Difference between Hire Purchase System and Credit Sales in Hindi


हेलो दोस्तों।

आज इस पोस्ट में हम किराया क्रय पद्धति एवं उधार बिक्री में अंतर के बारे में जानेंगें।


किराया क्रय पद्धति एवं उधार बिक्री में अंतर (Difference between Hire Purchase System and Credit Sales)


1. अधिनियम

किराया क्रय पद्धति - इस पर किराया क्रय अधिनियम 1972 के प्रावधान लागू होते है।

उधार बिक्री - इस पर वस्तु विक्रय अधिनियम 1930 के प्रावधान लागू होते है।




Difference between Hire Purchase System and Credit Sales in Hindi
Difference between Hire Purchase System and Credit Sales in Hindi





2. अनुबन्ध का स्वभाव

किराया क्रय पद्धति - यह केवल विक्रय का ठहराव होता है, विक्रय का अनुबन्ध नही।

उधार बिक्री - यह विक्रय का अनुबन्ध होता है।


3. स्वामित्व का हस्तांतरण

किराया क्रय पद्धति - इसमें माल के स्वामित्व का हस्तांतरण अंतिम किश्त चुकाने के बाद ही होता है।

उधार बिक्री - इसमें अनुबन्ध करते ही क्रेता को माल का पूर्ण स्वामित्व प्राप्त हो जाता है।



4. मूल्य भुगतान की विधि

किराया क्रय पद्धति - इसमें मूल्य का भुगतान पूर्व निश्चित किश्तों में किया जाता है।

उधार बिक्री - इसमें प्रायः मूल्य का भुगतान इकट्ठी राशि मे किया जाता है परन्तु आपसी समझौते से भुगतान अन्य प्रकार से भी किया जा सकता है।



5. माल वापस लेने का अधिकार

किराया क्रय पद्धति - किसी भी किश्त के न मिलने पर विक्रेता माल वापस ले सकता है तथा अदत्त किश्तों के लिए दावा भी कर सकता है।

उधार बिक्री - इसमें विक्रेता माल वापस नही ले सकता है। वह केवल अदत्त मूल्य एवं ब्याज के लिए दावा कर सकता है।



6. माल की क्षति का दायित्व

किराया क्रय पद्धति - अगर किराया क्रेता ने एक सामान्य बुद्धि वाले मनुष्य की तरह माल की उचित देखभाल की है तो वह माल की क्षति के लिए उत्तरदायी नही होता।

उधार बिक्री - क्योकि अनुबन्ध पर हस्ताक्षर करते ही क्रेता माल का स्वामी बन जाता है और जोखिम स्वामी का ही होता है अतः माल की क्षति के लिए क्रेता ही उत्तरदायी होगा।



7. माल को विक्रय करने या गिरवी रखने का अधिकार

किराया क्रय पद्धति - क्योकि किराया, क्रेता की स्थिति निक्षेपग्रहिता की तरह होती है अतः अंतिम किश्त के भुगतान से पहले उसे माल को बेचने या गिरवी रखने का अधिकार नही होता।

उधार बिक्री - विक्रय के अनुबन्ध में क्रेता की स्थिति माल के स्वामी की तरह होती है अतः वह माल को विक्रय कर सकता है या गिरवी रख सकता है।



8. अनुबन्ध की समाप्ति

किराया क्रय पद्धति - किराया क्रेता को ठहराव को समाप्त करने का अधिकार होता है। ऐसी दशा में वह माल को वापस कर देगा तथा उसे शेष किश्ते नही चुकानी पड़ेगी।

उधार बिक्री - क्रेता अनुबन्ध को समाप्त नही कर सकता। अतः वह मूल्य चुकाने को बाध्य होता है।



कुछ महत्वपूर्ण शब्दो का स्पष्टीकरण

किराया क्रय पद्धति के अंतर्गत लेखे करने से पहले कुछ महत्वपूर्ण शब्दों को समझना जरूरी है -

1. इस पद्धति में वस्तु के प्रायः दो मूल्य होते है -

(i) नकद मूल्य - इस मूल्य में ब्याज की राशि सम्मिलित नही होती। इसे मूल राशि भी कहते है।


(ii) किराया क्रय मूल्य - इस मूल्य में ब्याज की राशि सम्मिलित होते है।

अर्थात : नकद मूल्य + कुल ब्याज = किराया क्रय मूल्य



2. किश्त - प्रत्येक प्रश्न में सावधानीपूर्वक यह देखना चाहिए कि किश्त की राशि मे ब्याज सम्मिलित है या नही।

(i) ब्याज सहित किश्त की राशि - अगर सुपुर्दगी के समय अग्रिम दी गयी राशि तथा अन्य समस्त किश्तों को जोड़ नकद मूल्य से अधिक हो यो इसका अर्थ होता है कि किश्तों में ब्याज सम्मिलित है।

(ii) ब्याज रहित किश्त की राशि - अगर सुपुर्दगी के समय अग्रिम दी गयी राशि तथा अन्य समस्त किश्तों का जोड़ नकद मूल्य के बराबर हो तो इसका अर्थ होता है कि किश्तों में ब्याज सम्मिलित नही है। 

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