Main Objectives of Receivables Management in Hindi

हेलो फ्रेंड्स।

इस पोस्ट में हम प्राप्यों के प्रबन्ध के मुख्य उद्देश्यों के बारे में समझेंगे।


प्राप्यों के प्रबन्ध के मुख्य उद्देश्य (Main Objectives of Receivables Management)

किसी उपक्रम द्वारा प्राप्यों का सृजन किए जाने के कारण उस को कुछ लाभ, जैसे विक्रय, लाभ वृद्धि, प्रतियोगिता का सामना आदि प्राप्त होते है तथा उसे कुछ लागतों जैसे संग्रहण लागत, प्रशासन की लागत, पूंजी की लागत आदि को भी वहन करना पड़ता हैं। वित्तीय प्रबन्धक का मुख्य कार्य प्राप्यों का प्रबन्ध करना है जिसके अंतर्गत वह प्राप्यों में विनियोग से मिलने वाले प्रतिफल को अधिकतम व लागतों को कम से कम करने के प्रयास करता है। प्राप्यों के प्रबन्ध के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित है :

1. अनुकूलतम मात्रा तक विक्रय करना

2. अनुकूलतम स्तर तक प्राप्यों मे विनियोग करना

3. उधार विक्रय की लागत को कम से कम करना




Main Objectives of Receivables Management in Hindi
Main Objectives of Receivables Management in Hindi




इस प्रकार, वित्तीय प्रबन्धक प्राप्यों के प्रबन्ध कार्य के अंतर्गत लाभों व लागतों के बीच संतुलन बनाने का कार्य करता है। इसके लिए वह प्राप्यों से मिलने वाले लाभों व वहन की जाने वाली लागतों का तुलनात्मक अध्यन्न करता है। एक उपक्रम के लिए प्राप्यों में विनियोग करना उस सीमा तक उचित रहता है जब तक प्राप्यों के सीमांत लाभ व सीमांत लागत एक समान न हो जाए। इसके अतिरिक्त प्राप्यों के आकार या मात्रा को प्रभावित करने वाले घटकों को ध्यान में रखकर गई प्राप्यों का प्रबन्ध किया जाना चाहिए।



साख प्रमाप (Credit Standard)

जिस आधारभूत कसौटी के आधार पर ग्राहकों को माल का उधार विक्रय किया जाता है, उसे साख प्रमाप कहते है। साख प्रमापों से उपक्रम विशेष के विक्रय, लाभ, प्राप्यों में विनियोजित राशि व लागत पर प्रभाव पड़ता है। अगर एक उपक्रम उदार साख प्रमाप अपनाता है तो उसके विक्रय व प्राप्यों में विनियोजित राशि की मात्रा कठोर साख प्रमाप अपनाने वाले उपक्रम की तुलना में अधिक होगी। साख प्रमापों का निर्धारण निम्नलिखित दो आधारों पर किया जाता है :

(i) संख्यात्मक आधार - साख प्रमापों के निर्धारण के संख्यात्मक आधार के अंतर्गत वित्तीय अनुपात, औसत भुगतान अवधि आदि को शामिल करते है।


(ii) गुणात्मक आधार - साख प्रमापों के निर्धारण के गुणात्मक आधार के अंतर्गत क्षमता अर्थात व्यावसायिक प्रबन्ध की योग्यता, आचरण अर्थात खरीदी गई वस्तुओं का भुगतान करने के प्रति क्रेता की ईमानदारी, परिस्थितियां अर्थात अर्थव्यवस्था का आर्थिक व सामाजिक विकास, पूंजी अर्थात वित्तीय मजबूती व सहवर्ती अर्थात गिरवी रखी गयी सम्पत्तियां को शामिल करते है। इन सभी गुणात्मक तत्वों की जानकारी पिछले अनुभवों, व्यापारिक संघों, ग्राहकों द्वारा दिए गए हवालों आफ से ली जा सकती है।


साख प्रमापों का निर्धारण उदार नीति से किया जाए या कठोर नीति से। इसका निर्धारण दोनों प्रकारों से मिलने वाले लाभों व वहन किए जाने वाली लागतों के तुलनात्मक अध्ययन करने के बाद ही किया जाना चाहिए। 

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