सेवा कर की संवैधानिक वैधता के बारे में जानकारी
हेलो दोस्तों।
इस पोस्ट में सेवा कर की संवैधानिक वैधता के बारे में जानेंगे।
संविधान के अनुच्छेद 265 द्वारा किसी भी प्रकार के कर के आरोपण एव संग्रहण को निषिद्ध किया गया है जब तक कि वह विधान द्वारा अधिकृत न हो। सातवीं अनुसूची के अंतर्गत करारोपण की शक्तियों के सम्बंध में निम्न तीन सूचियां उल्लिखित है :
सेवा कर की संवैधानिक वैधता के बारे में जानकारी |
1. केंद्रीय सूची : जिनके विषय मे केवल केंद्रीय सरकार विधान लागू करने में सक्षम है।
2. राज्यों की सूची : जिनके विषय में केवल राज्य सरकारें विधान लागू करने में सक्षम है।
3. समवर्ती सूची : जिनके विषय मे केंद्र एव राज्य दोनो विधान लागू करने में सक्षम है।
संविधान की इन सूचियों में सेवाओं पर करारोपण के सम्बंध में कोई उल्लेख नही है, अतः संविधान अधिनियम 1993 द्वारा अधिसूचित एक नए अनुच्छेद 268 A द्वारा संघीय सरकार को सेवाओं पर करारोपण करने, उसके एकत्रीकरण एवं विनियोजन की शक्तियां प्राप्त हुई है। सातवीं अनुसूची की प्रथम सूची में भी संशोधन करके नई लेखा संख्या 92 B तथा 92 C अधिसूचित की गई जिससे केंद्रीय सरकार की सेवाओं पर करारोपण का विषय प्राप्त हो सका।
अतः वित्त अधिनियम 1994 की धारा 64 से 96 के द्वारा 1.7.1994 से भारत मे सेवा कर का आरम्भ हुआ। इस अधिनियम की धारा 66 सेवाओं पर कर लगाने के लिए केंद्रीय सरकार की प्राधिकृत करती है। प्रशासनिक व्यवस्था के लिए The Service Tax Rules 1994 में इस सम्बंध में अपनाई जाने वाली विभिन्न प्रक्रियाओं एव औपचारिकताओं का उल्लेख है। इसका विस्तृत विवरण इसी पुस्तक में विभिन्न अध्यायों के रूप में आगे किया गया है।
सेवा कर जाने
वित्त अधिनियम 1994 द्वारा एक दशक तक सेवाओं पर करारोपण एक असामान्य पद्धति है फिर भी अधिसूचित सेवाओं पर अप्रत्यक्ष कर के रूप में करारोपण निर्विवाद रहा है। एक पृथक Service Tax Act के अभाव में उतपन्न इस अस्पष्ट स्थिति के कारण विभिन्न उच्च न्यायालयों में सेवा कर की वैधानिकता के सम्बंध में वाद प्रस्तुत किए गए, परन्तु न्यायालयों ने सेवा कर की वैधानिकता की सदैव स्वीकार किया है। Addition Advertising vs. Union of India 98 ELT ले वाद में गुजरात उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में अन्य बातों के साथ निर्णीत किया कि सेवा कर किसी पेशे, व्यापार या रोजगार पर कर नही है वरन यह सेवाओं के प्रदान करने पर कर है। अगर कोई सेवा नही है तो कर भी नही है।
2. राज्यों की सूची : जिनके विषय में केवल राज्य सरकारें विधान लागू करने में सक्षम है।
3. समवर्ती सूची : जिनके विषय मे केंद्र एव राज्य दोनो विधान लागू करने में सक्षम है।
संविधान की इन सूचियों में सेवाओं पर करारोपण के सम्बंध में कोई उल्लेख नही है, अतः संविधान अधिनियम 1993 द्वारा अधिसूचित एक नए अनुच्छेद 268 A द्वारा संघीय सरकार को सेवाओं पर करारोपण करने, उसके एकत्रीकरण एवं विनियोजन की शक्तियां प्राप्त हुई है। सातवीं अनुसूची की प्रथम सूची में भी संशोधन करके नई लेखा संख्या 92 B तथा 92 C अधिसूचित की गई जिससे केंद्रीय सरकार की सेवाओं पर करारोपण का विषय प्राप्त हो सका।
अतः वित्त अधिनियम 1994 की धारा 64 से 96 के द्वारा 1.7.1994 से भारत मे सेवा कर का आरम्भ हुआ। इस अधिनियम की धारा 66 सेवाओं पर कर लगाने के लिए केंद्रीय सरकार की प्राधिकृत करती है। प्रशासनिक व्यवस्था के लिए The Service Tax Rules 1994 में इस सम्बंध में अपनाई जाने वाली विभिन्न प्रक्रियाओं एव औपचारिकताओं का उल्लेख है। इसका विस्तृत विवरण इसी पुस्तक में विभिन्न अध्यायों के रूप में आगे किया गया है।
सेवा कर जाने
वित्त अधिनियम 1994 द्वारा एक दशक तक सेवाओं पर करारोपण एक असामान्य पद्धति है फिर भी अधिसूचित सेवाओं पर अप्रत्यक्ष कर के रूप में करारोपण निर्विवाद रहा है। एक पृथक Service Tax Act के अभाव में उतपन्न इस अस्पष्ट स्थिति के कारण विभिन्न उच्च न्यायालयों में सेवा कर की वैधानिकता के सम्बंध में वाद प्रस्तुत किए गए, परन्तु न्यायालयों ने सेवा कर की वैधानिकता की सदैव स्वीकार किया है। Addition Advertising vs. Union of India 98 ELT ले वाद में गुजरात उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में अन्य बातों के साथ निर्णीत किया कि सेवा कर किसी पेशे, व्यापार या रोजगार पर कर नही है वरन यह सेवाओं के प्रदान करने पर कर है। अगर कोई सेवा नही है तो कर भी नही है।
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