स्वतंत्र व्यापार में संरक्षण के बारे में जानकारी

हेलो दोस्तों।

इस पोस्ट में स्वतंत्र व्यापार में संरक्षण नीति के बारे में बताया गया है। 

संरक्षण (Protection)

संरक्षण शब्द से अभिप्राय ऐसी नीति से है जिसके द्वारा स्वदेशी उद्योगों को विदेशी प्रतियोगिता से सुरक्षित रखा जाता है। इसका लक्ष्य निम्न कीमतों वाली वस्तुओं के आयातों पर प्रतिबंध लगाना है जिससे ऊंची कीमतों वाली वस्तुओं को उत्पादित करने वाले स्वदेशी उद्योगों को प्रोत्साहित किया जा सके। स्वदेशी उद्योगों को सुरक्षित करने के लिए विदेशी वस्तुओं पर इस दर से आयात कर लगाए जाते है जिससे उनकी कीमतें स्वदेशी वस्तुओं की कीमतों से अधिक हो जाए, या इन्हें कोटा प्रणाली द्वारा सुरक्षित किया जाता है या अन्य गैर प्रशुल्क प्रतिबन्ध लगाए जाते है जिनके कारण सस्ती विदेशी वस्तुओं का आयात कठिन या असम्भव हो जाता है, या स्वदेशी उद्योगों को वित्तीय सहायता दी जाती है जिससे से सस्ती विदेशी वस्तुओं से प्रतियोगिता कर सके।



स्वतंत्र व्यापार में संरक्षण के बारे में जानकारी
स्वतंत्र व्यापार में संरक्षण के बारे में जानकारी



संरक्षण की नीति स्वतंत्र व्यापार की नीति से बिल्कुल अलग है। स्वतंत्र व्यापार में सरकार अन्तराष्ट्रीय व्यापार में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नही करती परन्तु संरक्षण की नीति के सरकार कई आर्थिक तथा अनार्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अन्तराष्ट्रीय व्यापार में हस्तक्षेप करती है। सरकार अन्तराष्ट्रीय व्यापार में कईं प्रकार के प्रतिबन्ध लगाती है, कई वस्तुओं के निर्यात को प्रोत्साहन देती है। इसके विपरीत कई वस्तुओं के आयात को हतोत्साहित करती है।



सरंक्षण के पक्ष में तर्क (Arguments for Protection)

संरक्षण के पक्ष में दिए गए तर्कों को दो ग्रुपों में बांटा है आर्थिक तथा गैर आर्थिक।

1. आर्थिक तर्क (Economic Arguments)

(i) व्यापार की शर्तें तर्क - देश के भुगतान सन्तुलन के असंतुलन को ठीक करने के लिए व्यापार की शर्तों का तर्क दिया जाता है। व्यापार की शर्तों का तातपर्य उस दर से है जिस पर निर्यातों व आयातों  का विनिमय किया जाता है।


(ii) मोल भाव तर्क - तर्क दिया जाता है कि अन्य देशों के साथ व्यापार वार्ता में मोल भाव करने के लिए प्रशुल्क का लगाना जरूरी है। ऐसा लगता तो ठीक है, किंतु निर्धन देश धनी देशों के साथ सौदेबाजी करते समय अपने आप को निस्सहाय स्थिति में पाते है।

संरक्षण के विपक्ष में तर्क

(iii) संतुलित विकास तर्क - इसका अर्थ है कि अर्थव्यवस्था का संतुलित विकास होना चाहिए जिससे अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों का साथ साथ विकास हो सके। इसके लिए जरूरी है कि कृषि तथा विभिन्न विनिर्माण उद्योगों को विदेशी प्रतियोगिता से सुरक्षित रखा जाए।


(iv) रोजगार सम्बन्धी तर्क - देश मे रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए भी संरक्षण की नीति का समर्थन किया जाता है। आयात प्रशुल्क लगाने से आयतों में कमी आती है तथा आयात प्रतिस्थापन उद्योगों को बढ़ावा मिलता है, जिससे रोजगार में वृद्धि होती है।


(v) सामाजिक महत्व के क्षेत्रों तथा आधारभूत उद्योग तर्क - सामाजिक महत्व के क्षेत्रों जैसे कृषि तथा आधारभूत उद्योगों जैसे लोहा तथा इस्पात, भारी रसायन, मशीनें बनाने वाले उद्योग, भारी विद्युत सामग्री उद्योग, आदि को संरक्षण दिया जाना चाहिए।


(vi) स्वदेशी बाजार के विस्तार में तर्क - संरक्षण के फलस्वरूप सभी घरेलू वस्तुओं के स्वदेशी बाजार का विस्तार हो सकेगा। घरेलू इकाइयां सम्पूर्ण घरेलू बाजार में अपने उत्पाद बेच पाएंगी।



2. गैर आर्थिक तर्क (Non-Economic Arguments)

(i) सुरक्षा तर्क - सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी उद्योगों को संरक्षण प्रदान करने की नीति अपनानी चाहिए। अगर एक देश अपनी औद्योगिक तथा कृषि सम्बन्धी वस्तुओं के लिए अन्य देशों पर आश्रित रहेगा तो युद्ध के समय ऐसी निर्भरता राष्ट्रीय हित के लिए बहुत अधिक हानिकारक सिद्ध होगी।


(ii) संरक्षण तर्क - राष्ट्र के निश्चित वर्गों के लुप्त होते परम्परागत धंधों व ऐसे प्राचीन पेशों, जो देश की संस्कृति की निशानी है, को सुरक्षित रखने के लिए भी संरक्षण की नीति का समर्थन किया जाता है।


(iii) राष्ट्रीयता तर्क - संसार के अधिकतर देशों के लोग अपने देश मे निर्मित वस्तुओं का उपभोग करना नही चाहते। भारत जैसे पिछड़े हुए देशों में लम्बी दासता के कारण यह मनोवृत्ति बन गयी है कि स्वदेशी माल घटिया है और विदेशी माल हमेशा बढ़िया होता है। इस प्रवृत्ति को दूर करने के लिए स्वदेशी की भावना को जागृत किया जाता है। संरक्षण के कारण विदेशी वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगाए जाने से स्वदेशी वस्तुओं की मांग बढ़ती है और इससे राष्ट्रीय भावना भी जागृत होती है। 

Post a Comment