साझेदारी फर्म का समापन


हेलो दोस्तों।

आज के पोस्ट में हम साझेदारी फर्म के समापन के बारे में जानेंगे।


साझेदारी फर्म का समापन (Dissolution of Partnership Firm)

भारतीय साझेदारी अधिनियम के अनुसार साझेदारी के समापन एव साझेदारी फर्म के समापन में अंतर होता है।


साझेदारी समापन - साझेदारी के समापन का अर्थ है पुराने साझेदारी ठहराव की सम्पत्ति और किसी साझेदार के प्रवेश, अवकाश ग्रहण के कारण फर्म का पुनः निर्माण। साझेदारी के समापन से फर्म का व्यवसाय बन्द हो भी सकता है और नही भी, क्योकि शेष साझेदार नया ठहराव करके फर्म का व्यवसाय चालू रख सकते है।

साझेदारी फर्म का समापन - इसका अर्थ है कि फर्म अपना व्यवसाय बन्द कर देती है और फर्म की समाप्ति हो जाती है। फर्न के समापन पर फर्म की सम्पत्तियों को बेचकर प्राप्त राशि से दायित्वों का भुगतान कर दिया जाता है और शेष राशि से साझेदारों का हिसाब चुकता कर दिया जाता है।




Dissolution of Partnership Firm in Hindi
Dissolution of Partnership Firm in Hindi





अतः साझेदारी के समापन पर फर्म का व्यवसाय चालू रह सकता है अर्थात यह जरूरी नही है कि साझेदारी के समापन ओर फर्म का भी समापन हो। परन्तु साझेदारी फर्म के समापन पर साझेदारी का स्वतः समापन हो जाता है।



साझेदारी का समापन 
(Dissolution of Partnership)

निम्नलिखित में से किसी भी परिस्थिति के होने पर साझेदारी का समापन मान लिया जाता है :

(i) वर्तमान साझेदारों के लाभ विभाजन अनुपात में परिवर्तित होने पर


(ii) नए साझेदार के प्रवेश पर


(iii) किसी साझेदार के अवकाश ग्रहण करने पर


(iv) किसी साझेदार के निष्कासन पर


(v) किसी साझेदार के दिवालिया होने पर


(vi) साझेदारी की अवधि समाप्त होने पर



साझेदारी फर्म का समापन 
(Dissolution of Partnership Firm)

साझेदारी फर्म के समापन की विधियां (Modes of Dissolution of Partner Firm)

(A) न्यायालय के हस्तक्षेप के बिना

1. समस्त साझेदारों के बीच आपसी समझौते द्वारा समापन।


2. अनिवार्य समापन

(i) जब फर्म के सभी साझेदार या एक को छोड़कर शेष साझेदार दिवालिया हो जाते है।

(ii) जब फर्म का व्यवसाय गैर कानूनी हो जाता है।




3. कुछ विशेष घटनाओ के घटित होने पर

(i) किसी साझेदार के दिवालिया होने पर

(ii) उस उद्देश्य के पूरा होने पर जिसके लिए फर्म स्थापित ई गयी थी

(iii) उस अवधि के पूरा होने पर जिसके लिए फर्म स्थापित की गई थी।


4. जब साझेदारी की अवधि निश्चित नही है अर्थात ऐच्छिक साझेदारी की दशा में किसी भी साझेदार द्वारा नोटिस देने पर।



(B) न्यायालय के आदेश के द्वारा

जब कोई साझेदार न्यायालय में फर्म के विघटन के लिए आवेदन देता है तो न्यायालय निम्न दशाओं में फर्म के विघटन का आदेश दे सकता है :

1. किसी साझेदार के पागल होने की दशा में।


2. प्रार्थना पत्र देने वाले साझेदार के अतिरिक्त अन्य किसी साझेदार के कर्तव्य पालन में स्थायी रूप से असमर्थ होने की दशा में।


3. प्रार्थना पत्र देने वाले साझेदार के अतिरिक्त अन्य किसी साझेदार के फर्म के अहित या दुराचरण करने की दशा में।


4. प्रार्थना पत्र देने वाले साझेदार के अतिरिक्त अन्य किसी साझेदार के जान बूझकर साझेदारी संलेख की अवहेलना के दोषी पाए जाने पर।


5. प्रार्थना पत्र देने वाले साझेदार के अतिरिक्त अन्य किसी साझेदार के अपना हिस्सा बिना अन्य साझेदारों की सहमति के हस्तांतरित किए जाने के दोषी पाए जाने की दशा में।


6. जब फर्म के द्वारा भविष्य में लाभ होने की संभावना न हो।


7. जब किसी अन्य कारण से न्यायालय द्वारा साझेदारी व्यापार का समापन न्यायसंगत समझा जाता है। 

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