Methods of Protection in Free Trade in Hindi

हेलो दोस्तों।

इस पोस्ट में संरक्षण की विधियों के बारे में बताया गया है।


संरक्षण की विधियां (Methods of Protection)

संरक्षण नीति के संयंत्रों/विधियों को निम्न मुख्य श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है जैसे प्रशुल्क प्रतिबन्ध, गैर प्रशुल्क प्रतिबन्ध और प्राकृतिक प्रतिबन्ध।

1. प्रशुल्क प्रतिबन्ध - अन्तराष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए विश्व के सभी देश प्रशुल्क का प्रयोग करते है। जब कोई व्यापार वस्तुएं राष्ट्रीय सीमा को पार करती है तब उस पर लगाए जाने वाले कर को प्रशुल्क कहते है। आयात प्रशुल्क आयातित वस्तुओं पर लगाए जाने वाले कर है जबकि निर्यात प्रशुल्क निर्यातित वस्तुओं पर लगाए जाने वाले कर है। संरक्षण की नीति के संदर्भ में आयात प्रशुल्क निर्यात प्रशुल्क से अधिक महत्वपूर्ण होते है जिससे घरेलू उत्पादकों को अन्तराष्ट्रीय प्रतियोगिता में संरक्षण प्राप्त होता है। आयात प्रशुल्क तीन प्रकार के होते है विशिष्ट कर, मूल्यनुसार कर और संयुक्त टैरिफ।



Methods of Protection in Free Trade in Hindi
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2. गैर प्रशुल्क प्रतिबन्ध - वे रोकें जिनसे आयातित वस्तु की कीमत में सीधे वृद्धि नही होती, गैर प्रशुल्क रोकें कहलाती है। दूसरे शब्दों में कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष व्यापार प्रतिबन्ध जिसमें प्रशुल्क सम्मिलित नही होता, गैर प्रशुल्क रोक कहलाता है। कुछ महत्वपूर्ण गैर प्रशुल्क रोके निम्नलिखित है :

(i) वित्तीय अनुदान - स्वदेशी उद्योगों के संरक्षण की यह एक परोक्ष विधि है। विदेशी आयतों पर प्रतिबंध या कर लगाने के स्थान पर स्वदेशी वस्तुओं के उत्पादन पर वित्तीय अनुदान होती है। इस प्रकार सहायता प्राप्त उद्योग अपनी वस्तुओं का उत्पादन बढाकर विदेशों से कम लागत पर वस्तुओं का उत्पादन कर सकते है।


(ii) अवमूल्यन - किसी देश की मुद्रा के अवमूल्यन से आयातों में कमी तथा निर्यातों को प्रोत्साहन मिलता है। अवममूल्यन के कारण देश की मुद्रा की कीमत विदेशी मुद्रा की कीमत की तुलना में कम हो जाती है। अतएव मुद्रा का अवमूल्यन करने से आयात महँगे हो जाते है तथा निर्यात सस्ते हो जाते है। इसलिए निर्यातों के वृद्धि हो जाती है।


(iii) लाइसेंस प्रणाली - सरकार अनुचित तथा आवश्यक आयातों को कम करने के लिए लाइसेंस प्रणाली प्रारम्भ कर देती है। किसी भी वस्तु को आयात करने के लिए सरकार से लाइसेंस लेना जरूरी होता है। सरकार उन वस्तुओं के आयात का लाइसेंस नही देती जिनके उत्पादन की देश मे वृद्धि की जानी है। इस प्रकार भी सरकार उद्योगों को संरक्षण देती है।


(iv) द्विपक्षीय समझौते - किन्ही दो देशों में आयात निर्यात करों के सम्बन्ध में एक दूसरे को विशेष सुविधाएं देने के लिए समझौता हो जाता है। ये सुविधाएं अन्य देशों पर लागू नही होती। इससे इन दो देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा मिलता है। इस प्रकार व्यापार में वृद्धि भी होती है तथा स्वदेशी उद्योगों को संरक्षण भी मिल जाता है।


(v) प्रशासनिक प्रतिबन्ध - कईं बार आयतों को कम करने के लिए सरकार जानबूझ कर प्रशासनिक औपचारिकताएं बढ़ा देती है ताकि इनसे लोग आयात के लिए हतोत्साहित हो जाए, जैसे उत्पादों की अत्यधिक जांच पड़ताल, जटिल फार्म व अत्यधिक कागजी कार्यवाही, मंजूरी में अत्यधिक देरी, उत्पादों की लेबलिंग व पैकिंग से सम्बंधित अत्यधिक प्रावधान आदि। इन औपचारिकताओं से परेशान होकर लोग आयात का विचार ही छोड़ देते हैं।


3. प्राकृतिक प्रतिबन्ध - अन्तराष्ट्रीय व्यापार के अधिकतर सिद्धान्त इस अवास्तविकता मान्यता पर आधारित है कि अन्तराष्ट्रीय व्यापार पर परिवहन लागतों का कोई प्रभाव नही पड़ता। इन सिद्धान्तों में परिवहन लागत की उपेक्षा की गई है। परन्तु वास्तविक जीवन मे परिवहन लागत का अन्तराष्ट्रीय व्यापार पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।


जब तो दो देशों में किसी वस्तु का उत्पादन लागतों में पाया जाने वाला अंतर परिवहन लागत से अधिक नही होगा, उस समय तक वस्तु का आयात और निर्यात नही किया जा सकेगा। अतएव किसी देश की निर्यात की क्षमता केवल उत्पादन की तुलनात्मक लागत पर पूर्ण रूप से निर्भर नही होती, बल्कि साथ ही साथ परिवहन लागत पर भी निर्भर होती है। अगर परिवहन लागत दो देशों में किसी वस्तु की कीमत अंतर से अधिक है तो उन देशों में उस वस्तु का व्यापार नही होता।


अन्तराष्ट्रीय व्यापार में अत्यधिक दूरी के कारण उत्पादों के परिवहन में बहुत खर्चा हो जाता है, जैसे माल भाड़ा, बीमा व्यय, माल को लादने व उतारने सम्बन्धी व्यय, पोर्ट व्यय आदि। परिवहन लागत से आयातित उत्पादों की कीमत बढ़ जाती है। अगर परिवहन लागत घरेलू कीमत व विदेशी बाजार में कीमत का अंतर से अधिक है तो उस उत्पाद को विदेश से आयात नही किया जाता। परन्तु अगर परिवहन लागत घरेलू कीमत व विदेशी बाजार में कीमत के अंतर से कम है तो विदेश व्यापार होता है। परन्तु प्रत्येक दशा में परिवहन लागत अन्तराष्ट्रीय व्यापार की मात्रा को कम करता है।


परिवहन लागत से अन्तराष्ट्रीय व्यापार के लाभ कम हो जाते है क्योंकि परिवहन लागत से लागत अंतर कम हो जाता है। परिवहन लागत से विदेशी व्यापार की मात्रा भी कम हो जाती है। 

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