व्यावसायिक संचार और इसकी विशेषताएं के बारे में जानकारी


हेलो दोस्तों।

इस पोस्ट के अंतर्गत व्ययवसायिक संचार और इसकी विशेषताओं के बारे में बताया गया है।


व्ययवसायिक संचार (Business Communication)

हर व्यवसाय लाभ कमाने के उद्देश्य से काम करता है। यह एक आर्थिक क्रिया है जिसके अंतर्गत उत्पादन के विभिन्न तत्वों जैसे मनुष्य, मशीन, मुद्रा एवं पदार्थ को एकत्रित किया जाता है। इनकी सहायता से उत्पादन किया जाता है तथा उत्पादित वस्तुओं को लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से बाजार में बेचा जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में व्यवसायी एक क्रेता के साथ, विक्रेता के साथ, इंजीनियर के साथ, तकनीकी विशेषज्ञों के साथ, अपने कर्मचारियों के साथ तथा कई अन्य लोगों के साथ विचार विमर्श करता है, तथ्यों का आदान प्रदान करता है एवं सूचनाएं एकत्रित करता है  अतः व्ययवसायिक इकाई के द्वारा किया जाने वाला पूरा संचार व्ययवसायिक संचार कहलाता है।




व्यावसायिक संचार और इसकी विशेषताएं के बारे में जानकारी
व्यावसायिक संचार और इसकी विशेषताएं के बारे में जानकारी




व्ययवसायिक संचार का अन्तराष्ट्रीय व्यवसाय के लिए बहुत महत्व है। वैश्विक व्यवसाय में मूल देश मे स्थित मुख्यालय तथा विभिन्न देशों में स्थापित सहायक इकाइयों में लम्बी दूरी के कारण अधिकारियों में मौखिक रूप से आमने सामने बैठकर बार बार संचार नही हो सकता। अतः सूचनाओं का आदान प्रदान मुख्यतया अवैयक्तिक संचार से ही होता है।



संचार की प्रकृति या विशेषताएं (Characteristics or Nature of Communication)

1. दो या दो से अधिक व्यक्ति - संचार की पहली मुख्य विशेषता यह है कि इसमें कम से कम दो व्यक्तियों का होना जरूरी है, क्योंकि एक अकेला व्यक्ति अपने विचारों का आदान प्रदान नही कर सकता। विचारों के आदान प्रदान के लिए संचारक के साथ साथ श्रोता का होना भी जरूरी है। अतः संचार में दो या दो से अधिक व्यक्तियों का होना अनिवार्य है।


2. विचारों व सूचनाओं का आदान प्रदान - विचारों के आदान प्रदान के बिना संचार सम्भव नही है। संचार की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए दो या अधिक व्यक्तियों के बीच विचार, सन्देश, भावनाओं आदि का आदान प्रदान होना जरूरी है। सन्देशवाहन प्रक्रिया में प्रेषक श्रोता को कोई सन्देश भेजता है। यह सन्देश व्ययवसायिक इकाई द्वारा चलाई गई योजनाओं, उत्पाद के मूल्य, स्थान में परिवर्तन, इसके द्वारा बनाए गए नए उत्पाद आदि के बारे में हो सकता है।


3. शब्दों व चिन्हों का प्रयोग - संचार में शब्दों के साथ साथ चिन्हों, रंगों, संकेतों चेहरे के हाव भाव आदि का प्रयोग भी किया जाता है। विभिन्न कंपनियां विभिन्न रंगों, चिन्हों को अपने विपणन सन्देश में प्रयोग करती है। इन चिन्हों से श्रोता आसानी से उत्पाद और निर्माता को पहचान लेते है। मसाले बनाने वाली कंपनियां मसालों के अच्छे स्वाद को दर्शाने के लिए चेहरे के हावभाव को संचार के प्रयोग करती है।


4. पारस्परिक समझ - इससे हमारा अभिप्राय है कि सन्देश देने वाले और सन्देश प्राप्त करने वाले दोनो ही सन्देश को एक ही भाव मे समझें। अर्थात श्रोता सन्देश को उसी अर्थ में समझें, जिस तरह संचारक उसे समझाना चाहता है। अगर श्रोता सन्देश को किसी अन्य भाव स समझता है तो इसे प्रभावी संचार नही कहा जा सकता।


5. निरन्तर प्रक्रिया - संचार एक निरन्तर प्रक्रिया है। यह व्यापार की अन्य क्रियाओं की तरह एक नियमित क्रिया है। विपणनकर्ता अपने वर्तमान व भावी उपभोक्ताओं के साथ निरन्तर सम्पर्क बनाए रखता है, और उनकी संचार के बारे में प्रतिक्रिया प्राप्त करता है।


6. चक्रीय प्रक्रिया - संचार एक चक्रीय प्रक्रिया है। संचारक श्रोता को सन्देश देता है, तथा श्रोता अपने विचार, उत्तर, प्रतिक्रिया संचारक को देता है। प्रतिक्रिया प्राप्त करने के बाद संचारक अपने सन्देश में जरूरी समायोजन करके दोबारा सन्देश को श्रोताओं तक पहुंचाता है। यह प्रक्रिया चक्रीय प्रवाह में चलती रहती है।


7. सार्वभौमिक - संचार हर जगह विद्यमान है। यह सार्वभौमिक है। प्रत्येक व्यवसाय में, चाहे व किसी भी स्थान पर हो या किसी भी स्तर पर हो, संचार किया जाता है।

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