किराया क्रय पद्धति के बारे में जानकारी हिंदी में


हेलो दोस्तों।

आज के पोस्ट में हम किराया क्रय पद्धति के बारे में समझेंगे।


किराया क्रय पद्धति (Meaning of Hire Purchase System)

यह माल के क्रय विक्रय की एक ऐसी पद्धति है जिसके अंतर्गत क्रय की गई सम्पत्ति के मूल्य का समस्त भुगतान नकद ने करके किश्तों में किया जाता है। क्रेता और विक्रेता आपसी समझौते से यह तय करते है कि प्रत्येक किश्त कितनी राशि की होगी किश्ते कितने कितने समय बाद दी जाएंगी। समझौते के अनुसार ये किश्तें मासिक, त्रैमासिक, छमाही या वार्षिक हो सकती है। जैसे ही विक्रय का ठहराव होता है क्रेता को माल सौंप दिया जाता है और उसे माल को प्रयोग करने का अधिकार मिल जाता है परंतु जब तक वह सम्पूर्ण किस्तों का भुगतान नही कर देता तब तक माल का स्वामित्व विक्रेता के पास ही रहता है। यदि क्रेता किसी भी क़िस्त का भुगतान नही करता तो विक्रेता को माल वापिस लेने का अधिकार रहता है और उस समय तक क्रेता द्वारा चुकाई गयी सभी किश्तों को विक्रेता माल का किराया मानकर जब्त कर लेता है। इसलिए इस पद्धति में क्रेता को किराया क्रय क्रेता और विक्रेता को किराया विक्रेता कहा जाता है।





Hire Purchase System and Characteristics in Hindi
Hire Purchase System and Characteristics in Hindi





किराया क्रय पद्धति की विशेषताएं 
(Characteristics of Hire Purchase System)


1. माल के प्रयोग का अधिकार - ठहराव पर हस्ताक्षर होते ही किराया क्रेता को माल की सुपुर्दरगी प्राप्त हो जाती है और उसे माल को प्रयोग करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।


2. किश्तों का भुगतान - अधिनियम की धारा 3 के अनुसार यह जरूरी है कि किराया क्रय का ठहराव लिखित में हो और इस पर सम्बन्धित पक्षकारों के हस्ताक्षर हो। इस ठहराव में माल का किराया क्रय मूल्य, नकद मूल्य, ठहराव शुरू होने की तिथि, किश्तों की संख्या और प्रत्येक किश्त की राशि लिखी होनी चाहिए।


3. माल का स्वमित्व - यद्यपि ठहराव होते की किराया-क्रेता को माल के प्रयोग करने का अधिकार मिल जाता है परन्तु अंतिम किश्त के भुगतान तक माल पर स्वमित्व विक्रेता का ही रहता है।


4. किराया क्रेता को कटौती के अंतर्गत माल क्रय करने का अधिकार - अधिनियम क्रेता को यह अधिकार देता है कि वह माल के स्वामी को 14 दिन का नोटिस देकर किराया क्रय पर लिए गए माल का वास्तविक क्रय कर सकता है।


5. विक्रेता को माल वापस लेने का अधिकार - किराया क्रेता द्वारा किसी भी किश्त के भुगतान में त्रुटि करने पर विक्रेता माल वापस ले सकता है क्योंकि अंतिम किश्त के भुगतान तक माल पर विक्रेता का ही स्वमित्व होता है। परन्तु अधिनियम की धारा 20 के अनुसार निम्नलिखित दशाओं में नयायालय से अनुमति प्राप्त किए बिना माल वापस लेने के अधिकार का प्रयोग नही किया जा सकता :

(अ) जबकि किराया क्रय मूल्य 15,000 ₹ से कम हो और आधे मूल्य का भुगतान किया जा चुका हो।

(ब) जबकि किराया क्रय मूल्य 15,000 ₹ से अधिक हो और इसका तीन चौथाई भुगतान किया जा चुका हो।


6. माल को अच्छी हाली में रखने का क्रेता का दायित्व - अंतिम किश्त के भुगतान से पहले विक्रेता ही माल का स्वामी होता है। क्रेता केवल निक्षेपगृहीता (bailee) की तरह माल को अपने पास रखता है अतः उसे माल की उतनी देखभाल करनी चाहिए जितनी कि एक साधारण बुद्धि वाले मनुष्य द्वारा आशा की जाती है।


7. माल की कोई भी क्षति का विक्रेता द्वारा सहन करना - यदि किराया क्रेता एक साधारण बुद्धि वाले मनुष्य की तरह वस्तु की उचित देखभाल करता है तो माल की कोई भी क्षति विक्रेता द्वारा ही सहन की जाएगी, क्योकि वही माल का स्वामी होता है और जोखिम स्वामी का ही होता है।


8. माल बेचने या गिरवी रखने का अधिकार न होना - किराया क्रेता की स्थिति निक्षेपगृहीता (bailee) की तरह होती है अतः उसे अंतिम किश्त के भुगतान से पहले माल को बेचने या गिरवी रखने का अधिकार नही होता। 

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