Steps for Selection of Foreign Market in hindi


हेलो दोस्तों।

आज के पोस्ट में विदेशी बाजार के चयन के लिए उठाए जाने वाले कदमों के बारे में बताया गया है।


विदेशी बाजार में चयन के लिए उठाए जाने वाले कदम (Steps for Selection of Foreign Market)

अन्तराष्ट्रीय व्यापार के लिए विदेशी बाजार का चयन करना बहुत महत्वपूर्ण एवं कठिन कार्य है। अन्तराष्ट्रीय विपणनकर्ता द्वारा विदेशी बाजार का चयन करने के लिए एक प्रक्रिया का पालन किया जाता है जो इस प्रकार है :




Steps for Selection of Foreign Market in hindi
Steps for Selection of Foreign Market in hindi




1. प्रथम अवस्था - इस अवस्था मे सबसे पहले बाजार का प्रारम्भिक विश्लेषण किया जाता है। इस विश्लेषण का उद्देश्य यह माना जाता है कि किन बाजारों में विपणन की संभावनाएं अधिक है तथा किन बाजारों में कम। प्रारम्भिक छानबीन के लिए मापनीय घटकों का चयन विभिन्न उत्पादों के लिए अलग अलग हो सकता है, फिर भी कुछ घटक ऐसे है जिनका सभी उत्पादों में सामान्य रूप से प्रयोग किया जा सकता है जो नीचे बताया गया है :

(i) भौगोलिक वातावरण - एक विपणनकर्ता को किसी देश मे निर्यात करते समय वहां के भौगोलिक वातावरण का अध्ययन जरूर करना चाहिए। इसके अंतर्गत यह देखा जाता है कि किसी देश मे पहाड़ो, नदियों, झरनों व मैदानों की क्या स्थिति है तथा उस देश मे किन किन देशों की सीमाएं मिलती है।


(ii) आर्थिक वातावरण - आर्थिक वातावरण - आर्थिक वातावरण के अंतर्गत विपणनकर्ता के लिए यह जानना जरूरी  है कि वह जिस देश मे निर्यात करना चाहता है वहां के लोगो योय आय स्तर कैसा है, प्रति व्यक्ति आय कितनी है तथा बचतों की प्रकृति कैसी है।


(iii) सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण - सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण के अंतर्गत निर्यातक द्वारा सम्भावित देश के लोगो की आदतों, इच्छाओं एवं अपेक्षाओं, रीति रिवाजों, परम्पराओ तथा व्यवहार व धर्म आदि का अध्ययन किया जाता है।


(iv) राजनीतिक वातावरण - आयातक देश की राजनीतिक स्थिति की जानकारी होना भी बहुत जरूरी है। राजनीतिक वातावरण के अंतर्गत यह देखा जाता है कि उस देश की सरकार का विदेशियों के प्रति क्या रुख है तथा उस देश की व्यापारिक एवं आर्थिक नीतियां कैसी है।



2. द्वितीय अवस्था - विदेशी बाजार में चुनाव प्रक्रिया की द्वितीय अवस्था मे निम्नलिखित तथ्यों का अध्ययन किया जाना जरूरी है :

(i) बाजार का आकार अर्थात यह देखना कि विदेशी बाजार में निर्यातक के उत्पाद के उपभोक्ताओं की संख्या कितनी है।


(ii) बाजार के आकार का अध्ययन करने के बाद यह देखा जाता है कि उसी प्रकार के अन्य उत्पादों की विकास दर क्या है। अगर उसके उत्पाद से मिलते जुलते अन्य उत्पादों की विकास दर अधिक है तो निर्यातक को भी अपने उत्पाद में परिवर्तन करने चाहिए।


(iii) द्वितीय अवस्था मे विपणनकर्ता के लिए कर एवं सरकारी नीतियों का अध्ययन करना भी जरूरी है। अगर विदेशी बाजार के कर अधिक है एवं सरकारी नीतियां प्रतिकूल है तो विपणनकर्ता को उस देश मे विपणन नही करना चाहिए।



3. तृतीय अवस्था - इस अवस्था मे निम्नलिखित तथ्यों का अध्ययन करना चाहिए :

(i) प्रतियोगिता - निर्यात करते समय विपणनकर्ता को उस देश में होने वाली प्रतियोगिता का भी पता लगाना चाहिए।


(ii) प्रवेश की लागत - विपणनकर्ता को विदेशी बाजार में प्रवेश की लागत को भी ध्यान में रखना चाहिए। अगर विदेशी बाजार में प्रवेश की लागत अधिक है तो उसे वह देश छोड़ देना चाहिए।


(iii) लाभ की संभावना - विपणनकर्ता के लिए विदेशी बाजार में लाभ की संभावना को जानना भी जरूरी है। विपणनकर्ता को यह देखना चाहिए कि विदेशी बाजार में लाभ की संभावना अधिक है या नही।


(iv) सूचनाओं की विश्वसनीयता - विपणनकर्ता को सूचनाओं का विश्लेषण जरूर करना चाहिए। विपणन करने के लिए विपणन से सम्बंधित सभी सूचनाओ को विश्वसनीय होना बहुत जरूरी है।


(v) परीक्षण विपणन की लागत - परीक्षण विपणन से अभिप्राय वास्तविक विपणन करने से पहले यह पता लगाना है कि हमारा उत्पाद उस बाजार में सफल होगा या नही।



4. चौथी अवस्था - इस अवस्था मे बाजारों के अंतिम रूप से मूल्यांकन किया जाता है जिसके अंतर्गत यह देखा जाता है कि किन किन बाजारों के नियम व शर्तें निर्यातक देश के अनुकूल है। जिन देशों के नियम व शर्तें निर्यातक देश के अनुकूल होते है उन देशों को विपणन के लिए चुन लिया जाता है। इसके विपरीत प्रतिकूल नियम व शर्तों वाले देश को छोड़ दिया जाता है।

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