Loan to Directors Companies act 2013 in Hindi
हेलो दोस्तों।
आज के पोस्ट में हम संचालकों को ऋण के बारे में जानेंगे।
संचालकों को ऋण (loan to directors companies act 2013)
क्योंकि कंपनी के संचालकों का कंपनी के प्रबन्ध पर सीधा नियंत्रण होता है, वे स्पष्टतः कंपनी से ऋण आदि आदि के रूप में फायदा उठाने के लिए लाभकारी स्थिति में होते है। उनकी आधिक्य की स्थिति होने के कारण इस बात की काफी सम्भावना रहती है कि वे कंपनी से मनचाहा ऋण लेकर कंपनी के कोषों का दुरुपयोग करें। इस सम्भावना को समाप्त करने के लिए कंपनी द्वारा अपने संचालकों को या इसकी सूत्रधारी कंपनी के संचालकों को ऋण देने के सम्बंध में कंपनी में कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 185 द्वारा कठोर नियमन किया जाता है।
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Loan to Directors Companies act 2013 in Hindi |
कंपनी अधिनियम की धारा 185 में यह प्रावधान है कि उसके सिवाय जैसा अन्यथा अधिनियम में प्रावधान है एक कंपनी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ऋण नही देगी :
1. कंपनी के किसी संचालक को या उसकी सूत्रधारी कंपनी के संचालक को या ऐसे संचालक के किसी रिश्तेदार या सम्बन्धी को।
2. किसी ऐसे फर्म को जिसमे वह संचालक या उसके रिश्तेदार साझेदार है।
3. किसी ऐसी निजी कंपनी जिसमे वह सदस्य हो।
4. ऐसी कोई समामेलित संस्था जिसकी व्यापक सभा मे संस्था जिसकी कुल मतदान शक्ति के कम से कम पच्चीस प्रतिशत किसी ऐसे संचालक या संचालकों द्वारा मिलकर प्रयोग या नियंत्रित की जा सकती है।
5. कोई अन्य कंपनी जिसका संचालक मंडल या अन्य प्रबन्धक ऋण देने वाली कंपनी के संचालक मंडल या किसी संचालक या संचालकों के निर्देश से कार्य करने का अभ्यस्त अर्थात आदी है।
पहले बताए गए प्रतिबन्ध, संचालक या ऐसे अन्य व्यक्ति, जिसको उधार दिया गया है या उसके द्वारा या अन्य व्यक्ति द्वारा किए गए किसी उधार के सम्बंध में जमानत या गारन्टी दी जाती है, समान रूप से लागू होंगे।
परन्तु धारा 185 (1) के प्रावधान निम्नलिखित पर लागू नही होंगे :
1. कंपनी द्वारा अपने सभी कर्मचारियों को विस्तारित सेवा की शर्तों के भाग रूप में या किसी विशेष प्रस्ताव द्वारा सदस्यों द्वारा अनुमोदित किसी स्किम में अनुसरण में किसी प्रबन्ध संचालक या पूर्णकालिक संचालक को कोई उधार दिया जाना।
2. ऐसी किसी कंपनी को जो अपने कारोबार की साधारण प्रगति में उधार उपलब्ध कराती है या किसी उधार के वापिस भुगतान के लिए गारन्टी या जमानत देती है और ऐसे उधारों के सम्बंध में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा घोषित बैंक दर से अन्यून दर पर ब्याज लिया जाता है।
अगर धारा 185 (1) के प्रावधानों के उल्लंघन में कोई उधार दिया जाता है या गारन्टी या जमानत दी जाती है तो कंपनी ऐसे जुर्माने से, जो पांच लाख रुपये से कम का नही होगा, किन्तु जो पच्चीस लाख रुपये तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगी तथा संचालक या अन्य ऐसा व्यक्ति, जिसको उधार दिया गया है या उसके द्वारा या अन्य व्यक्ति व्यक्ति द्वारा लिए गए किसी उधार के सम्बंध में गारन्टी जा जमानत दी जाती है, कारावास से, जो छह मास तक का हो सकेगा या ऐसे जुर्माने से जो पांच लाख रुपये से कम का नही होगा, किन्तु जो पच्चीस लाख रुपये तक का हो सकेगा या दोनों से, दण्डनीय होगा।
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