Investment Mode in International Business in Hindi

हेलो दोस्तों।

इस पोस्ट में हम अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय में निवेश प्रारूप के बारे में जानेंगे।

अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय में निवेश प्रारूप (Investment Mode in International Business)

इस प्रारूप में मेजबान देश मे पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी या आंशिक स्वामित्व वाली सहायक कंपनी स्थापित की जाती है। यह मेजबान देश मे विद्यमान कंपनी के साथ विलयन या अधिग्रहण द्वारा भी स्थापित की जा सकती है। अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय में प्रवेश की इस विधि का चयन तब किया जाता है जब मूल कंपनी के पास विशाल मात्रा में निवेश योग्य पूंजी है, प्रबन्धकीय विशिष्टता है, जोखिम वहन क्षमता है। मेजबान देश मे व्यावसायिक वातावरण अनुकूल है, बाजार आकार बहुत विशाल है, भौतिक अधोसंरचना सुविकसित है, सरकार का विदेशी निवेश के अन्तरप्रवाह के प्रति दृष्टिकोण अनुकूल है, सांस्कृतिक वातावरण अच्छा है, उत्पादन के घटक पर्याप्त मात्रा व कम लागत पर उपलब्ध है। निवेश प्रारूप के मुख्य प्रकार निम्नलिखित है:


अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय में निवेश प्रारूप
अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय में निवेश प्रारूप



1. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश - विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का तात्पर्य विदेशी कंपनियों द्वारा भारत मे पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनियां बनाने और उनका प्रबन्ध करने से है। इसके अन्तराष्ट्रीय प्रबन्ध करने के उद्देश्य से अंशों को खरीद कर ली गयी कंपनी भी शामिल है। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की मुख्य विशेषता मेजबान देश मे कंपनियों को अपने प्रबन्ध में लेना या मेजबान देश मे प्रबन्ध के उद्देश्य से पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनियां बनाना है। इस तरह के निवेश के उद्यम का पूरा जोखिम विदेशी निवेशक ही उठाता है और विदेशी निवेशक ही उद्यम के पूरे लाभ या हानि के लिए जिम्मेवार होता है।

अनुबंधीय प्रवेश प्रारूप 

विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का एक अन्य रूप विदेशी सहयोग है। इसमे विदेशी और घरेलू उद्यमी मिलकर संयुक्त उद्यम स्थापित करते हैं। यह विदेशी सहयोग वित्तीय सहयोग या तकनीकी सहयोग हो सकता है। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश समांतर या लम्बवत दिशा में हो सकता है।


2. विलयन एवं अधिग्रहण - प्रवेश के इस प्रारूप में विदेशी कंपनी अन्य देश मे विद्यमान व्यावसायिक इकाई के साथ विलयन या अधिग्रहण का समझौता करती है। यह प्रत्यक्ष निवेश से भिन्न है क्योंकि उसमें मेजबान देश मे एक नई कंपनी की स्थापना की जाती है। जबकि विलयन व अधिग्रहण में मूल कंपनी मेजबान देश मे पहले से स्थापित व्यावसायिक इकाई के साथ गठबंधन का समझौता करती है। विलयन या अधिग्रहण समांतर, लम्बवत हो सकता है। समांतर विलयन में एक जैसी व्यावसायिक क्रियाएं करने वाली, एक जैसे उत्पाद बनाने वाली व्यावसायिक इकाइयां आपस मे विलयन करती है, जैसे ऑटोमोबाइल बनाने वाली एक इकाई अन्य ऑटोमोबाइल निर्माणी इकाई से मिलकर विलयन समझौता करती है। समांतर विलयन से उत्पादन के बड़े पैमाने की बचतें प्राप्त होती है, प्रतिस्पर्धा में कमी आती है, स्थायी व्ययों में बचते होती है, टेक्नोलॉजी व प्रबन्ध कौशल का बेहतर उपयोग हो पाता है।


3. व्यूहरचनात्मक गठबंधन - यह गठबंधन दो व्यावसायिक इकाइयों के बीच किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है जैसे नवाचारी टेक्नोलॉजी के विकास के लिए साझी अनुसन्धान व विकास इकाई स्थापित करना, साझे प्रशिक्षण कार्यक्रम द्वारा दोनो व्यावसायिक इकाइयों के कर्मचारियों को प्रशिक्षण देना, दोनो व्यावसायिक इकाइयों के ग्राहकों को विक्रय उपरांत सेवाएं उपलब्ध करवाने के लिए साझा उपभोक्ता सेवा केंद्र स्थापित करना आदि।


कई बार विदेशी बाजार में प्रवेश लेने के लिए व्यूहरचनात्मक गठबंधन किया जाता है। इसमें एक देश की व्यावसायिक इकाई अन्य देश की व्यावसायिक इकाई से यह गठबंधन करती है कि वह उसके बाजार क्षेत्र में प्रवेश करेगी। इस गठबंधन में दोनों इकाइयां अपने अस्तित्व को बनाए रखती है, एक दूसरे की क्रियाओं में कोई दखलंदाजी नही करती, स्वामित्व में कोई हस्तांतरण नही होता। इसमें मेजबान देश मे कोई सहायक कंपनी स्थापित करने की आवश्यकता नही होती। इस गठबंधन को रद्द करना बहुत ही सरल है क्योंकि इसमें न तो स्वामित्व का हस्तांतरण होता है और न ही कोई नई विदेशी सहायक कंपनी की स्थापना की जाती है। 

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