Creditors Voluntary Winding up in Hindi


हेलो दोस्तों।

आज के पोस्ट में हम लेनदारों द्वारा ऐच्छिक समापन के बारे में जानेंगे।


लेनदारों द्वारा ऐच्छिक समापन (creditors voluntary winding up)

जब कंपनी के ऐच्छिक समापन की दशा में कंपनी के संचालक कंपनी की शोधन क्षमता की घोषणा करने में असमर्थ रहते है या शोधन क्षमता की घोषणा करने के बाद भी ऋण का भुगतान करने में असमर्थ रहते है तो उसे लेनदारों या ऋणदाताओं द्वारा ऐच्छिक समापन माना जाता है इस प्रकार अगर किसी ऐच्छिक समापन में शोधन क्षमता की घोषणा नही की जाती तो उसे लेनदारों द्वारा ऐच्छिक समापन कहा जाता है।




Creditors Voluntary Winding up in Hindi
Creditors Voluntary Winding up in Hindi





लेनदारों द्वारा ऐच्छिक समापन में लागू होने वाले वैधानिक प्रावधान (Statutory Provisions applicable in creditor's voluntary winding up)

ऐच्छिक समापन के सम्बंध में लागू होने वाले प्रावधान कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 306 में 316 में दिए गए है जो इस प्रकार है :

1. लेनदारों एवं सदस्यों की सभाएं - कंपनी को उसी दिन, जिस दिन साधारण सभा मे ऐच्छिक समापन के लिए प्रस्ताव पारित किया जाना है, लेनदारों की एक सभा बुलानी चाहिए। लेनदारों की यह सभा अगले दिन भी बुलाई जा सकती है। साधारण सभा की सूचना भेजने के साथ ही डाक द्वारा लेनदारों को भी उनकी सभा की सूचना भेजनी चाहिए। लेनदारों की सभा की सूचना का विज्ञापन कम से कम एक बार राजकीय राजपत्र में कंपनी के पंजिकृत कार्यालय वाले जिले में प्रचलित दो समाचार पत्रों में दिया जाना चाहिए।


2. समापक की नियुक्ति - कंपनी तथा लेनदार अपनी अपनी सभा मे समापक मनोनीत कर सकते है किंतु अगर लेनदारों तथा कंपनी द्वारा मनोनीत व्यक्ति अलग अलग हो तो लेनदारों द्वारा मनोनीत व्यक्ति ही कंपनी का समापक होगा। किन्तु कंपनी का कोई सदस्य, संचालक या लेनदार ऐसे मनोनयन के साथ दिनों के भीतर न्यायाधिकरण को प्रार्थनापत्र देकर यह निवेदन कर सकता है कि कंपनी द्वारा मनोनीत व्यक्ति ही कंपनी का समापक होना चाहिए, या न्यायाधिकरण को सरकारी निस्तारक या अन्य किसी व्यक्ति को कंपनी का समापक नियुक्त करने चाहिए।


3. निरीक्षण समिति की नियुक्ति - अगर लेनदार ऐसा करना जरूरी समझे तो ऐच्छिक समापन का पर्यवेक्षण करने तथा कंपनी समापक को उसके कार्यों के कुशल निष्पादन में सहायता देने के लिए एक निरीक्षण समिति नियुक्त कर सकती है। निरीक्षण समिति या अगर निरीक्षण समिति नही है तो लेनदार कंपनी समापक का पारिश्रमिक निश्चित करेंगे। ऐसा करने में असफल रहने पर न्यायाधिकरण पारिश्रमिक निश्चित करेगा। कंपनी समापक की नियुक्ति के बाद संचालक मंडल की शक्तियां समाप्त हो जाती है।


4. कंपनी तथा लेनदारों की सभा - कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 316 में यह अपेक्षित है कि अगर समापन की कार्यवाही एक वर्ष से अधिक चलती है तो समापक को समापन के प्रारम्भ वाले वर्ष के अंत मे एक साधारण सभा बुलानी चाहिए। इसी तरह उसके बाद के प्रत्येक वर्ष के अंत मे साधारण सभा बुलानी चाहिए। उसे सभा के समझ वर्ष के दौरान अपने कार्यों एवं व्यवहारों तथा समापन संचालन सम्बन्धी तभी विषयों के बारे में विवरण प्रस्तुत करना चाहिए।


5. अंतिम सभा एवं विघटन - कंपनी के मामलों के पूर्णतया समापन पर समापक का विवरण तैयार करेगा जिसमे यह दर्शायेगा की समापन के कार्य का संचालन कैसे किया गया है एवं सम्पत्तियों का निपटारा कैसे किया गया है। समापक सभा के समक्ष ब्यौरा प्रस्तुत करने के लिए तथा तत्सम्बन्धी अपने स्पष्टीकरण देने के उद्देश्य से कंपनी तथा लेनदारों की सभा बुलाएगा। अंतिम सभा की तिथि के एक सप्ताह के अंदर समापक को रजिस्ट्रार एवं सरकारी समापक के पास समापन के अंतिम लेखों की प्रतिलिपि एवं सभाओं के विवरणों की प्रतिलिपि भेजनी चाहिए। अगर सरकार समापक पूर्वोक्त लेखों एवं विवरणों की जांच करने के बाद न्यायाधिकरण को संतोषजनक रिपोर्ट प्रस्तुत करता है तो रिपोर्ट की तिथि से कंपनी विघटित मान ली जाती है।

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