Difference Between Members Voluntary Winding up and Creditors Voluntary Winding up in Hindi



हेलो दोस्तों।

आज के पोस्ट में हम सदस्यों द्वारा और लेनदारों द्वारा ऐच्छिक समापन में अंतर के बारे में जानेंगे।


सदस्यों द्वारा ऐच्छिक समापन (Members Voluntary Winding up)

1. स्थिति - ऐसा समापन उस दशा में होता है जब कंपनी अपने ऋणों का भुगतान करने में समर्थ हो।


2. शोधन क्षमता की घोषणा - इसमें संचालकों को कंपनी की शोधन क्षमता की घोषणा करनी पड़ती है।


3. समापक की नियुक्ति - कंपनी साधारण सभा मे समापक की नियुक्ति करती है।




Difference Between Members Voluntary Winding up and Creditors Voluntary Winding up in Hindi
Difference Between Members Voluntary Winding up and Creditors Voluntary Winding up in Hindi





4. समापन की सभाएं - ऐसे समापन के लिए केवल सदस्यों की सभा ही बुलाई जाती है।


5. समापन प्रस्ताव - इस प्रकार के समापन में केवल सदस्यों की सभा मे ही साधारण या विशेष प्रस्ताव, जो भी आवश्यक हो पारित करना पड़ता है।


6. निरीक्षण समिति - इसमें निरीक्षण समिति की नियुक्ति की कोई जरूरत नही है।


7. समापक का पारिश्रमिक - इसमें समापक का पारिश्रमिक साधारण सभा मे सदस्यों द्वारा निश्चित किया जाता है।


8. नियंत्रण - इस प्रकार के समापन में सदस्यों का पूर्ण नियंत्रण बना रहता है।


9. समपकों की संख्या - इसमें एक से अधिक समापकों की नियुक्ति की जा सकती है।


10. संचालक मंडल के अधिकार - समापक की नियुक्ति के बाद में अगर समापक तथा कंपनी चाहे जो संचालक मंडल के अधिकार जारी रखे जा सकते है।


11. रिक्त स्थान भरना - समापक का पद खाली होने पर कंपनी की साधारण सभा इसे भर सकती है।


12. वार्षिक सभा - अगर समापन की कार्यवाही एक वर्ष से अधिक की अवधि के लिए चलती है तो समापक को प्रति वर्ष सदस्यों की सभा बुलानी पड़ती है।


13. अंतिम सभा - समापन की कार्यवाही पूरी हो जाने पर केवल सदस्यों की अंतिम सभा बुलाई जाती है।




लेनदारों द्वारा ऐच्छिक समापन (Creditors Voluntary Winding up)

1. स्थिति - ऐसा समापन उस दशा में किया जाता है जब कंपनी अपने ऋण चुकाने में असमर्थ हो।


2. शोधन क्षमता की घोषणा - इसमें ऐसी घोषणा की कोई जरूरत नही है।


3. समापक की नियुक्ति - सदस्यों एवं लेनदारों दोनों द्वारा अपनी अलग अलग सभा मे समापक की नियुक्ति की जाती है। अगर सदस्यों तथा लेनदारों द्वारा नियुक्ति व्यक्ति अलग अलग हो तो लेनदारों द्वारा नियुक्त व्यक्ति ही समापक माना जाता है।


4. समापन की सभाएं - इसमें सदस्यों तथा लेनदारों दोनों की सभाएं बुलाई जाती है।


5. समापन प्रस्ताव - इस प्रकार के समापन में सदस्यों तथा लेनदारों दोनों की ही सभाओं में समापन प्रस्ताव पारित करना पड़ता है।


6. निरीक्षण समिति - इसमें निरीक्षण समिति नियुक्त की जाती है।


7. समापक का पारिश्रमिक - इसमें समापक का पारिश्रमिक निरीक्षण समिति या लेनदारों द्वारा निश्चित किया जाता है अगर लेनदार इसे निश्चित नही करते तो न्यायाधिकरण द्वारा इसे निश्चित किया जाता है।


8. नियंत्रण - इस प्रकार के समापन में लेनदारों का नियंत्रण अधिक रहता है।


9. समपकों की संख्या - इस प्रकार के समापन में एक ही समापक की नियुक्ति का प्रावधान होता है।


10. संचालक मंडल के अधिकार - निरीक्षण समिति या लेनदार चाहे तो मंडल के अधिकार जारी रख सकते है।


11. रिक्त स्थान भरना - इसमें लेनदार समापक के रिक्त स्थान को भर सकते है।


12. वार्षिक सभा - इस प्रकार के समापन में सदस्यों एवं लेनदारों दोनों की सभाएं बुलाना जरूरी है।


13. अंतिम सभा - इसमें सदस्यों एवं लेनदारों दोनों की ही अंतिम सभा बुलानी पड़ती है। 

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