Direct Exporting and Advantages and Disadvantages of Direct Exporting in hindi


हेलो दोस्तों।

इस पोस्ट में हम प्रत्यक्ष निर्यात तथा इसके लाभ और दोष के बारे में जानेंगें।


प्रत्यक्ष निर्यात (Direct Exporting)

प्रत्यक्ष निर्यात वह विधि है जिसके अंतर्गत निर्यातक मध्यस्थों की सहायता न लेकर सारा कार्य खुद करता है मतलब कि निर्यातक द्वारा खुद ही वसुओं का निर्यात किया जाता है। उसके द्वारा ही सभी कार्यो का निरीक्षण किया जाता हैं जब एक उत्पादक द्वारा सारा कार्य खुद किया जाता है तो जोखिम की मात्रा में वृद्धि हो जाती है और साथ ही लाभ बढ़ने की संभावना भी अधिक हो जाती है। बाजार सूचनाएं प्रत्यक्ष रूप से मिलने के कारण ग्राहक की आशाओं के अनुरूप वस्तु का निर्यात होता है, जिसके फलस्वरूप उपभोक्ता सन्तुष्टि में वृद्धि होती है।




Direct Exporting and Advantages and Disadvantages of Direct Exporting in hindi
Direct Exporting and Advantages and Disadvantages of Direct Exporting in hindi





प्रत्यक्ष निर्यात के लाभ (Advantages of Direct Exporting)

प्रत्यक्ष निर्यात से आयातकर्ता व निर्यातकर्ता दोनों को अनेक लाभ मिलते है जो इस प्रकार है :

1. छोटी वितरण व्यवस्था - प्रत्यक्ष निर्यात में मध्यस्थों का अभाव होने के कारण वितरण की कड़ी छोटी होती है जिसके फलस्वरूप अंतिम उपभोक्ता को वस्तुओं का हस्तांतरण शीघ्र व उचित मूल्य पर हो जाता है।


2. मांग का अनुमान - प्रत्यक्ष निर्यात की सहायता से मांग का सही अनुमान लगाया जा सकता है तथा उसी के अनुरूप माल का निर्यात किया जा सकता है।


3. ग्राहकों को ज्ञान - प्रत्यक्ष निर्यात के अंतर्गत निर्यातकर्ता का ग्राहकों से प्रत्यक्ष सम्पर्क होने के कारण उनकी आवश्यकताओं, इच्छाओं को समझने में आसानी होती है।


4. पूर्ण नियंत्रण - प्रत्यक्ष निर्यात के अंतर्गत उत्पादक का सम्पूर्ण उत्पादन क्रियाओं व कीमतों पर नियंत्रण बना रहता है तथा वह साख शर्तो को आसानी से निर्धारित कर सकते है।


5. ख्याति का निर्माण - प्रत्यक्ष निर्यात की सहायता से विपणनकर्ता विदेशी बाजारों में अपनी तथा अपने उत्पादों की ख्याति का निर्माण कर सकता है।


6. विक्रय व लाभों में वृद्धि - प्रत्यक्ष निर्यात के अंतर्गत निर्यातक का सम्पूर्ण बाजार पर नियंत्रण होने के कारण उसे अपनी वस्तुओं की बिक्री से पूर्ण प्रतिफल मिल जाता है जिससे उसके विक्रय व लाभों में वृद्धि होती है।




प्रत्यक्ष निर्यात के दोष (Disadvantages of Direct Exporting)

प्रत्यक्ष निर्यात के अंतर्गत आयातकर्ता व निर्यातकर्ता को न केवल लाभ प्राप्त होते है बल्कि उन्हें कुछ हानियाँ भी उठानी पड़ती है। इन हानियों का वर्णन नीचे समझाया गया है :

1. जोखिमपूर्ण - प्रत्यक्ष निर्यात के अंतर्गत निर्यातक द्वारा सभी कार्य खुद करने के कारण जोखिम की मात्रा में वृद्धि होती है।


2. पूंजी की अधिक आवश्यकता - प्रत्यक्ष निर्यात पर नियंत्रण स्थापित करने कब लिए विभिन्न प्रकार के व्यय जैसे विदेशों में आने जाने, प्रचार प्रसार करने, आदेश प्राप्त करने आदि सम्बन्धी खुद करने पड़ते है। इसलिए पूंजी की आवश्यकता पड़ती है।


3. प्रबन्धकीय योग्यता - प्रत्यक्ष निर्यात के लिए निर्यातकर्ता में प्रबन्धकीय क्षमता का होना बहुत जरूरी हैं प्रबन्धकीय योग्यता से आशय निर्यात प्रबन्ध में सम्बन्धित ज्ञान से है।


4. एकाधिकारी मूल्य - प्रत्यक्ष निर्यात विधि के अंतर्गत उत्पाद का मूल्य निर्यातकर्ता द्वारा निर्धारित किया जाता है तथा आयातकर्ता को उसी मूल्य पर उत्पाद क्रय करना पड़ता है। इस प्रकार प्रत्यक्ष निर्यात में एकाधिकारी प्रवृति पाई जाती है।


5. वितरण लागतों में वृद्धि - प्रत्यक्ष निर्यात के अंतर्गत स्टॉक को बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि विदेशी बाजारों में वितरण केंद्रों की स्थापना की जाए ताकि स्टॉक में कमी न आये। यह काफी खर्चीली पद्धति है तथा इससे वितरण लागतों में भी वृद्धि होती है। 

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