Difficulties in International Marketing in Hindi

हेलो दोस्तों।

इस पोस्ट में हम अन्तराष्ट्रीय विपणन में कठिनाइयों के बारे में बात करेंगे


अन्तराष्ट्रीय विपणन में कठिनाइयां (Difficulties in International Marketing)

1. उपभोक्ताओं की पसन्द व प्राथमिकताओं में अंतर - विभिन्न देशों में उपभोक्ताओं की पसन्द, प्राथमिकताएं, वातावरणीय दशाएं, भोजन आदतें, शिक्षा स्तर, आर्थिक विकास का स्तर आदि अलग अलग होने के कारण उपभोक्ताओं की उत्पाद की विशेषताओं के प्रति विभिन्न प्राथमिकताएं होती है। ऐसी स्थिति में वैश्विक कपनियों के लिए विभिन्न तरह के उपभोक्ताओं के लिए अलग अलग उत्पाद बनाना बहुत मुश्किल हो जाता है।


 

अन्तराष्ट्रीय विपणन में कठिनाइयों के बारे में जानकारी
अन्तराष्ट्रीय विपणन में कठिनाइयों के बारे में जानकारी




2. सरकार की नीतियों में अनिश्चितताएं - अगर मेजबान देश या मूल देश मे राजनीतिक अस्थिरता है तो ऐसी स्थिति में सरकार की नीतियों में बहुत अनिश्चितता रहती है। टैरिफ दरें, आयात लाइसेंस, आयात कोटा, परमिट व विदेशी व्यापार सम्बन्धी अन्य प्रावधानों आदि के सम्बन्ध में अनिश्चितता बनी रहती है। अतः विदेशी कंपनी अन्तराष्ट्रीय विपणन से सम्बंधित दीर्घकालीन योजनाएं नही बना सकती। मेजबान देश की सरकार कभी भी आयात या निर्यात पर प्रतिबन्ध लगा देती है या पैकिंग सम्बन्धी प्रावधानों में परिवर्तन कर देती है। मेजबान देश व मूल देश के बीच सम्बन्ध कभी भी तनावपूर्ण हो सकते है, जिससे इन दोनों देशों के बीच व्यापारिक सम्बन्ध समाप्त हो सकते है।


3. प्रशासनिक बाधाएं - अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय में अत्यधिक कागजी कार्यवाही होती है। विदेशी कंपनियों को विभिन्न सरकारी विभागों से मंजूरी लेनी पड़ती है, जो बहुत ही जटिल कार्य है। कस्टम विभाग से क्लीयरेंस लेना बहुत ही कठिन कार्य है। कईं बार सरकारी अधिकारी बिना किसी ठोस त्रुटि के विदेशी विपणन इकाइयों को उलझा देते है।

अन्तराष्ट्रीय कीमत निर्धारण में बाधाएं

4. विदेशी विनिमय में उतार चढ़ाव - दो देशों के बीच विनिमय दर कभी भी स्थिर नही रहती। इसमें वृद्धि या गिरावट आती रहती है। इससे निर्यातकों व आयातकों के लिए अनिश्चितता का माहौल बना रहता है।


5. घरेलू उत्पादकों द्वारा विरोध - प्रायः मेजबान देश की व्यावसायिक इकाइयां विदेशी कंपनियों के उत्पादों का विरोध करती है, क्योंकि इससे मेजबान देश की घरेलू व्यावसायिक इकाइयों को अत्यधिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। कईं बार घरेलू देश के सामाजिक संगठन भी विदेशी उत्पादों के विरुद्ध प्रदर्शन करते है। इससे विदेशी उत्पादों की छवि खराब हो जाती है।


6. टेक्नोलॉजी की चोरी - कईं बार कुछ मेजबान देशों में पेटेंट सम्बन्धी अधिनियम बहुत सख्त नही होते। इससे मेजबान देश मे विदेशी कंपनी की नवाचारी टेक्नोलॉजी, कॉपीराइट आदि की चोरी हो जाती है। मेजबान देश मे इसके नकली उत्पाद बनने लग जाते है। अतः वैश्विक कंपनियां ऐसे देशों में जाने में हिचकिचाते है।


7. रिश्वतखोरी - कईं बार विदेशी बाजारों में प्रवेश लेने के लिए वैश्विक कंपनियों को वहां के मंत्रियों को बहुत बड़ी राशि मे रिश्वत देनी पड़ती है। अन्यथा वे बिना वजह के इन विदेशी कंपनियों के रास्ते मे रुकावटें पैदा करते है।


8. विपणन अधोसंरचना में अंतर - विभिन्न देशों में विपणन अधोसंरचना में अत्यधिक अंतर होता है। इस कारण एक जैसी विपणन रणनीतियों को विभिन्न देशों में लागू नही किया जा सकता जैसे विभिन्न देशों में वितरण माध्यम, मीडिया उपलब्धता, मीडिया लागत, फुटकर व्यवस्था आदि में बहुत अंतर होता है। अतः विभिन्न देशों में अलग अलग विपणन रणनीतियाँ बनाना व उन्हें लागू करना बहुत जटिल कार्य हो जाता है।

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