अन्तराष्ट्रीय आर्थिक वातावरण के बारे में जानकारी

हेलो दोस्तों।

इस पोस्ट में हम अन्तराष्ट्रीय आर्थिक वातावरण के बारे में जानेंगे।

अन्तराष्ट्रीय आर्थिक वातावरण (International Economic Environment)

अन्तराष्ट्रीय वातावरण के सभी घटकों में से आर्थिक वातावरण सबसे महत्वपूर्ण है। इनमे निम्न शामिल है :

1. घरेलू अर्थव्यवस्था का आर्थिक वातावरण

2. व्यापार चक्र की दशा

3. विदेशी निवेश

4. अन्तराष्ट्रीय संस्थाएं जैसे अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, अंकटाड, विश्व व्यापार संगठन।

5. अन्तराष्ट्रीय व्यापार समझौते - जी.एस.पी., जी.एस. टी.पी., प्रति व्यापार, क्षेत्रीय आर्थिक समूह।



अन्तराष्ट्रीय आर्थिक वातावरण के बारे में जानकारी
अन्तराष्ट्रीय आर्थिक वातावरण के बारे में जानकारी




1. घरेलू अर्थव्यवस्था का आर्थिक वातावरण - आर्थिक वातावरण का अभिप्राय उन आर्थिक तत्वों से है जिनका व्यवसाय के कार्य संचालन पर प्रभाव पड़ता है जैसे आर्थिक व्यवस्था, आर्थिक नीति, अर्थव्यवस्था की प्रकृति, व्यापार चक्र, आर्थिक संसाधन, आय स्तर, आय और धन का वितरण आदि। आर्थिक स्थितियां, आर्थिक नीतियां और आर्थिक प्रणाली महत्वपूर्ण तत्व है।


2. व्यापार चक्र की दशा - समृद्धि, तेजी, अवनति, मंदी, पुनरुथान व्यापार चक्र की दशाएं है। व्यापार चक्र की अवस्था किसी भी उद्यम के कार्य व लाभ को प्रभावित करती है। अगर अर्थव्यवस्था में तेजी की स्थिति पाई जाती है तो इससे मांग बढ़ती है और व्यावसायिक इकाई की बिक्री बढ़ती है। इसी तरह मंदी की स्थिति में मांग में कमी आती है और व्यावसायिक इकाई पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। अब वैश्वीकरण के कारण, एक देश मे समृद्धि या तेजी की अवस्था दूसरे देश को भी प्रभावित करती है। अब विश्व मंदी की अवस्था से धीरे धीरे बाहर आ रहा है। पिछले कुछ वर्षों में कीमतों में गिरावट आई है।

अन्तराष्ट्रीय व्यवसायिक वातावरण

3. विदेशी निवेश - विदेशी निवेश का अभिप्राय एक राष्ट्र द्वारा किसी दूसरे राष्ट्र में किए गए निवेश से है। यह निवेश सरकार द्वारा या निजी क्षेत्र द्वारा किया जा सकता है। आजकल विश्व के अधिकांश भाग में विदेशी निवेश के स्वतंत्र प्रवाह से विदेशी निवेश का महत्व और भी बढ़ गया है। विदेशी निवेश दो प्रकार का होता है विदेशी प्रत्यक्ष निवेश और पोर्टफोलियो निवेश।


4. अन्तराष्ट्रीय संस्थाएं - वर्ष 1930 तक अन्तराष्ट्रीय भुगतानों में, किसी न किसी रूप में स्वर्णमान प्रचलित था। इस व्यवस्था में अन्तराष्ट्रीय व्यापार में स्वर्ण मुद्रा या ऐसी मुद्रा जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सवर्ण में परिवर्तनशील हो, उसका प्रयोग किया जाता था। स्वर्णमान कि कमियों के कारण इसे 1930 में अधिकतर देशों द्वारा बंद कर दिया गया। स्वर्णमान के बंद होने से अन्तराष्ट्रीय व्यापार में रिक्तता आ गयी। अधिकतर देशों ने यह अनुभव किया कि अन्तराष्ट्रीय व्यापार में भुगतान के लिए उन्हें ऐसी संस्था की जरूरत है जो विभिन्न देशों की मुद्रा में विनिमय दर निर्धारित करे। ऐसे में 1944 में यह निर्णय लिया गया कि सभी देशों के आर्थिक विकास के लिए दो संस्थाएं अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष व विश्व बैंक की स्थापना की जाए। 1947 में सीमा शुल्क और व्यापार पर सामान्य समझौते की शुरुआत की गई। 1995 में गैट के स्थान पर विश्व व्यापार संगठन की स्थापना की गई। अल्पविकसित देशों में व्यापार और विकास को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त रिश्ते संघ द्वारा 1964 में संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन (UNCTAD) की स्थापना की गई।


5. अन्तराष्ट्रीय व्यापार समझौते - समय समय पर विदेशी व्यापार को एच्छित दिशा में निर्देशित करने के लिए विभिन्न राष्ट्रों के बीच व्यापारिक समझौते किए जाते है। ये समझौते कुछ पड़ोसी देशों के बीच, विभिन्न विकासशील देशों के बीच या विकासशील व विकसित देशों के बीच हो सकते है। इन समझौतों में विदेशी व्यापार से सम्बंधित शर्तें तय की जाती है जो सभी सदस्य देशों का मान्य हो। इन समझौतों का उद्देश्य विदेशी व्यापार को बढ़ाना व विदेशी व्यापार की रुकावटों को दूर करना है। समांयकृत अधिमान व्यवस्था, व्यापारिक अधिमानों की विश्व व्यवस्था, प्रति व्यापार समझौता, क्षेत्रीय आर्थिक समूह, क्षेत्रीय व्यापारिक समझौते मुख्य अन्तराष्ट्रीय व्यापार समझौते है। 

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