Contractual Entry Mode in International Business in Hindi

हेलो दोस्तों।

इस पोस्ट के अंतर्गत अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय में अनुबंधीय प्रवेश प्रारूप के बारे में बताया गया है। 


अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय में अनुबंधीय प्रवेश प्रारूप (Contractual Entry Mode in International Business)

अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय में प्रवेश का यह प्रारूप अमूर्त सम्पत्तियों; जैसे पेटेंट, टेक्नोलॉजी, प्रबन्धकीय विशेषज्ञता, कॉपीराइट आदि के निवेश के लिए किया जाता है। जब मूल कंपनी ने अनुसन्धान व नवाचार से कोई नई टेक्नोलॉजी या अन्य अमूर्त सम्पत्ति विकसित की है, तो यह कंपनी अपनी इसी नवाचारी टेक्नोलॉजी या अमूर्त सम्पत्ति के अनुसन्धान सम्बन्धी व्यय पूरे करने के लिए तथा इस पर लाभ अर्जित करने के लिए इस टेक्नोलॉजी को विदेश में बेच सकती है। इस प्रवेश प्रारूप को तकनीकी सहयोग भी कहते है। जो कंपनी टेक्नोलॉजी प्रदान करती है, वह इसके प्रतिफल के रूप में एकमुश्त राशि प्राप्त करती है या नियमित रूप से विक्रय पर रॉयल्टी प्राप्त करती है। यह समझौता एक निश्चित समय अवधि के लिए व किसी निर्धारित भौगोलिक क्षेत्र के लिए ही होता है। यह प्रारूप तब अपनाया जाता है जब विदेशी कंपनी मेजबान देश मे अधिक पूंजी निवेश नही करना चाहती।


अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय में अनुबंधीय प्रवेश प्रारूप
अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय में अनुबंधीय प्रवेश प्रारूप


तकनीकी सहयोग के विभिन्न प्रारूप लाइसेंसिंग, फ़्रेंचाइज़िंग, प्रबन्धकीय अनुबन्ध, टर्नकी परियोजनाएं आदि है।

1. लाइसेंसिंग व फ़्रेंचाइज़िंग - इसके अंतर्गत एक देश की व्यावसायिक इकाई दूसरे देश की व्यावसायिक इकाई को अपनी बौद्धिक संपदा जैसे पेटेंट, ट्रेडमार्क, कॉपीराइट आदि को प्रयोग करने का अधिकार किसी अन्य देश की व्यावसायिक इकाई को प्रदान करती है। लाइसेंस प्राप्त करने वाली व्यावसायिक इकाई लाइसेंस धारक व्यावसायिक इकाई को एक निश्चित समय अवधि के लिए रॉयल्टी या फीस देती है। अधिकतर देशों में रॉयल्टी की यह दर विक्रय के 5 प्रतिशत से 8 प्रतिशत के बीच होती है।

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2. प्रबन्धकीय समझौता - इस समझौते के अंतर्गत विदेशी कंपनी किसी अन्य देश मे अपनी प्रबन्धकीय एजेंसियां स्थापित करती है। इन प्रबन्धकीय एजेंसियों की सहायता से यह अन्य देशों की व्यावसायिक इकाइयों में बिना अपनी पूंजी निवेश किए, इन्हें प्रबंधित करती है। अर्थात इस समझौते में केवल प्रबन्धकीय जानकारी ही उपलब्ध करवाई जाती है। इस सेवा के बदले विदेशी कंपनी घरेलू कंपनी से लाभ का कुछ प्रतिशत या एकमुश्त राशि फीस के रूप में लेती है।


3. टर्नकी परियोजनाएं - इस समझौते में एक देश की व्यावसायिक इकाई किसी दूसरे देश की व्यावसायिक इकाई के लिए पूर्ण प्लांट करने का समझौता करती है। जो व्यावसायिक इकाई प्लांट का निर्माण करती है, उसे लाइसेंसर कहते है। जिस व्यावसायिक इकाई को पूर्ण निर्मित प्लांट मिलना है उसे लाइसेंसधारी कहते है। जब परियोजना की प्रारंभिक अवस्था, कार्यात्मक अवस्था की तुलना में अधिक जटिल होती है तो ऐसी परिस्थिति में टर्नकी परियोजना समझौते किए जाते है। इन समझौतों में लाइसेंसर के पास प्लांट निर्माण सम्बन्धी तकनीकी कौशल, ज्ञान तथा अनुभव होता है। इस सेवा के लिए लाइसेंसर या तो एकमुश्त राशि के रूप में या कुल परियोजना लागत का निर्धारित प्रतिशत प्रतिफल के रूप में लेता है।


जब नई परियोजना को शुरू करने के लिए लाइसेंसधारी के पास अनुभव व मुख्य तकनीक की कमी होती है तो यह समझौता लाइसेंसधारी के लिए भी लाभकारी होता है। इस परियोजना से लाइसेंसधारी विश्वस्तरीय आधुनिक डिज़ाइन का लाभ उठा सकता है। लेकिन तकनीकी ज्ञान के अभाव के कारण लाइसेंसधारी की भविष्य में भी लाइसेंसर पर निर्भरता बनी रहती है। 

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