एक कंपनी के संचालक के दायित्व


हेलो दोस्तों आज के पोस्ट में कंपनी के संचालको के दायित्वों के बारे के बात करेंगे। 


संचालको के दायित्व (Liabilities of Directors)

संचालक कंपनी के प्रमुख अधिकारी होते है उन्हें कंपनी की और से महत्वपूर्ण अधिकार प्राप्त होते है। इन अधिकारों के उचित प्रयोग पर ही कंपनी का जीवन और भविष्य निर्भर रहता है। कंपनी अपने कारोबार में सफल होती है तथा अच्छा कार्य करती है, यह संचालको की कार्य प्रणाली पर निर्भर होता है। कंपनी के संचालन में प्रमुख अधिकारी होने के नाते वे अच्छे कार्य प्रदर्शन के लिए बाध्य होते है तथा उनके कुछ दायित्व भी होते है। जिनके लिए वे कंपनी, अंशधारियो तथा बाहरी व्यक्तियों के प्रति उत्तरदायी होते है। 

कंपनी के संचालको के दायित्व को निम्न तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है :



एक कंपनी के संचालक के दायित्व
एक कंपनी के संचालक के दायित्व



(अ) कंपनी के प्रति दायित्व

(i) अधिकारों के बाहर किये हुए कार्यो के लिए दायित्व - यदि कोई संचालक अपने अधिकारों से बाहर कोई कार्य करता हूं तो वह कंपनी के प्रति दायी होगा, जैसे कि पूंजी में से लाभांश बांटने पर संचालक कंपनी के प्रति दायी होते है क्योंकि पूंजी के से लाभ बांटना उनके अधिकार में नही है। 


कंपनी के संचालको के कर्तव्य जाने


(ii) लापरवाही के लिए दायित्व - संचालक यदि अपने कार्य को लापरवाही से करते है जिससे कंपनी को हानि होती है तो वे उस हानिपूर्ति के लिए दायी होंगे, उदहारण के लिए यदि अंतर्नियम को ध्यान में रखे बिना अपने अधिकार किसी अन्य व्यक्ति को दे देते है। यदि संचालक अपना काम पूरी सावधानी से करते है परन्तु फिर भी यदि कोई त्रुटि रह जाती है तो उसे लापरवाही नही कहा जा सकता और न ही संचालक को दायी ठहराया जा सकता है। 

(iii) कपट के लिए दायित्व - एक संचालक को जान बूझकर कपटमय प्रविवरण को प्रकाशित करता है या अन्य किसी तरह से कपट का पक्षकार है या कपट का कार्य करता है तो वह व्यक्तिगत रूप से दायी होता है। 


(ब) बाह्य व्यक्तियों के प्रति दायित्व :

(i) अधिकारों के बाहर किये हुए कार्यों के लिए दायित्व - यदि संचालक अपने अधिकारों के बाहर कार्य करते है और अन्य व्यक्तियों को ऐसा प्रकट करते है कि उनके कार्य अधिकारों के अंदर है तो वे तृतीय पक्षकार के प्रति क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी होंगे। 

(ii) एजेंट के रूप के उत्तरदायित्व - संचालक कंपनी के एजेंट होते है। यदि वे अपने अधिकारों के बाहर कोई काम करते है तो वे इसके लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होगा। जैसे विवरण पत्रिका में मिथ्या वर्णन के कारण अंशधारियो या ऋण पत्रधारको को कोई हानि होती है तो संचालक व्यक्तिगत रूप से क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी होंगे। 

(iii) न्यूनतम अभिदान के अभाव में आबंटन पर दायित्व - धारा 39 के अनुसार यदि अंशो का आबंटन विवरण पत्रिका में प्रकट की गई न्यूनतम अभिदान राशि को प्राप्त किये बिना ही कर दिया जाता है तो ऐसा आबंटन व्यर्थ होगा तथा संचालकगण इस प्रकार के आबंटन के लिए व्यक्तिगत तथा सामूहिक आधार पर उत्तरदायी होंगे। 


(स) अपराधपूर्ण दायित्व 

(i) यदि प्रविवरण में कोई मिथ्या कथन अथवा कटमय कथन है तो कंपनी का प्रत्येक संचालक जो ऐसे प्रविवरण के निर्गमन के लिए उत्तरदायी है, धारा 447 के अंतर्गत दायी होगा। 


(ii) यदि कोई संचालक लापरवाही या जान बूझकर किये गए किसी ऐसे कथन, वचन के लिए दोषी है जो झूठी, धोखा देने वाली या भ्रमित करने वाली है या बेईमानी से किसी महत्त्वपूर्ण तथ्य को छिपाता है तो वह धारा 447 के अंतर्गत कार्यवाही के लिए उत्तरदायी होगा। 


(iv) यदि कंपनी का लाभांश घोषित होने के 30 दिन के अंदर लाभांश का वितरण नही किया हो, तो दोषी संचालक के जुर्माना द्वारा दण्डित किया जा सकता है। तथा त्रुटि जारी रहने के समय तक कंपनी को 18 प्रतिशत वार्षिक दर से साधारण ब्याज का भुगतान करना पड़ेगा। 


(v) यदि कंपनी के लाभ हानि खाते तथा चिट्ठे को कंपनी की साधारण सभा मे प्रस्तुत करने में त्रुटि की जाती है तो कंपनी के संचालक ऐसी अवधि के कारावास से, जो एक वर्ष तक कि हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पचास हजार से कम का नही होगा, किंतु जो पांच लाख तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डनीय होगा। 


(vi) यदि संचालक 20 कंपनियों से अधिक का संचालक बना रहता है, तो वह ऐसे जुर्माने से, जो पांच हजार रुपये से कम का नही होगा परन्तु प्रथम दिन के बाद ऐसे प्रत्येक दिन के लिए, जिसके दौरान उल्लंघन जारी रहेगा, पच्चीस हजार रुपये तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा। 

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