Machine Language के बारे में जानकारी
हेलो दोस्तों।
आज के पोस्ट में हम मशीन लैंग्वेज के बारे में जानेंगें।
Machine Language
कम्प्यूटर को विभिन्न कम्प्यूटर लैंग्वेज को समझने के लिए प्रोग्राम किया जा सकता है। लेकिन कम्प्यूटर मात्र एक ही भाषा को बिना ट्रांसलेशन प्रोग्राम के समझता है। इसे मशीन लैंग्वेज या कम्प्यूटर का मशीन कोड भी कहते है। मशीन कोड कम्प्यूटर की प्रमुख भाषा है और यह सामान्यतः बाइनरी। और 0 कि स्ट्रिंग की तरह लिखी जाती है। कम्प्यूटर को सर्किट कुछ इस तरह बना हुआ है की यह मशीन लैंग्वेज को शीघ्र ही पहचान लेता है। और उसे कम्प्यूटर को चलाने के लिए जरूरी इलेक्ट्रिक सिग्नल में बदल देता है।
किसी भी मशीन लैंग्वेज में निर्देश का दो भागों के फॉरमेट होता है। पहला भाग कमांड या क्रिया, जो कम्प्यूटर को बताता है कि क्या कार्य करना है। प्रत्येक कम्प्यूटर का प्रत्येक कार्य के लिए एक आपरेशन कोड या आपरेशन कॉड होता है। इंस्ट्रक्शन का दूसरा भाग ऑपरेंड होता है और यह कम्प्यूटर को यह बताता है कि प्रोसेस की जाने वाली इंस्ट्रक्शन और डेटा को कहां ढूंढा और संरक्षित किया जाए। अतः हर इंस्ट्रक्शन CPU के कंट्रोल यूनिट को क्या करना है यह बताती है और क्रिया में शामिल डेटा फील्ड्स की लम्बाई और स्थान के बारे में जानकारी देती है। एक आपरेशन में पढ़ना, जोड़ना, घटाना, लिखना आदि शामिल है।
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Machine Language के बारे में जानकारी |
मशीन लैंग्वेज के लाभ व सीमाएं (Advantages and Disadvantages of Machine Language)
मशीन लैंग्वेज में लिखे प्रोग्राम कम्प्यूटर द्वारा तीव्र गति से क्रियान्वित होते है। यह इसलिए क्योंकि मशीन निर्देश CPU द्वारा सीधे समझ लिए जाते है, और इसके लिए किसी ट्रांसलेशन प्रोग्राम की आवश्यकता नही होती। मशीन लैंग्वेज में लिखे गए प्रोग्राम के कई नुकसान है जो निम्नलिखित है :
1. मशीन पर निर्भर - क्योकि प्रत्येक कम्प्यूटर की आंतरिक संरचना किसी अन्य प्रकार के कम्प्यूटर से अलग होती है, जिसे कार्य करने के लिए अलग अलग इलेक्ट्रिकल सिग्नल की जरूरत होती है, इसलिए मशीन लैंग्वेज भी एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर के लिए अलग हो जाती है। यह कम्प्यूटर के वास्तविक संरचना, ALU और कंट्रोल यूनिट का कंस्ट्रक्शन और मेमोरी यूनिट के साइज के वर्ड लेंथ के द्वारा पता लगती है। अतः अगर किसी कम्प्यूटर के मशीन कोड में पारंगत होने के बाद कम्पनी दूसरे कम्प्यूटर पर कार्य करने का फैसला लेती है तो प्रोग्रामर को नई मशीन को सीखना पड़ेगा और पूर्व में लिखित सभी प्रोग्राम्स को फिर से लिखना पड़ेगा।
2. प्रोग्रामिंग में कठिनाई - कम्प्यूटर द्वारा आसानी से प्रयोग किए जाने के बावजूद भी मशीन लैंग्वेज को प्रोग्राम करना मुश्किल है। प्रोग्रामर के लिए आवश्यक है कि या तो वह मशीन के इंस्ट्रक्शन सेट में प्रयुक्त कमांड्स के लिए दर्जनों कोड नम्बर याद रखे या लगातार किसी रेफरेंस कार्ड को देखते हुए चले। प्रोग्रामर को डेटा और इंस्ट्रक्शन की स्टोरेज लोकेशन का भी ट्रैक रखना पड़ता है। मशीन लैंग्वेज प्रोग्रामर का एक्सपर्ट होना जरूरी है। कम्प्यूटर की हार्डवेयर संरचना के बारे के जानता हो।
3. Error Prone - मशीन लैंग्वेज में प्रोग्राम लिखने के लिए प्रोग्रामर को Opcodes याद रखने पड़ते है और उसे data और instructions स्टोरेज लोकेशन का भी रिकॉर्ड रखना पड़ता है। अतः उसके लिए समस्या के लॉजिक पर ध्यान केंद्रित रखना मुश्किल हो जाता है। यह अक्सर प्रोग्राम में error का कारण बनता है। अतः मशीन कोड का प्रयोग में गलतियां सामान्य बात है।
4. Difficult to Modify - मशीन लैंग्वेज प्रोग्राम्स को सुधारना मुश्किल कार्य है। errors का पता लगाने के लिए मशीन निर्देशों को चेक करना उन्हें प्रारम्भ में लिखने से भी ज्यादा मेहनत का कार्य है। उसी प्रकार से मशीन लैंग्वेज प्रोग्राम को बद में modify करना भी मुश्किल है। अनेक प्रोग्रामर्स पुराने प्रोग्राम में आवश्यक सुधार करने की अपेक्षा फिर से नया कोड लिखना ज्यादा बेहतर मानते है।
संक्षिप्त में, मशीन लैंग्वेज में प्रोग्राम लिखना इतना कठिन है और समय की खपत भी ज्यादा है, कि यह आजकल बहुत ही कम प्रयोग के लिए जाते है।
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