Traditional Approach of Financial Management and its Assumptions and Limitations in Hindi


हेलो दोस्तों।

आज इस पोस्ट में वित्तीय प्रबन्ध की परंपरागत विचारधारा और इसकी मान्यताएं और सीमाओं के बारे में बताया गया है।


वित्तीय प्रबन्ध की परंपरागत विचारधारा (Traditional Approach of Financial Management)

वित्तीय प्रबन्ध की इस विचारधारा के अनुसार वित्तीय प्रबन्ध के अंतर्गत केवल एक कार्य, उचित शर्तों पर आवश्यक वित्त को एकत्रित करना ही शामिल किया जाता है। इस विचारधारा में एकत्रित वित्त के कुशल प्रयोग को वित्तीय प्रबन्ध के कार्य क्षेत्र में शामिल नही किया गया था। इस विचारधारा के अंतर्गत आवश्यक वित्त का एकत्रीकरण निम्नलिखित तथ्यों को ध्यान में रखकर किया जाता था -




Traditional Approach of Financial Management and its Assumptions and Limitations in Hindi
Traditional Approach of Financial Management and its Assumptions and Limitations in Hindi





(i) वित्त सम्बन्धी संस्थागत स्त्रोत।

(ii) व्यवसाय व इसके वित्त सम्बन्धी स्त्रोत के बीच उचित वैधानिक व लेखांकन व्यवहार।

(iii) पूंजी बाजार से वित्त एकत्रित करने के लिए वित्तीय प्रपत्रों का निर्गमन।




मान्यताएं (Assumptions)

वित्तीय प्रबन्ध की परम्परागत विचारधारा की मुख्य मान्यताएं निम्नलिखित थी -

(i) वित्तीय प्रबन्धक केवल बाहरी स्त्रोतों से आवश्यक वित्त इकट्ठा करने का कार्य करता था।

(ii) एकत्रित वित्त के कुशल प्रयोग को वित्तीय प्रबन्धक के कार्य क्षेत्र से बाहर रखा गया था।




सीमाएं (Limitations)

वित्तीय प्रबन्ध की परंपरागत विचारधारा की मुख्य सीमाएं निम्नलिखित है -

1. केवल आवश्यक वित्त को एकत्रित करने पर विशेष ध्यान - इस विचारधारा की मुख्य सीमा यह है कि इसमें केवल आवश्यक वित्त को बाहरी पक्षकारों से इकट्ठा करने पर ही विशेष ध्यान दिया जाता है। इस एकत्रित वित्त को किस प्रकार कुशलतापूर्वक प्रयोग किया जाए, यह तथ्य वित्तीय प्रबन्ध के कार्यक्षेत्र से बाहर रखा गया है। अतः इस विचारधारा में बाहरी पक्षकारों जैसे विनियोक्ता, वित्तीय संस्थाएं, बैंक आदि को महत्व दिया गया है जबकि आंतरिक पक्षकारो की अवहेलना की जाती है।


2. दीर्घकालीन वित्त सम्बन्धी समस्याओं पर विशेष ध्यान - इस विचारधारा की एक अन्य कमी यह है कि इसमें दीर्घकालीन वित्त सम्बन्धी समस्याओं पर ही ध्यान केंद्रित किया जाता है तथा कार्यशील पूंजी सम्बन्धी निर्णयों की अवहेलना की जाती है।


3. गैर निर्गमित उपक्रमों की वित्त प्राप्ति की समस्याओं की अनदेखी - इस विचारधारा में गैर निर्गमित उपक्रमों की वित्त प्राप्ति सम्बन्धी समस्याओं को अनदेखा किया गया हैं उदाहरण के लिए एकाकी स्वामित्व वाली एवं साझेदारी फर्मों को वित्तीय प्रबन्ध के कार्यक्षेत्र में शामिल ही नही किया गया है।


4. विशिष्ट घटनाओं के घटित होने पर वित्त प्राप्ति समस्याओं पर विशेष ध्यान - इस विचारधारा की एक सीमा यह भी है कि इसमें कुछ विशिष्ट घटनाओं, जैसे फर्म का प्रवर्तन, समामेलन, पुनर्गठन, सम्मिश्रण आदि की दशा में वित्त प्राप्ति सम्बन्धी समस्याओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इस विचारधारा के अंतर्गत एक सामान्य फर्म की दिन प्रतिदिन की वित्तीय समस्याओं पर कोई ध्यान नही दिया गया है। 

Post a Comment