकार की कंपनी सुविधा से व आसान शर्तों पर दीर्घकालीन ऋण प्राप्त करने में सक्षम होती है। इसके अतिरिक्त बड़े आकार की कपनियां समता अंशो, पूर्वाधिकार अंशों व ऋणपत्रों का निर्गमन करके भी वित्त आसानी से प्राप्त कर सकती है।



4. नियमित आय - कंपनी को प्राप्त होने वाली आय का भी पूंजी ढांचे के निर्धारण पर प्रभाव पड़ता है। वे कपनियां जिन्हें नियमित रूप से आय की प्राप्ति होती है, उन्हें आसानी से व सरल शर्तों पर दीर्घकालीन ऋण उपलब्ध हो जाते है क्योंकि ये कपनियां देय तिथि पर ऋण पर देय ब्याज व ऋण की राशि का भुगतान करने के सक्षम होती है। परंतु इसके विपरीत स्थिति में अगर किसी कपनी को नियमित आय प्राप्त नही होती है तो उसे दीर्घकालीन ऋण प्राप्त करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।



5. प्रतिस्पर्धा का स्तर - पूंजी ढांचे का निर्धारण बाजार में प्रतिस्पर्धा के स्तर से भी प्रभावित होता है। अगर किसी विशेष उद्योग में अधिक प्रतिपस्पर्धा है तो उसकी सभी फर्मों को ऋण पूंजी की अपेक्षा समता अंश पूंजी को प्राथमिकता देनी चाहिए। इसका कारण यह है कि समता अंश पूंजी का प्रयोग करने में दीर्घकालीन ऋणों पर देय ब्याज के भुगतान के दायित्व दे बचा जा सकेगा। परन्तु अगर किसी विशेष उद्योग में प्रतिस्पर्धा कम है तो इसकी सभी फर्में दीर्घकालीन ऋणों का प्रयोग कर सकती है।



6. कंपनी कर की दर - पूंजी ढांचे के निर्धारण पर कंपनी कर की दर का भी प्रभाव पड़ता है। कंपनी करों की दर जितनी अधिक होती जाएगी, पूंजी ढांचों में ऋणों से प्राप्त पूंजी का प्रयोग पूर्वाधिकार व समता अंश पूंजी के प्रयोग की तुलना में अधिक लाभप्रद होता जाएगा। इसका कारण यह है कि करों की गणना करने के लिए प्राप्त आय में से ऋणों पर देय ब्याज की राशि को घटाया जाता है। परन्तु लाभांश का भुगतान कर भुगतान के बाद शेष लाभों में से किया जाता है।



7. साख की स्थिति - जिस कंपनी की पूंजी बाजार में साख अच्छी हो उसे सुविधापूर्वक व आसान शर्तों पर दीर्घकालीन ऋण प्राप्त हो जाते है जबकि इसके विपरीत स्थिति में, अगर किसी कंपनी की साख पूंजी बाजार में अच्छी न हो तो उसे अंश पूंजी से ही वित्त की व्यवस्था करनी पड़ती है। अतः पूंजी ढांचे के निर्धारण पर कंपनी की साख की स्थिति का प्रभाव पड़ता है।



8. प्रबन्धकों की प्रकृति - पूंजी ढांचे के निर्धारण में प्रबन्धकों की प्रकृति का विशेष महत्व होता है। पूंजी ढांचे के निर्णय के सम्बंध में अंतिम निर्णय प्रबन्धकों का ही होता है। अगर प्रबन्धक साहसी प्रकृति के है तो वे लाभ को अधिकतम करने के लिए अधिक जोखिम उठाने में भी संकोच नही करेंगे। इस प्रकार के प्रबन्धक पूंजी ढांचे के दीर्घकालीन ऋणों को प्राथमिकता देते है जबकि इसके विपरीत वे प्रबन्धक जो अधिक जोखिम नही उठा सकते है अर्थात जो रूढ़िवादी प्रकृति के हैं वे पूंजी ढांचे की समता अंश पूंजी की अधिक महत्व देते हैं। 

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