Organisation of Capital Market in hindi


हेलो दोस्तों।

आज के पोस्ट में हम पूंजी बाजार के संगठन के बारे में जानेंगें।


पूंजी बाजार का संगठन (organisation of capital market)

अलग अलग संस्थाओं के ऐसे संगठन जो पूंजी बाजार को शामिल करते है, पूंजी बाजार के संगठन कहलाते है। इनमे विभिन्न निवेश संस्थाओं, विकास बैंकों, गैर बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थों एवं स्टॉक बाजार के संगठनों को शामिल किया जा सकता है। चलो इनके बारे में समझते है -




Organisation of Capital Market in hindi
Organisation of Capital Market in hindi




A. गैर बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थ - गैर बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थों की अवधारणा के प्रतिपादन का श्रेय गरले एवं शॉ को जाता है। गैर बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थ से आशय ऐसी वित्तीय संस्थाओं से है जो साधारण जनता से बचटोब को एकत्रित करके निवेशकर्ताओं को उधार प्रदान करती है। ये वित्तीय संस्थाएं सभी बैंकिंग कार्य न करके केवल उधार देने वाले व उधार लेने वाले के बीच मध्यस्था का कार्य करते है। इसलिए इन वित्तीय संस्थाओं की गैर बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थ कहते है।


गैर बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थों के अंतर्गत निम्नलिखित वित्तीय संस्थाओं को शामिल किया जाता है -

(i) विकास बैंक - इनके अंतर्गत IDBI, SFC, ICIBI, IFCI आदि को शामिल किया जाता है।


(ii) बड़े पैमाने की निवेश संस्थाएं - इसके अंतर्गत LIC, GIC व UTI आदि को शामिल किया जाता है।


(iii) विशेष वित्तीय संस्थाएं - इन संस्थाओं का मुख्य कार्य विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना होता है।




B. स्टॉक बाजार - भारतीय पूंजी बाजार का एक अन्य महत्वपूर्ण भाग स्टॉक बाजार है। स्टॉक बाजार के अन्तर्गत निगमित प्रतिभूतियों का लेन देन किया जाता है। निगमित प्रतिभूतियों से आशय ऐसी प्रतिभूतियों से है जिनके माध्यम से निगमित क्षेत्र के लिए जनता से दीर्घकालीन पूंजी इकट्ठा की जाती है। स्टॉक बाजार के निम्नलिखित दो भाग है -

1. प्राथमिक बाजार - प्राथमिक बाजार के अंतर्गत नई निर्गमित की जाने वाली प्रतिभूतियों का लेन देन किया जाता है या प्राथमिक बाजार में नए अंशों तथा ऋणपत्रों आदि का विक्रय किया जाता है। प्राथमिक बाजार का सबसे महत्वपूर्ण कार्य नए या पुराने निगमित उद्यमों के लिए नई पूंजी एकत्रित करना होता है। इस बाजार के मुख्य कार्य है नए निर्गमनो का प्रबंध करना, नए निर्गमनो का अभिगोपन करना, नए निर्गमनो का वितरण करना।



प्राथमिक बाजार की संस्थाएं - प्राथमिक बाजार के अंतर्गत विभिन्न संस्थाएं कार्यरत है। इनमे शेयर दलाल या अभिगोपक मुख्य है। भारत मे स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले मैनेजिंग एजेंट प्रथमिम बाजार की मुख्य संस्था होती है। परन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बहुत सी नई संस्थाएं इन क्षेत्र में प्रविष्ट हुई जैसे भारतीय ओद्योगिम साख एवं निवेश निगम, IFCI, LIC, UTI, IDBI, GIC, व्यापारिक बैंक, शेयर दलाल आदि।



2. द्वितीयक बाजार - द्वितीयक बाजार को गौण बाजार भी कहा जाता है। द्वितीयक बाजार के अन्तर्गत विभिन्न कंपनियों के पुराने अंशों या प्रतिभूतियों का लेन देन किया जाता है।

द्वितीयक बाजार के कार्य इस प्रकार है जैसे प्रतिभूतियों को तरलता प्रदान करना, नए निवेश को बढ़ावा देना।



द्वितीयक बाजार की संस्थाएँ - द्वितीयक बाजार के अन्तर्गत निम्नलिखित दो मुख्य संस्थाओं को शामिल किया जाता है -

(अ) स्कंध विपन्नी - एक ऐसा स्थान जिसमे अनुसूचित विद्यमान अंशों एवं प्रतिभूतियों का लेन देन किया जाता है, उसे स्कंध विपन्नी कहते है। अनुसूचित अनशीं से आशय ऐसे अंशों से है जो स्कंध विपन्नी द्वारा स्वीकृत होते है।


(ब) प्रत्यक्ष सौदेबाजी बाजार - प्रत्यक्ष सौदेबाजी बाजार में उन अंशों का क्रय विक्रय होता है जो शेयर बाजार द्वारा स्वीकृत या अनुसूचित नही होते है। ये अंश प्रायः छोटी कंपनियों के होते है और इनका बाजार भी सीमित होता है। इन बाजार में अंशों की निर्धारण दलालों की प्रत्यक्ष सौदेबाजी द्वारा होता है। 

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