वैश्विक वित्तीय व्यवस्था के बारे में जानकारी

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इस पोस्ट में वैश्विक वित्तीय व्यवस्था के बारे में बताया गया है।


वैश्विक वित्तीय व्यवस्था (Global Financial System)

वैश्विक वित्तीय व्यवस्था का अभिप्राय अन्तराष्ट्रीय स्तर पर कार्य कर रही वित्तीय संस्थाओं व अधिनियमों से है। ये संस्थाएं व अधिनियम अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय की मात्रा, ढांचे व दिशा को प्रभावित करते हैं। अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय का विकास भौतिक वैश्विक वित्तीय व्यवस्था की स्थिरता पर निर्भर करता है, हाल के वर्षों के अन्तराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार व पूंजी के प्रवाह में अत्यधिक वृद्धि हुई है। अन्तराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था को नियमित करने वाली मुख्य वैश्विक संस्थाएं है : अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, विश्व व्यापार संगठन, अंकटाड, बैंक फ़ॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट आदि।



वैश्विक वित्तीय व्यवस्था के बारे में जानकारी
वैश्विक वित्तीय व्यवस्था के बारे में जानकारी



इन अन्तराष्ट्रीय वैश्विक संस्थाओं का मुख्य उद्देश्य अन्तराष्ट्रीय तरलता, अन्तराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देना, विभिन्न देशों के वित्तीय स्थिरता को बनाए रखना, अन्तराष्ट्रीय स्तर पर पूंजी के प्रवाह को बढ़ावा देना, विश्व को अन्तराष्ट्रीय संकट से बचाना आदि है।


वर्ष 2008 में अमेरिका से शुरू हुए वित्तीय संकट के कुप्रभाव से विश्व को बचाने में तथा वर्ष 2011 में यूरोपियन देशों में आये सार्वजनिक ऋण संकट से उबारने में वैश्विक वित्तीय संस्थाओं ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वैश्विक वित्तीय संकट तथा यूरोपियन सार्वजनिक ऋण संकट से पीड़ित देशों के लिए विशेष कोष की स्थापना की।


19वी शताब्दी के अंतिम वर्षों व बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में अन्तराष्ट्रीय व्यापार में संलग्न अधिकतर देशों ने स्वर्णमान को अपना लिया। स्वर्णमान में अन्तराष्ट्रीय व्यापार में स्वर्णमुद्रा या ऐसी मुद्रा जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्वर्ण में परिवर्तनशील हो, उसका प्रयोग किया जाता था।


1981 से 1914 की अवधि में स्वर्णमान व्यवस्था अच्छी तरह से चली। परन्तु पहले विश्व युद्ध के दौरान इसे कुछ देशों में बंद कर दिया गया। वर्ष 1930 तक लगभग सभी देशों में स्वर्णमान व्यवस्था को रद्द कर दिया गया। स्वर्णमान के बंद होने से अन्तराष्ट्रीय व्यापार में रिक्तता आ गयी। वर्ष 1929 में जर्मनी से शुरू हुई आर्थिक मंदी ने अन्य देशों पर भी बहुत कुप्रभाव डाला। इस अवधि में बहुत से देशों में बहुत अधिक दर से टैरिफ लगाए गए। इससे अन्तराष्ट्रीय व्यापार पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। इसके अलावा दूसरे विश्व युद्ध जो 1939 से शुरू हुआ, ने भी वैश्विक आर्थिक स्थिरता को बहुत बुरी तरह प्रभावित किया।


द्वितीय विश्वयुद्ध के अंतिम वर्षों में विभिन्न देशों ने यह अनुभव किया कि अन्तराष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसा फोरम होना चाहिए जो विश्व मे आर्थिक सहयोग व अन्तराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा दे तथा संकटकाल में जरूरतमंद देशों की सहायता करें। द्वितीय विश्वयुद्ध के विश्व की अर्थव्यवस्था पर बहुत प्रभाव पड़ा। वैश्विक वित्तीय व्यवस्था के सुधार करने के विचार से अमेरिका में जुलाई, 1944 में ब्रेटन वुड्स के स्थान पर एक अन्तराष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया गया। इस सम्मेलन में 44 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस संमेलन में यह निश्चित किया गया कि सभी देशों के बीच अन्तराष्ट्रीय व्यापार व आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए तथा आर्थिक विकास के लिए दो संस्थाएं स्थापित की जाए ये संस्थाएं थी (i) अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा (ii) विश्व बैंक।


अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना 27 दिसम्बर 1945 को हुई। इसकी स्थापना विश्व व्यापार के संतुलित विकास, अन्तराष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग तथा सदस्य देशों के भुगतान शेष की अस्थायी असंतुलन की समस्या को सुलझाने के उद्देश्य से की गई। 2014 में IMF के सदस्य देशों की संख्या 188 थी। IMF का मुख्यालय वाशिंगटन ड़ी. सी. , तथा यू.एस. ए. में है।


विश्व बैंक का उद्देश्य युद्ध से नष्ट हई अर्थव्यवस्थाओं के पुननिर्माण तथा सभी विसकित एवं अल्पविकसित देशों के आर्थिक विकास के लिए कोषों की व्यवस्था करना था। इस बैंक ने 27 दिसम्बर 1945 से अपना कार्य शुरू किया। वर्ष 1947 से 23 देशों ने अन्तराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए प्रशुल्क एवं व्यापार सम्बन्धी सामान्य करार पर हस्ताक्षर किए। इसमें विश्व व्यापार पर टैरिफ व गैर टैरिफ प्रतिबन्ध कम करने पर सहमति की गई। इसके अलावा इसमें व्यापार से सम्बंधित निवेश उपाय भी किए। इसमें विदेशी निवेश पर लगे सभी प्रतिबन्धों को समाप्त करने पर सहमति की गई।


वर्ष 1964 में संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन अंकटाड की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य अल्पविकसित देशों में व्यापार व विकास को बढ़ावा देना है। 

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