Difficulties or Challenges in International Business in Hindi


हेलो दोस्तों।

इस पोस्ट में हम अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय में कठिनाइयों या चुनौतियों के बारे में जानेंगे।

अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय में कठिनाइयां/चुनौतियां (Difficulties/Challenges in International Business)

1. सांस्कृतिक अंतर - विभिन्न देशों के सांस्कृतिक चरों जैसे भाषा, सोच विचार, रीति रिवाज, कार्यशैली, धर्म, मूल्य प्रणाली आदि में बहुत विभिन्नता होती है। अतः विभिन्न देशों में सांस्कृतिक आयामों का अध्ययन बहुत जटिल हो जाता है। अतः राष्ट्रीय आधार पर संस्कृति का विश्लेषण बहुत मुश्किल हो जाता है।



अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय में कठिनाइयां या चुनौतियां
अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय में कठिनाइयां या चुनौतियां




2. लेखांकन प्रमापों तथा व्यवहारों में अंतर - विभिन्न देशों में लेखांकन प्रमापों की विभिन्नता के कारण लेखे तैयार करने सम्बन्धी वैधानिक व्यवस्था अलग अलग है जैसे भारत मे लेखांकन प्रमापों को इंस्टिट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंट्स ऑफ इंडिया द्वारा जारी किया गया है।


3. भाषा सम्बन्धी समस्याएं - विभिन्न देशों की भाषाओं में विभिन्नता अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय के संचार में एक बड़ी बाधा है। विश्वभर में दस हजार से भी अधिक भाषाएं बोली जाती है। प्रत्येक भाषा मे विभिन्न शब्दों का अलग अलग अर्थ है। अमेरिका तथा इंग्लैंड दोनों में अंग्रेजी भाषा बोली जाती है, लेकिन इन दोनों संभाषीय देशों में भी अंग्रेजी के शब्दों के हिज्जों व अर्थ में अंतर है तथा बोलचाल का तरीका भी अलग है। भाषा की विभिन्नता के कारण अन्तराष्ट्रीय व्यवसायिक इकाई को विभिन्न देशों में कार्यरत अधिकारियों के बीच डीलरों, बाजार मध्यस्थों व ग्राहकों के बीच संचार में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय के प्रकार

4. अधिक जटिल नियंत्रण - घरेलू व्यवसाय की तुलना में अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय बहुत विशाल भौगोलिक क्षेत्र में फैला होता है। कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियों की व्यावसायिक क्रियाएं 150 से भी अधिक देशों में फैली हुई है। अत्यधिक दूरी के कारण परस्पर मेल जोल बहुत अधिक समय अंतराल पर ही होता है। मूल कंपनी व सहायक कंपनियों के अधिकारियों के बीच प्रत्यक्ष सभाएं बहुत कम बार होती है।


5. अधिक जोखिम - घरेलू व्यवसाय की तुलना में अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय में जोखिम अधिक होता है। अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय में, एक व्यावसायिक इकाई अन्य देशों में कार्य करती है। इन अन्य देशों में मूल देश की तुलना में सांस्कृतिक आयाम जैसे भाषा, रिवाज, फैशन, कार्यशैली, सोच, आदर्शवाद, मूल्य व्यवसाय आदि में काफी अंतर हो सकता है।


6. उपभोक्ताओं की पसन्द व प्राथमिकताओं में अंतर - विभिन्न देशों में उपभोक्ताओं की पसन्द, प्राथमिकताएं, वातावरणीय दशाएं, भोजन आदतें, शिक्षा स्तर, आर्थिक विकास का स्तर आदि भिन्न भिन्न होने के कारण उपभोक्ताओं की उत्पाद की विशेषताओं के प्रति विभिन्न प्राथमिकताएं होती है। ऐसी स्थिति में वैश्विक कंपनियों के लिए विभिन्न तरह के उपभोक्ताओं के लिए अलग अलग उत्पाद बनाना बहुत मुश्किल हो जाता है।


7. विदेशी विनिमय में उतार चढ़ाव - दो देशों के बीच विनिमय दर कभी भी स्थिर नही रहती। इसमे वृद्धि या गिरावट आती रहती है। विनिमय दर में प्रतिकूल परिवर्तन होने पर निर्यातकों व आयातकों को अत्यधिक हानि होती है। इससे निर्यातकों व आयातकों के लिए अनिश्चितता का माहौल बना रहता है।


8. टेक्नोलॉजी की चोरी - कई बार कुछ मेजबान देशों में पेटेंट सम्बन्धी अधिनियम बहुत सख्त नही होते। इससे विदेशी कंपनी की नवाचारी टेक्नोलॉजी, कॉपीराइट आदि की चोरी हो जाती है। मेजबान देश मे इसके नकली उत्पाद बनने लगे जाते है। अतः वैश्विक कंपनियां ऐसे देशों में जाने में हिचकिचाती है। 

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