Important Terms in Connection with Royalty in Hindi

हेलो दोस्तों।

आज के पोस्ट में अधिकार शुल्क से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण शब्दों के स्पष्टीकरण के बारे में जानेंगें।


अधिकार शुल्क से सम्बंधित महत्वपूर्ण शब्दों का स्पष्टीकरण (Important Terms in Connection with Royalty)

1. भू स्वामी या पट्टादाता या पट्टा देने वाला - वह व्यक्ति सम्पत्ति का स्वामी होता है जो अपनी सम्पत्ति किसी अन्य व्यक्ति को प्रयोग करने के लिए देता है। अतः इसे अधिकार शुल्क प्राप्त होता है।




Important Terms in Connection with Royalty in Hindi
Important Terms in Connection with Royalty in Hindi




2. पट्टेदार या पट्टा लेने वाला - यह व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की सम्पत्ति को प्रयोग करने का अधिकार लेता है, अतः यह बदले में अधिकार शुल्क का भुगतान करता है।


3. न्यूनतम किराया - अधिकार शुल्क उत्पादन की मात्रा या बिक्री के आधार पर निकाला जाता है। प्रायः प्रारम्भिक वर्षों में नई खान पर उत्पादन आरम्भ करने में उत्पादन कम होता है जिससे अधिकार शुल्क भी कम बनता है, अतः सम्पत्ति का स्वामी इस बात को ध्यान में रखते हुए पहले ही एक न्यूनतम राशि प्रतिवर्ष अवश्य ही पाने का अनुबन्ध कर लेता है जिससे कि प्रारम्भिक वर्ष में या बाद में भी किसी वर्ष उत्पादन कम हो या कुछ भी न हो तब भी उसे यह न्यूनतम राशि अवश्य ही मिलती रहे। इस राशि को न्यूनतम किराया कहा जाता है।


4. लघु कार्य या अल्पकार्य राशि - कम उत्पादन के कारण जब अधिकार शुल्क की राशि न्यूनतम किराये से कम होती है तो उस समय भू स्वामी को न्यूनतम किराये का ही भुगतान किया जाता है। न्यूनतम किराये की राशि अधिकार शुल्क से जितनी अधिक होती है उसे लघुकार्य कहते है।


5. लघुकार्य राशि की वसूली या अपलिखित करना - जब अधिकार शुल्क की राशि न्यूनतम किराये से कम होती है तो सम्पत्ति का स्वामी न्यूनतम किराया ही प्राप्त करता है। अतः लघुकार्य की राशि न्यूनतम किराया देने वाले के लिए एक प्रकार की हानि होती हैं प्रायः इस हानि की पूर्ति के लिए अनुबन्ध में एक शर्त यह भी सम्मिलित कर ली जाती है कि पट्टेदार भविष्य के अधिकार शुल्क की राशि से पिछले वर्षों की लघुकार्य राशि को पूरा कर सकता है। इसे लघुकार्य की वसूली कहते है। लघुकार्य राशि की वसूली के लिए निम्नलिखित में से कोई एक अनुबन्ध हो सकता है -


(i) असीमित समय मे - अगर अनुबन्ध में लघुकार्य राशि को पूरा करने के लिए कोई निश्चित समय अवधि नही दी हुई है तो लघुकार्य राशि को जितने वर्षों के लिए पट्टा लिया हुआ है उसकी सम्पूर्ण अवधि में किसी भी वर्ष में पूरा किया जा सकता हैं पट्टे के अंतिम वर्ष में न पूरी हई लघुकार्य राशि को लाभ हानि खाते में हस्तांतरित कर दिया जाएगा, उससे पहले नही। जैसे कि अगर कोई खान 10 वर्ष के लिए पट्टे पर ली गयी है और प्रश्न के उत्पादन 4 वर्ष का ही दिया हुआ है तो 4 वर्ष के बाद बची हुई लघुकार्य राशि को लाभ हानि में हस्तांतरित न करके उसका शेष आगे ले जाया जाएगा।


(ii) लघुकार्य राशि को प्रथम कुछ वर्षों में जैसे प्रथम तीन, चार या पांच वर्षों में पूरा करना - लघुकार्य की वसूली के लिए एक शर्त यह हो सकती है कि पट्टेदार प्रथम कुछ निश्चित वर्षों में लघुकार्य को पूरा कर सकता है। जैसे कि अगर कोई खान 1 जनवरी 1991 को 10 वर्ष के लिए पट्टे पर ली गयी है और अनुबन्ध के अनुसार पट्टेदार प्रथम चार वर्षों में ही लघुकार्य राशि को पूरा कर सकता है तो लघुकार्य राशि 1994 तक ही पूरी की जा सकेगी बाद में नही। अगर 1994 तक लघुकार्य राशि पूरी नही हो पाती है तो उसे 1994 में लाभ हानि खाते में डाल दिया जाएगा।


(iii) प्रतिवर्ष की लघुकार्य राशि को अगले कुछ वर्षों में पूरा करना - कई बार अनुबन्ध के अनुसार प्रत्येक वर्ष की लघुकार्य राशि को अगले कुछ निश्चित वर्षों में पूरा करने का अधिकार दिया हुआ हो सकता है। जैसे कि अगर कोई खान 1 जनवरी 1991 को 10 वर्षों के लिए पट्टे पर ली गयी है और अगर प्रश्न र यह दिया हुआ है कि प्रत्येक वर्ष की लघुकार्य राशि को अगले 3 वर्षों में वसूल किया जा सकता है तो अगर लघुकार्य राशि 1991 मे होती है तो इसे 1994 तक वसूल किया जा सकता है। इसी प्रकार 1992 की लघुकार्य राशि को 1995 तक, 1993 की लघुकार्य राशि को 1996 तक वसूल किया जा सकेगा। अगर 3 वर्षों में लघुकार्य राशि वसूल न हो सके तो उसे लाभ हानि खाते में डाल दिया जाता है। 

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