विभागीय खातों और शाखा खातों के बीच अंतर


हेलो दोस्तों।

आज के पोस्ट में हम विभागीय खाते और शाखा खाते के बीच अंतर के बारे में जानेंगे।


विभागीय खातों और शाखा खातों में अंतर (Distinction between Departmental Accounts and Branch Accounts)

1. लेखों का स्थान - विभागीय खातों के निर्माण एक ही स्थान पर किया जाता है, क्योकि सभी विभाग एक ही स्थान पर होते है और शाखाएं अलग अलग स्थान पर होती है अतः शाखा खाते अलग अलग स्थानों पर रखे जाते है।




Distinction between Departmental Accounts and Branch Accounts in hindi
Distinction between Departmental Accounts and Branch Accounts in hindi




2. प्रकृति - सभी विभागीय खातों के निर्माण पर एक ही लेखांकन विधि प्रयोग की जाती है और विभिन्न शाखाएं अलग अलग प्रकार से अपने खाते रखती है। कुछ शाखाएं आश्रित शाखाएं होती है जो अपूर्ण लेखे रखती है और कुछ स्वतन्त्र शाखाएं होती है जो पूर्ण लेखे रखती है। अतः शाखा खाते बनाने की विभिन्न विधियों का प्रयोग किया जाता है।




3. लाभ का ज्ञान - विभागीय खातों में विभिन्न विभागों कर लाभ हानि के साथ साथ सम्पूर्ण व्यवसाय का लाभ हानि भी ज्ञात किया जा सकता है। शाखा खातों में प्रधान कार्यालय को अपना लाभ ज्ञात करने के लिए अलग से खाते तैयार करने पड़ते है।


4. अप्रत्यक्ष व्यय - इन खातों के निर्माण में ऐसे व्ययों को जो सम्पूर्ण व्यवसाय के लिए किए जाते है, विभिन्न नियमों के आधार पर विभागों में बांटा जाता है। शाखा खातों के निर्माण में इस प्रकार की कोई समस्या नही आती है, क्योकि प्रत्येक शाखा पर अलग अलग व्यय दिए जाते है।


5. चालू खाते - एक विभाग को दूसरे विभाग के साथ चालू खाता रखने की जरूरत नही होती। शाखाओं पर पूर्ण नियंत्रण रखने के लिए प्रधान कार्यालय द्वारा शाखाओं के चालू खाते रखे जाते है।


6. खातों की समामेलन प्रविष्टियां - वर्ष के अंत मे सम्पत्तियों, दायित्वों आदि के लिए समामेलित प्रविष्टियां नही की जाती है। शाखा के तलपट की विभिन्न मदों के लिए प्रधान कार्यालय की पुस्तकों में समामेलित प्रविष्टियां की जाती है।


7. क्रय एवं विक्रय - विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के क्रय विक्रय से सम्बंधित खाते रखे जाते है। शाखा खातों में प्रायः एक ही प्रकार की वस्तुओं का क्रय विक्रय किया जाता है, इसलिए एक ही वस्तु से सम्बंधित खाते रखे जाते है।



विभागीय व्यापारिक एवं लाभ हानि खाता (Departmental Trading and Profit and Loss A/c)

जब किसी व्यवसाय में कई विभाग होते है तो प्रत्येक विभाग का पृथक से सकल लाभ व शुद्ध लाभ ज्ञात करने के लिए व्यापारिक एवं लाभ हानि खाते के डेबिट तथा क्रेडिट पक्ष में रकम वाले खाते में उतने ही खाने बना किए जाते है जितने विभाग होते है। डेबिट तथा क्रेडिट में एक एक खाना कुल योग के लिए बना लिया जाता है। विभागों के खानों से प्रत्येक विभाग के लाभ या हानि का ज्ञान होता है और कुल योग के खाने से सम्पूर्ण व्यवसाय की लाभ या हानि ज्ञात हो जाती है।



विभागीय खाते बनाने से प्राप्त होने वाले लाभ

1. प्रत्येक विभाग की लाभ हानि की तुलना दूसरे विभाग की लाभ हानि से की जा सकती है जिससे हम यह पता लगा सकते है कि कौन सा विभाग अधिक लाभ दे रहा है और कौन सा विभाग कम लाभ दे रहा है।


2. यदि विभागीय खाते अलग अलग न बनाए जाएं और पूरे व्यवसाय का इकट्ठा ही व्यापारिक एवं लाभ हानि खाता बनाया जाए तो एक विभाग की हानि दूसरे विभाग के लाभ से पूरी हो जाएगी और यह पता ही नही चलेगा कि कौन सा विभाग हानि में चल रहा है।


3. यह निर्णय लेने में सुविधा रहती है कि किस विभाग का विस्तार किया जाए और कौन सा विभाग बन्द किया जाए।


4. विभागीय प्रबन्धकों की कार्यकुशलता निर्धारित की जा सकती है और उसके अनुसार ही उन्हें वेतन, बोनस आदि देने की प्रेरणात्मक पद्धतियां लागू की जा सकती है। 

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