Import Procedure in Custom Duty in Hindi

हेलो दोस्तों।

इस पोस्ट में आयात की कार्यविधि के बारे में जानेंगे।

जब कोई भारतीय व्यापारी विदेशों से किन्ही वस्तुओं का आयात करना चाहता है तो उसे कानूनी तथा कार्यवाही सम्बन्धी अनेक औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ती है। सुविधा की दृष्टि से, इन्हें निम्नलिखित चार अवस्थाओं में बांटा गया है :


Import Procedure in Custom Duty in Hindi
Import Procedure in Custom Duty in Hindi



1. प्रथम अवस्था : प्रारंभिक कार्यवाहियां

(i) व्यापारिक पूछताछ - विदेशों से माल मंगाने की दशा में यह पहला कदम है। इस अवस्था मे आयातक सबसे पहले यह तय करता है कि वह किन किन वस्तुओं का आयात करना चाहता है, ये वस्तुएं किन किन देशों के बनती है, इन्हें किन किन देशों से आसानी के साथ मंगाया जा सकता है, तथा वहां इनके व्यापारी कौन कौन लोग है।


(ii) नमूना बीजक बनवाना - आयातक चुने गए निर्यातक से निर्यात की तय सभी शर्तों पर आधारित एक नमूना बीजक।बनाकर भेजने को कहता है। यह नमूना बीजक प्रायः तीन प्रतियों में बनवाया जाता है और जब आयातक इस बीजक में शामिल शर्तों को स्वीकार करते हुए इनमें से किसी एक प्रति पर हस्ताक्षर करके इसे निर्यातक को लौटा देता है, तो वह व्यापार का संविदा बन जाता है।


(iii) आयात कार्यविधि में दूसरा महत्वपूर्ण कदम आयात तथा निर्यात नियंत्रक के कार्यालय से आयात अनुमति पत्र, सीमा शुल्क निकासी पत्र या खुला सामान्य लाइसेंस लेना है। लाइसेंस की दृष्टि से आयात की जाने वाली वस्तुओं को दो श्रेणियों के बांटा जाता है (अ) वे वस्तुएं जिनके आयात में उदारता बरती जाती है (ब) वे वस्तुएं जिनके आयात पर कड़ा नियंत्रण है और जिनका आयात करने के लिए विशेष लाइसेंस लेना होता है।



2. द्वितीय अवस्था - आर्डर देना

इस अवस्था में आयातक निम्न दो कार्यवाहियां करता है :

(i) इंडेंट भेजना - प्रारंभिक कार्यवाही पूरी हो जाने पर आयातक व्यापारी उन वस्तुओं के आयात के लिए विदेशी व्यापारी या उसके एजेंट के पास अपना सुनिश्चित आर्डर भेजता है। विदेशी व्यापार में इस आर्डर को इंडेंट कहते है।


(ii) साख पत्र खाता खोलना - प्रत्येक निर्यातक आयात करने वाले व्यापारी के आदेशों को पूरा करने से पहले उसकी भुगतान सामर्थ्य के बारे में संतुष्ट होना चाहेगा। इसके लिए आयातक प्रायः अपने बैंक से निर्यातक के नाम एक साख पत्र जारी करने का अनुरोध करता है।



3. तृतीय अवस्था - अधिकार पत्र लेना

इस अवस्था में निम्नलिखित तीन कार्यवाहियां शामिल है :

(i) सूचना प्राप्त करना - जैसे ही माल रवाना कर दिया जाता है, निर्यात व्यापारी आयातक के पास इसकी सूचना भेज देता है। इस सूचना पत्र में माल को भेजने की तिथि तथा आयातक व्यापारी के देश में पहुंचने की अनुमानित तिथि भी दी रहती है।


(ii) भुगतान करना - माल भेजने की सूचना के बाद निर्यातक, अयायक के ऊपर निर्यात किए गए माल की कुल बीजक मूल्य की राशि का एक दस्तावेजी विनिमय पत्र लिखता है और इसके साथ माल से सम्बंधित दस्तावेजों जैसे बीजक, बीमा पालिसी, जहाजी बिल्टी तथा मूल स्थान संबन्धी उद्गगम प्रमाण पत्र को जोड़कर, इन्हें अपने बैंक में भुगतान के लिए पेश करता है।


(iii) अधिकार पत्र लेना - बैंक की बीजक मूल्य का भुगतान कर देने पर अयायक को माल की सपुर्दगी के सारे अधिकार पत्र मिल जाते है। वह इन्हें लेकर माल को छुड़ाने की व्यवस्था कर सकता है। माल के अधिकार पत्रों में प्रमुख दस्तावेज पांच है जहाजी बिल्टी, बीमा पालिसी, व्यापारिक बीजक, कांसुलर बीजक, उद्गगम का प्रमाण पत्र।



4. चतुर्थ अवस्था - माल की निकासी कराना

आयातक बैंक से माल के अधिकार पत्र प्राप्त कर लेने के बाद इन अधिकार पत्रों की मदद से माल को बंदरगाह से प्राप्त करने और सीमा शुल्क विभाग से छुड़ाने की व्यवस्था करता है। इसके लिए वह निकासी एजेंट भी नियुक्त कर सकता है या स्वयं अपने प्रतिनिधियों की मार्फ़त निम्न कार्यवाहियां कर सकता है :

(i) जहाजी कंपनी से सपुर्दगी आदेश लेना - अयायक को सूचना मिलने पर की जहाज बंदरगाह पर पहुंच गया है और जहाज के कप्तान ने सीमा शुल्क अधिकारियों को जहाज के विवरणों की सूचना दे दी है, उसे निर्यातक द्वारा भेजी गई जहाजी बिल्टी जहाजी कंपनी के अधिकारियों के पास जमा करके एक सपुर्दगी का आदेश प्राप्त करना चाहिए जिसके लिए उस बिल्टी के पीछे ही सपुर्दगी के लिए बेचान करा लेना चाहिए।

माल का आयात

(ii) सीमा शुल्क का भुगतान - जहाजी कंपनी से सपुर्दगी आदेश ले लेने के बाद आयातक सीमा शुल्क अधिकारियों के द्वारा निर्धारित निम्न औपचारिकताओं को भी पूरा करता है :

सीमा शुल्क अधिकारियों से प्रवेश पत्र के फार्म की तीन प्रतियां प्राप्त करता है। इस फार्म में देश की सीमाओं के अंदर प्रविष्ट होने वाले माल की मात्रा, मूल्य तथा वर्णन का, आयातक की जानकारी और और सूचना के अनुसार, सही सही विवरण भरा जाता है। सीमा शुल्क अधिकारी ऐसे माल का स्वयं निरीक्षण करके, उस पर लगने वाले सीमा शुल्क को तय करते हैं।

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