Counter Trade and Its Types in Hindi

हेलो दोस्तों।

इस पोस्ट में हम प्रति व्यापार और इसके प्रकारों के बारे में जानेंगे।


प्रति-व्यापार (Counter Trade)

प्रति व्यापार ऐसा अनुबन्ध है जिसमें निर्यात करने के लिए उसी मूल्य का आयात करना होता है। वह समझौता दो राष्ट्रों के बीच होता है जिसमें एक देश, दूसरे देश से इस शर्त पर आयात करता है कि दूसरा देश भी पहले देश के बराबर मूल्य की वस्तुओं का आयात करे। इस तरह के अन्तराष्ट्रीय व्यापार में विदेशी मुद्रा की आवश्यकता नही पड़ती और देश के भुगतान शेष पर कोई भार नही पड़ता। यह एक तरह का वस्तु विनिमय व्यापार है। प्राचीन काल मे विभिन्न देशों के बीच इसी तरह का व्यापार होता था, क्योंकि इसमें मुद्रा की आवश्यकता नही पड़ती थी। समय के साथ मुद्रा का विकास हुआ और मुद्रा को विभिन्न व्यवहारों के विनिमय में स्वीकार किया जाने लगा। मुद्रा के विकास से प्रति व्यापार में और भी लोचशीलता आ गयी।



प्रति व्यापार और इसके प्रकारों के बारे में जानकारी
प्रति व्यापार और इसके प्रकारों के बारे में जानकारी




अब दो देशों के अन्तराष्ट्रीय व्यापार में वस्तुओं का विनिमय एक ही समय पर होना अनिवार्य नही रहा। इससे प्रति व्यापार का विकास हुआ। अब एक देश आयात करते समय दूसरे देश पर एक निश्चित समय अवधि में उतने ही मूल्य की वस्तुओं को आयात करने की शर्त लगाता है। अन्तराष्ट्रीय व्यापार में प्रति व्यापार आज भी प्रचलित है।



प्रति-व्यापार के प्रकार (Types of Counter Trade)

1. वस्तु विनिमय - यह प्रति व्यापार का सबसे सरल प्रारूप है। इसमें दो देशों के बीच, बिना नकद भुगतान के उत्पाद/सेवाओं का प्रत्यक्ष विनिमय होता है। यह एक ही समय मे या एक निश्चित समय अवधि के अंदर दो अलग अलग समय पर हो सकता है। कई बार एक देश को ऐसे उत्पाद भी आयात करने पड़ते है, जिनका आयातक देश के लिए विशेष महत्व नही होता।

प्रति व्यापार के लाभ

2. प्रति क्रय - इसमें व्यावसायिक इकाई यह समझौता करती है कि यह जिस देश में अपना उत्पाद बेचेगी, उससे कुछ विशेष उत्पाद खरीदेगी। जैसे एक अमिरेकन कंपनी भारत मे अपना उत्पाद बेचती है। भारत को इस कंपनी को अमेरिकन डॉलर के रूप में इसका भुगतान करना था, परन्तु अमेरिकन कंपनी इस भुगतान को नकद लेने के स्थान पर यह समझौता करती है कि यह निर्धारित समय मे भारत मे टैक्सटाइल खरीदेगी। इन दोनों व्यवहारों में मुद्रा का लेन देन केवल सेवा पुस्तको में ही होता है। वास्तव में मुद्रा का आदान प्रदान नही होता।

अन्तराष्ट्रीय व्यावसायिक वातावरण

3. ऑफ सेट - ऑफ सेट समझौते में उत्पाद निर्यात करने वाली इकाई इस बात पर सहमति करती है कि उत्पाद का निर्यात मूल्य नकद में न लेकर यह इसके बदले में निर्यात मूल्य के बराबर निर्धारित समय मे कोई उत्पाद आयात करेगी। ऑफ सेट समझौता प्रति क्रय समझौता ही है। अंतर केवल इतना है कि प्रति क्रय में विशेष उत्पाद ही किया जाता है, जबकि ऑफ सेट में उतने ही मूल्य का कोई अन्य उत्पाद भी आयात किया जा सकता है।

4. प्रतिफल - इस समझौते को क्रय वापसी समझौता भी कहते है। इस समझौते में एक देश की व्यावसायिक इकाई अन्य देश मे फेक्ट्री स्थापित करने के लिए पूंजी या टेक्नोलॉजी या दोनो प्रदान करती है। इसके बदले में यह उस फैक्ट्री के उत्पादन का एक निर्धारित प्रतिशत एक निश्चित समय अवधि में प्रतिफल के रूप में लेती है।



5. स्विच ट्रेडिंग - यह एक तरह का प्रति क्रय समझौता है। इसमें निर्यातक को निर्यात के प्रतिफल के रूप में कुछ प्रति क्रय क्रेडिट मिलते है। इसे निर्यातकर्ता किसी तृतीय पार्टी को हस्तांतरित कर सकता है। अर्थात अगर निर्यातकर्ता खुद उत्पाद क्रय नही करना चाहता तो क्रेडिट का यह अधिकार वह किसी अन्य तृतीय पार्टी को या ट्रेडिंग हाउस को बेच सकता है।


6. चुकता लेन देन समझौता - इस समझौते में निर्यातक व आयातक दोनो देशों के केंद्रीय बैंकों में चुकता लेन देन खाता खोलते है। निर्यात व आयात बिना मुद्रा का आदान प्रदान से होता है। निर्यातक को आयातक से सीधे कोई भुगतान नही मिलता। बल्कि उसे अपने देश के केंद्रीय बैंक से अपनी घरेलू मुद्रा में भुगतान प्राप्त होता है। दूसरी तरफ आयातक के लिए भुगतान निर्यातक को सीधे न करके अपने देश के केंद्रीय बैंक को अपने देश की मुद्रा में करता है। दोनो देशों के केंद्रीय बैंक चुकता लेन देन गृह के रूप में कार्य करते हैं। 

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