Types of Working Capital on the Basis of Need in hindi

हेलो दोस्तों।

आज के पोस्ट में हम आवश्यकता के आधार पर कार्यशील पूंजी के प्रकार के बारे में समझेंगे।


आवश्यकता के आधार पर कार्यशील पूंजी के प्रकार (Types of Working Capital on the Basis of Need)

प्रत्येक व्यवसाय की संचालन चक्र की समयावधि उसकी कार्यशील पूंजी सम्बन्धी आवश्यकता का निर्धारण करती है। संचालन चक्र के निरन्तर चलते रहने के कारण संस्था में कार्यशील पूंजी की आवश्यकता सदैव बनी रहती हैं परंतु सम्पूर्ण वर्ष में अलग अलग  समयों पर इसकी आवश्यकता की मात्रा अलग अलग होती है। आवश्यकता के आधार पर कार्यशील पूंजी के निम्नलिखित दो प्रकार होते है -




Types of Working Capital on the Basis of Need in hindi
Types of Working Capital on the Basis of Need in hindi




1. स्थायी कार्यशील पूंजी - स्थायी कार्यशील पूंजी  से अभिप्राय चालू सम्पत्तियों में लगाई गई उस राशि से है जो दैनिक व्यावसायिक क्रियाओं को निरन्तर करते रहने के लिए कच्चे माल, अर्धनिर्मित माल, निर्मित माल व नकद रोकड़ की कम से कम मात्रा को बनाए रखने के ल8के आवश्यक है। स्थायी कार्यशील पूंजी की व्यवस्था दीर्घकालीन वित्तीय स्त्रोतों, जैसे अंश पूंजी, ऋणपत्रों, दीर्घकालीन ऋणों आदि से ही की जाती है।


2. अस्थायी या परिवर्तनशील कार्यशील पूंजी - अस्थायी या परिवर्तनशील कार्यशील पूंजी वह आधिक्य राशि है जो स्थायी कार्यशील पूंजी की सीमा से अधिक रखना आवश्यक होता है।


उदाहरण के लिए, मौसमी व्यवसायों में वर्ष के कुछ महीनों में जब विक्रय सामान्य या नाममात्र मात्रा में होता है, उस समय केवल स्थायी कार्यशील पूंजी से भी काम चल जाएगा परन्तु जब वर्ष के अन्य कुछ महीनों में विक्रय सामान्य से अधिक मात्रा में होता है तो ऐसी दशा में संस्था को स्थायी कार्यशील पूंजी से अधिक कार्यशील पूंजी की मात्रा आवश्यक होती है। इसका कारण इस समय बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए निर्मित माल का अधिक स्टॉक चाहिए होता है तथा अधिक विक्रय होने के कारण देनदारों व प्राप्य बिलों की मात्रा भी बढ़ जाती है।


इन सभी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्थायी कार्यशील पूंजी से जितनी अधिक कार्यशील पूंजी की आवश्यकता होगी, उसे ही अस्थायी या परिवर्तनशील कार्यशील पूंजी कहा जाता है। अस्थायी या परिवर्तनशील कार्यशील पूंजी की व्यवस्था अल्पकालीन वित्तीय स्त्रोतों, जैसे अल्पकालीन ऋणों आदि से की जाती है।


यह ध्यान देने योग्य विषय है कि, एक संस्था को सफलतापूर्वक संचालित करने के लिए स्थायी व अस्थायी दोनों प्रकार की कार्यशील पूंजी आवश्यक होती है।


एक विकासशील संस्था की स्थायी कार्यशील पूंजी की आवश्यकता पूरे वर्ष एक समान न होकर बढ़ती जाती है। इसलिए विकासशील संस्था का स्थायी कार्यशील पूंजी का वक्र समतल न होकर, नीचे से ऊपर तथा बाएं से दाएं दिशा की और ऊपर बढ़ता जाता है। 

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