किश्त भुगतान पद्धति और इसकी विशेषताएं क्या है
हेलो दोस्तों।
आज के पोस्ट में हम किश्त भुगतान पद्धति और इसकी विशेषताओं के बारे में जानेंगे। चलो शरू करते हैं।
किश्त भुगतान पद्धति (Instalment Payment System)
किश्त भुगतान पद्धति, किराया क्रय पद्धति के समान ही विक्रय की ऐसी पद्धति है जिसमे भुगतान किश्तों में करना होता है परन्तु किश्त भुगतान पद्धति में विक्रय का प्रसंविदा होते ही क्रेता तुरन्त ही माल का स्वामी बन जाता है। यदि क्रेता किश्तों के भुगतान में त्रुटि करता है तो विक्रेता माल वापस नही ले सकता है बल्कि दावा करके शेष किश्तें ही वसूल कर सकता है।
किश्त भुगतान पद्धति में माल की सिपुर्दगी मिलते ही माल क्रेता की सम्पत्ति बन जाता है बल्कि भुगतान किश्तों में किया जाता है।
Instalment Payment System and Features and Asset Accrual Method in hindi |
इस पद्धति के अंतर्गत माल का स्वामित्व तुरन्त क्रेता को हस्तांतरित हो जाता है या माल पर उसका वास्तविक स्वमित्व हो जाता है, यद्यपि उसे उस पर भुगतान कई वर्षों में करना पड़ता है। यदि क्रेता द्वारा किश्त का भुगतान नही किया जाता है तो विक्रेता माल को वापस नही ले सकता है, वह केवल बाकी रकम के लिए दावा कर सकता है।
किराया क्रय पद्धति और किश्त भुगतान पद्धति यद्यपि एक ही जैसी प्रतीत होती है क्योंकि दोनों में ही भुगतान किश्तों में करना होता है परन्तु इन दोनों में बहुत अधिक अंतर है। प्रथम पद्धति तो केवल मात्र किराए को प्रसंविदा है जिसमे अंतिम किश्त का भुगतान होने पर ही यह प्रंसविदा बिक्री का रूप धारण करता है लेकिन किश्त भुगतान पद्धति शुरू से ही बिक्री प्रंसविदा है जिसमे इकट्ठा भुगतान करने के स्थान पर निर्धारित अवधि में धीरे धीरे ब्याज सहित भुगतान किया जाता है।
किश्त भुगतान पद्धति की विशेषताएं
1. विक्रय अनुबंध - यह उधार विक्रय का अनुबंध होता है।
2. भुगतान किश्तों में होना - कीमत का भुगतान किश्तों में किया जाता है। किश्तों की राशि तथा अवधि क्रेता व विक्रेता के आपसी समझौते द्वारा तय की जाती है।
3. स्वमित्व का हस्तांतरण - अनुबंध होते ही क्रेता को माल की सिपुर्दगी व स्वमित्व दोनो प्राप्त हो जाते है।
4. किश्त भुगतान में त्रुटि होने पर - क्रेता द्वारा किश्त भुगतान में त्रुटि करने पर विक्रेता को माल वापस लेने का अधिकार नही होता। वह केवल शेष किश्तों के लिए तथा ब्याज के लिए दावा कर सकता है।
5. क्रेता को माल को गिरवी रखने या बिक्री करने का अधिकार - क्रेता अनुबंध होते ही माल का स्वामित्व प्राप्त कर लेता है अतः वह सम्पूर्ण किश्तों के भुगतान से पहले भी किसी समय माल को गिरवी रख सकता है या बेच सकता है।
सम्पत्ति अर्जित विधि (Asset Accrual Method)
विक्रेता की पुस्तकों में तो हमेशा प्रथम विधि से ही लेखे किए जाते है परन्तु क्रेता अपनी पुस्तको में ' सम्पत्ति अर्जित विधि ' से भी लेखे कर सकता है। इस विधि के अनुसार सम्पत्ति खाते को प्रारम्भ में ही पूरे नकद मूल्य से डेबिट नही किया जाता है बल्कि विभिन्न किश्तों के माध्यम से जैसे जैसे नकद मूल्य भुगतान किया जाता है वैसे वैसे ही भुगतान किए गए नकद मूल्य से ही सम्पत्ति खाते को डेबिट किया जाता है।
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