International Accounting Standards and its Objectives in Hindi


हेलो दोस्तों।

इस पोस्ट में अन्तराष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप के बारे में बताया गया है।


अन्तराष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप (International Accounting Standards)

विभिन्न देशों में लेखांकन प्रमापों में एकरूपता लाने के लिए 1973 में अन्तराष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप समिति की स्थापना की गयी। इस समिति का उद्देश्य विश्व स्तर पर लेखांकन प्रमापों की स्थापना करना है। विश्व के 104 देशों की 140 से अधिक पेशेवर लेखांकन संस्थाएं इस समिति की सदस्य है। बहुत से देशों में जो IASC के सदस्य है, में एक से अधिक पेशेवर संगठन कार्यरत है। अब तक अन्तराष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप समिति ने 41 लेखांकन प्रमाप जारी किए है।




अन्तराष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप और इसके उद्देश्य के बारे में जानकारी
अन्तराष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप और इसके उद्देश्य के बारे में जानकारी




1995 में अन्तराष्ट्रीय प्रतिभूति आयोग संगठन जो विश्व के स्टॉक बाजारों को नियमित करने के लिए एक महत्वपूर्ण संगठन है, ने IASC द्वारा जारी लेखांकन प्रमापों को मान्यता प्रदान की है। इस संगठन ने लेखांकन प्रमापों में सुधार के लिए IASC को विश्व स्तर का बोर्ड गठित करने का सुझाव दिया। इस आधार पर अन्तराष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप बोर्ड की स्थापना की गई।


IASB ने सभी अन्तराष्ट्रीय लेखांकन प्रमापों को अपना लिया है, तथा प्रत्येक प्रमाप को सुधारने का कार्य शुरू कर दिया है। इस बोर्ड ने नए लेखांकन प्रमापों को भी जारी किया है, जिन्हें अन्तराष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्रमाप भी कहा जाता है।

अन्तराष्ट्रीय लेखांकन भी जाने

यूरोपियन संघ ने अपने सदस्य देशों को IFRS को अपनाने के निर्देश दिए है। अगर इन प्रमापों को EU के सदस्य देशों द्वारा पूरी तरह से अपना लिया जाता है तो अन्तराष्ट्रीय लेखांकन में एकरूपता की ओर यह एक महत्वपूर्ण कदम माना जाएगा।


अभी तक IASB द्वारा जारी लेखांकन प्रमापों को विभिन्न देशों द्वारा अपनाया जाना स्वेच्छिक है। IASB के पास ऐसी कोई शक्तियां नही है जिनसे इन लेखांकन प्रमापों को विभिन्न देशों में सख्ती से लागू करवाया जाए।



अन्तराष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप बोर्ड के उद्देश्य

1. वित्तीय विवरणों तथा अन्य वित्तीय रिपोर्टिंग में आंकड़ों के प्रस्तुतिकरण के लिए उच्च क्वालिटी के अन्तराष्ट्रीय लेखांकन प्रमापों को विकसित करना।


2. इन लेखांकन प्रमापों के प्रयोग को बढ़ावा देना।


3. छोटे व मध्यम स्तर के उपक्रमों तथा उभरती अर्थव्यवस्थाओं की विशेष आवश्यकताओं का ध्यान रखना।


4. राष्ट्रीय लेखांकन प्रमापों तथा अन्तराष्ट्रीय लेखांकन प्रमापों के बीच एकरूपता लाने के लिए कार्य करना।

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