Factors Taken into Account while Selecting Marketable Securities in hindi


हेलो दोस्तों।

आज के पोस्ट में हम विपणन योग्य प्रतिभूतियों का चयन करते समय ध्यान रखने वाले तत्वों के बारे में जानेंगें।


विपणन योग्य प्रतिभूतियों का चयन करते समय ध्यान रखने योग्य तत्व (Factors Taken into Account while Selecting Marketable Securities)

विपणन योग्य प्रतिभूतियों का चयन करते समय निम्नलिखित तत्वों को ध्यान के रखना चाहिए -

1. सुरक्षा

2. परिपक्वता

3. विपणन योग्यता




Factors Taken into Account while Selecting Marketable Securities in hindi
Factors Taken into Account while Selecting Marketable Securities in hindi




1. सुरक्षा - रोकड़ का विनियोग ऐसी प्रतिभूतियों व सम्पत्तियों में किया जाना चाहिए जिनके मूल्य में अत्यधिक परिवर्तन की संभावना न हो तथा जिन पर मूलधन व ब्याज सही समय पर प्राप्त हो जाये।


2. परिपक्वता - यह ध्यान देने योग्य विषय है कि फर्म के पास जितनी अवधि के लिए फालतू नकदी उपलब्ध हो, उस अवधि का मिलान विक्रय योग्य प्रतिभूतियों की परिपक्वता अवधि से करना चाहिए। उदहारण के लिए अगर फर्म के पास 60 दिनों के लिए फालतू नकदी उपलब्ध है तो इस राशि को ऐसी विक्रय योग्य प्रतिभूतियों में लगाना चाहिए जिनकी परिपक्वता अवधि 60 दिनों से कम है अन्यथा फर्म को आवश्यकता के समय धन न मिलने का जोखिम उठाना पड़ेगा।


3. विपणन योग्यता - विपणन योग्यता से आशय प्रतिभूतियों को बिना किसी बाधा के शीघ्रता से रोकड़ में परिवर्तित करने से है।आधिक्य रोकड़ को प्रतिभूतियों में विनियोग करते समय यह विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि ये प्रतिभूतियां विपणन योग्य हो।




कन्वेंशनल कैश फ्लोज

कन्वेंशनल कैश फ्लोज से अभिप्राय एक व्यावसायिक या गैर व्यावसायिक संस्था में सिक्के, करेंसी नोट, चैक, बैंक ड्राफ्ट तथा बैंकों में माँग पर देय निक्षेप के अन्तर्वाह तथा बहिर्वाह से होता है।




रोकड़ प्राप्तियां

रोकड़ प्राप्तियों के अंतर्गत नकद विक्रय, देनदारों, विनियोगो से प्राप्त आय आदि से मिलने वाली रोकड़ को सम्मिलित किया जाता है।



रोकड़ भुगतान

रोकड़ भुगतान के अंतर्गत नकद क्रय, लेनदारों, व्ययों आदि के लिए भुगतान की जाने वाली रोकड़ को सम्मिलित किया जाता है।

अतः रोकड़ बजट के इन दोनों भागों के अनुमान लगाकर एक निश्चित भावी समयावधि के लिए रोकड़ के आधिक्य या रोकड़ की कमी का निर्धारण किया जा सकता है।



अनावर्ती प्रकृति के व्यय

इन व्ययों में ऐसे खर्चों को शामिल किया जाता है जो पुनरावर्त्ति प्रकृति के नही होते है अर्थात एक बार ही किए जाते है, जैसे स्थायी सम्पत्तियों का क्रय करना। अनावर्ती प्रकृति के व्ययों का प्रबन्ध करने के लिए प्रायः अधिक रोकड़ की आवश्यकता होती है। इसलिए संस्था की रोकड़ की आवश्यकताओं के निर्धारण करते समय इन व्ययों की मात्रा का अनुमान अवश्य लगा लिया जाना चाहिए। अगर संस्था में किसी वर्ष अनावर्ती व्यय अधिक किए जाने है तो उस वर्ष विशेष में अधिक रोकड़ शेष की आवश्यकता होगी जबकि इसके विपरीत कम रोकड़ शेष से भी काम चल जायेगा। 

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