पूंजीगत लाभ के अंतर्गत कर योग्य आय (Taxable Income Under the Head of capital gains)



हेलो दोस्तों।

आज के पोस्ट में हम पूंजी लाभ के अंतर्गत करयोग्य आय के बारे में बात करेंगे। चलो शुरू करते है।

पूंजी लाभ आय का चौथा शीर्षक है। इस शीर्षक में पूंजी सम्पतियों के हस्तांतरण से होने वाले लाभ या हानि का अध्यन किया जाएगा।


कर लगाने का अधिकार

गत वर्ष में किसी पूंजी सम्पति के हस्तांतरण से होने वाला लाभ पूंजी लाभ कहलाता है तथा इसी शीर्षक में कर योग्य होता है। यह उस गत वर्ष की आय माना जाता है जिसमे सम्पति का हस्तांतरण हुआ है।



Taxable Income Under the Head of capital gains
पूंजीगत लाभ के अंतर्गत करयोग्य आय




पूंजी लाभ के आवश्यक तत्व निम्न है

(A) पूंजी सम्पति

(B) पूंजी सम्पति का हस्तांतरण

(C) पूंजी लाभ की गणना।



(A) पूंजी सम्पति (Capital Assets)

पूंजी सम्पति से आशय किसी करदाता की किसी भी प्रकार की सम्पति से है, चाहे उसके व्यापार या पेशे से सम्बंधित हो या नही, प्रतिभूतियां जो ऐसे किसी विदेशी संस्थागत विनियोगकर्ता के पास है जिसमे उसने भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के अधीन बनाये गए नियमो के अनुसार विनियोग किया है।



पूंजी सम्पति चल या अचल हो सकती है। यह मूर्त या अमूर्त, स्थायी या चलायमान भी हो सकती है।


पूंजी सम्पति में भूमि, भवन, विनियोग, प्लांट, मशीनरी, फर्नीचर, व्यापार की ख्याति, पट्टेधारी के अधिकार, आभूषण, कंपनी के अंश, निर्माण करने का लाइसेंस आदि शामिल है।


पूंजी सम्पतियों के प्रकार

पूंजी सम्पतियों को निम्न दो भागों में बांटा गया है।

(1) अल्पकालीन पूंजी सम्पति

(2) दीर्घकालीन पूंजी सम्पति


अल्पकालीन पूंजी सम्पति - यह उन सम्पतियों को कहते है जो करदाता के पास हस्तान्तरण की तिथि से ठीक पहले 36 महीने से अधिक से न हो।


दीर्घकालीन पूंजी सम्पति - वह सम्पति जो करदाता के पास हस्तान्तरण की तिथि से ठीक 36 महीने से अधिक से हो, दीर्घकालीन पूंजी सम्पति कहलाती है। दीर्घकालीन पूंजी सम्पति के हस्तांतरण से होने वाला लाभ दीर्घकालीन पूंजी लाभ होता है।



(B) पूंजी सम्पति का हस्तांतरण (Transfer of capital Assets)


पूंजी सम्पति के सम्बंध में हस्तान्तरण में निम्न शामिल होंगे :

(i) सम्पति की बिक्री, विनमय तथा उसको छोड़ देना

(ii) सम्पति के सम्बंध में अधिकारों का समाप्त हो जाना

(iii) किसी कानून के अंतर्गत अनिवार्य रूप से सम्पति को ले लेना

(iv) पूंजी सम्पति के स्वामी द्वारा उसे अपने व्यापार के रहतिये के रूप में परिवर्तित करना या रहतिया मान लेना

(v) किसी जीरो कूपन बांड की परिपक्वता या मोचन

(vi) व्यापार को सीमित दायित्व वाली कंपनी में परिवर्तित करने पर

(vii) ऐसा कोई व्यवहार जिससे सम्पति हस्तान्तर अधिनियम, 1882 की धारा 53 A के अंतर्गत हुए अनुबंध की आंशिक पूर्ति करने पर अचल सम्पति के कब्जे का अधिकार मिल जाये या कब्जा बनाए रहने दिया जाए।

(viii) ऐसा कोई व्यवहार जिससे किसी अचल सम्पति का हस्तांतरण हो जाए या किसी अचल सम्पति को प्रयोग करने का अधिकार मिल जाए।



(C) पूंजी लाभ की गणना की विधि (Computation of capital gains)

इसकी गणना निम्न प्रकार से होगी :

(अ) अल्पकालीन पूंजी लाभ की गणना - अल्पकालीन पूंजी सम्पति के हस्तांतरण के फलस्वरूप प्राप्त या प्राप्य प्रतिफल के सम्पूर्ण मूल्य में से निम्न रकम घटाकर जो राशि शेष बचती है वह अल्पकालीन पूंजी लाभ कहलाती है :

(i) वे व्यय जो पूर्णतया हस्तान्तरण के सम्बंध में किये गए हो

(ii) पूंजी सम्पति को प्राप्त करने की लागत

(iii) उसमे किये गए सुधार की लागत


(ब) दीर्घकालीन पूंजी लाभ की गणना - प्रतिफल के सम्पूर्ण मूल्य में से निम्न घटाओ :

(i) सम्पति को प्राप्त करने की सूचकांक लागत

(ii) सम्पति में सुधार करने की सूचकांक लागत

(iii) सम्पति के हस्तांतरण के सम्बंध में किये गए व्यय


(स) ह्रास होने वाली सम्पतियों के सम्बंध में पूंजी लाभ की गणना जिन पर ह्रास अपलिखित मूल्य पद्धति से काटा जाता है

उपर्युक्त वर्णित दशा में पूंजी लाभ की गणना निम्न प्रकार की जायेगी :

(i) गत वर्ष के प्रथम दिन उन सभी ह्रासनिय सम्पतियों का अपलिखित मूल्य ज्ञात कीजिये जिन पर समान दर से ह्रास मिलता है। ऐसी सम्पतियाँ सम्पतियों का खण्ड कहलाती है।


(ii) यदि किसी खण्ड में गत वर्ष में कोई सम्पति खरीदी गई है तो इसका मूल्य (i) में जोड़ो


(iii) यदि इस खंड में से गत वर्ष में कोई सम्पति बेची गयी हो तो उसका शुद्ध प्रतिफल (ii) में से घटाओ


(iv) (iii) में आये शेष पर निर्धारित दर से ह्रास की गणना करो तथा (iii) में से घटाओ


(v) (iv) में शेष राशि अगले वर्ष का अपलिखित मूल्य होगा।



(द) ह्रास होने वाली सम्पति के सम्बंध में पूंजी लाभ की गणना जिन पर ह्रास की सीधी रेखा पद्धति से काटा गया है :

यदि उपर्युक्त सम्पति बेच दी जाए तो पूंजी लाभ की गणना करने के लिए धाराएं 48 तथा 49 को ध्यान में रखा जाएगा।


इन सम्पति की लागत समायोजित अपलिखित मूल्य माना जाएगा। समायोजित अपलिखित मूल्य से तातपर्य अपलिखित मूल्य में balancing charge की राशि जोड़कर या अपलिखित मूल्य में से terminal depreciation की राशि घटाकर जो राशि आती है उसे समायोजित अपलिखित मूल्य कहते है। 

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