किराया क्रय पद्धति और किस्त भुगतान पद्धति में अंतर (Difference between Hire Purchase System and Instalment Payment System in Hindi)


हेलो दोस्तों।

आज के पोस्ट में हम किराया क्रय पद्धति और किश्त भुगतान पद्धति के बीच अंतर के बारे में समझेंगे।


किराया क्रय पद्धति और किश्त भुगतान पद्धति में अंतर (Difference between Hire Purchase System and Instalment Payment System)


1. अनुबन्ध की प्रकृति

किराया क्रय पद्धति - यह एक किराये के अनुबंध की तरह होता है जो अंतिम किश्त चुकाने के बाद विक्रय अनुबन्ध में परिवर्तित हो जाता है।

किश्त भुगतान पद्धति - यह आरम्भ से ही विक्रय अनुबन्ध होता है।




Difference between Hire Purchase System and Instalment Payment System in Hindi
Difference between Hire Purchase System and Instalment Payment System in Hindi





2. स्वामित्व का हस्तांतरण

किराया क्रय पद्धति - इसमे अंतिम किश्त चुकाने पर ही माल का स्वामित्व विक्रेता से क्रेता को हस्तांतरित होता है।

किश्त भुगतान पद्धति- इसमे आरम्भ में ही स्वामित्व का हस्तांतरण हो जाता है।



3. विक्रेता को माल वापस लेने का अधिकार

किराया क्रय पद्धति - क्रेता द्वारा किसी भी किश्त के भुगतान में त्रुटि किए जाने पर विक्रेता को माल वापस लेने का अधिकार होता है।

किश्त भुगतान पद्धति - इसमे विक्रेता को माल वापस लेने का अधिकार नही होता।



4. किश्तों को जब्त करने का अधिकार

किराया क्रय पद्धति - किसी भी किश्त के भुगतान में त्रुटि की दशा में विक्रेता चुकाई गयी किश्तों को जब्त कर सकता है।

किश्त भुगतान पद्धति - इसमे चुकाई गयी किश्तों को जब्त नही किया जा सकता। केवल बकाया किश्तों के लिए दावा किया जा सकता है।


5. माल की सामान्य मरम्मत का दायित्व

किराया क्रय पद्धति - अगर क्रेता ने माल को सावधानी से रखा है और फिर भी उसमे टूट फुट हो जाती है तो अंतिम किश्त के भुगतान के पहले तक वस्तु की मरम्मत का दायित्व विक्रेता का होता है क्योंकि माल का स्वामित्व इस अवधि में उसी का होता है। 

किश्त भुगतान पद्धति - इसमे विक्रेता पर मरम्मत आदि का कोई दायित्व नही होता।



6. जोखिम

किराया क्रय पद्धति - अंतिम किश्त के भुगतान तक माल की जोखिम विक्रेता की ही रहती है क्योंकि तब तक स्वामित्व का हस्तांतरण नही हुआ है।

किश्त भुगतान पद्धति - इसमे आरम्भ में ही स्वामित्व का हस्तांतरण हो जाता है इसलिए माल की किसी भी जोखिम के लिए क्रेता ही जिम्मेदार होता है।



7. माल वापस करने का अधिकार

किराया क्रय पद्धति - इसमे क्रेता को यह अधिकार होता है कि वह किसी भी समय माल वापस कर सकता है। ऐसी दशा में वह आगामी किश्तों के भुगतान से बच जाता है परंतु उसे भुगतान की गई किश्तें वापस पाने का कोई अधिकार नही होता।

किश्त भुगतान पद्धति - इसमे क्रेता को माल वापस करने का अधिकार नही होता है अतः वह आगामी किश्तों के भुगतान से नही बच सकता।


8. क्रेता द्वारा माल बेचना या गिरवी रखना

किराया क्रय पद्धति - इसमे अंतिम किश्त के भुगतान से पहले क्रेता को माल को बेचने या गिरवी रखने का अधिकार नही होता है।

किश्त भुगतान पद्धति - इसमे आरम्भ से ही क्रेता को माल को बेचने या गिरवी रखने का पूर्ण अधिकार होता है।



9. किरायेदार या देनदार बनना

किराया क्रय पद्धति - इसमे क्रेता, विक्रेता का देनदार नही बनता। वह केवल किरायेदार की तरह होता है।

किश्त भुगतान पद्धति - इसमे क्रेता, विक्रेता का देनदार बन जाता है।



10. उचित सुरक्षा का दायित्व

किराया क्रय पद्धति - इसमे क्रेता माल की उचित सुरक्षाके लिए उत्तरदायी होता है।

किश्त भुगतान पद्धति - इसमे क्रेता माल की उचित सुरक्षा के लिए विक्रेता के प्रति उत्तरदायी नही होता है।



11. निक्षेपग्रहीता

किराया क्रय पद्धति - इसमे क्रेता माल का स्वामी नही होता है बल्कि निक्षेपग्रहीता की तरह होता है।

किश्त भुगतान पद्धति - इसमे क्रेता माल का स्वामी निक्षेपग्रहीता नही।



किश्त भुगतान पद्धति के अंतर्गत लेखा

किश्त भुगतान पद्धति में क्रेता की पुस्तकों में प्रथम प्रविष्टि में सम्पत्ति के नकद मूल्य से सम्पत्ति खाते को तथा समस्त किश्तों में सम्मिलित कुल ब्याज की राशि से ब्याज सन्देह खाता डेबिट किया जाता है और विक्रेता के खाते को किराया क्रय मूल्य से क्रेडिट किया जाता है। प्रत्येक वर्ष के अंत मे उस वर्ष के ब्याज की राशि से ब्याज खाते को डेबिट तथा ब्याज सन्देह खाते को क्रेडिट किया जाता है। शेष सभी प्रविष्टियां किराया क्रय के अंतर्गत की गई प्रविष्टियों के समान है।

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