Ethical communication and its importance in Hindi


हेलो दोस्तों।

आज के पोस्ट में हम नैतिक संचार और इसके महत्व के बारे में जानेंगे।


नैतिक संचार (Ethical Communication)

नैतिक संचार का अर्थ है सदैव सत्य और न्याय पर डटे रहना। जैसे यदि तुम्हारा एक सहयोगी तुम्हे किसी विषय पर परेशान करता है तो उससे बात किए बिना अपने दोस्तों से शिकायत करने अनैतिक है। तुम्हारा सहयोगी शायद तुम्हारी परेशानी नही जानता है। पीठ पीछे की गई बातचीत से कुछ भी हल नही होता, इसलिए किसी भी द्वंद्व को सुलझाने एवं रोजमर्रा के सम्बन्धों को बनाए रखने के लिए नैतिक संवाद का अभ्यास होना चाहिए। किसी को भी अपनी पीठ पीछे की गई चर्चा पसन्द नही होती।


एक व्यक्ति जो नैतिक संचार का प्रयोग करता है वह सत्यता, यथार्थता और ईमानदारी का समर्थन करता है, जिससे संचार का महत्व और स्थिरता बढ़ती है। बईमान होना केवल ज्यादा झूठ को बढ़ावा देता है, जो वास्तव में आपके व्यक्तिगत और औपचारिक सम्बन्धो को नुकसान पहुंचाता है।




नैतिक संचार का महत्व (Importance of Ethical Communication)

नीतिशास्त्र वह नैतिक सिद्धान्त है जो आचरण का मार्गदर्शन करते है और संस्था के सन्दर्भ में नैतिक व्यवहार का निहितार्थ ऐसे निर्णय है जो अंशधारियों और समाज पर उनके होने वाले प्रभाव को ध्यान में रख कर लिए जाते है।



Ethical communication and its importance and Factors in Hindi
नैतिक संचार इसका महत्व और इसको प्रभावित करने वाले तत्व



जब कोई संस्था आंतरिक रूप से संचार करती है तब वह कर्मचारियों के मूल्यों का सम्मान करती है। जब वह बाहरी रूप से संचार करती है तब वह जनता के ज्ञान को प्रभावित करती है। नैतिकशास्त्र संचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नैतिकता मनुष्य के आचरण के पूर्ण स्वरूप को दर्शाती है। नैतिकशास्त्र के मौलिक सिद्धान्त है :

1. सहकर्मी (Colleagues)

2. स्टॉफ और कर्मचारी (Staff and Workers)

3. अंशधारी (Shareholders)

4. ग्राहक (Customers)

5. समुदाय (Community)

6. सरकार (Government)

7. पर्यावरण (Environment)

8. देश और उसका हित (The Nation and its interest)


किसी भी कंपनी की सफलता के लिए संचार अत्यंत महत्व रखता है और किसी भी कंपनी के लिए सबसे मूल्यवान और चिरस्थाई पूंजी उसकी प्रतिष्ठा होती है। सही और गलत का प्रश्न तब उठता है जब हम संचार करते है। नीतिशास्त्र संचार सन्दर्भ, संस्कृति स्त्रोत और माध्यम के भीतर उत्तरदायी सोच, निर्णय लेने सम्बन्धी और सम्बन्धों या समुदाय को बनाने का मूल आधार है। नैतिकशास्त्र सम्बन्धी संचार मानवीय मूल्यों को बढ़ाता है और खुद व दूसरों को सम्मान देता है।


नैतिकशास्त्र सम्बन्धी संचार सच्चाई, न्यायपुरक उत्तरदायित्व, आत्मिक, सच्चाई के साथ साथ अपने और दूसरों के सम्मान को बढ़ाता है, जिससे मानवीय मूल्यों और महत्व को बढ़ावा मिलता है। जबकि अनैतिक संचार सभी प्रकार के संचारों की नैतिकता को बिगाड़ता है जिससे मनुष्य का हित और समाज जिसमे वह रहता है दोनों प्रभावित होते है।



नैतिक संचार (An Ethical Communication)

1. इसमे सभी सम्बन्धित सूचनाएँ शामिल है।


2. यह हर प्रकार से सही और वास्तविक है।


3. इसमे कोई छल नही है शुद्ध और विश्वसनीय है।


4. नैतिक संचार सभी प्रकार की जरूरी सूचना रखता है। यह वह भाषा है जो चालाकी से अंतर कर या बढ़ा चढ़ा कर नही बोली जाती है।


5. यह आशावादी दृष्टिकोण के पीछे किसी भी गलत सूचना की नही छिपाती।


6. यह विचारों को सच्चाई की तरह व्यक्त नही करती।


7. यह ग्राफ के आंकड़ों को स्पष्ट रूप से व्यक्त करता है।


संक्षिप्त रूप में नैतिक संचार "समाजवादी दायित्व को बनाए रखने की पूरी जानकारी है" व्यक्ति अपने मालिक, सहकर्मी और ग्राहक के साथ ईमानदार होता है। वह व्यक्तिगत लाभ के लिए दूसरों का बुरा नही करता।



नैतिक संचार को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Influencing Ethical Communication)

1. प्रत्येक संचार निर्णय के कुछ नैतिक पहलू होते है, स्वीकारना या नही - संचार के कार्य मे कुछ देशों को कठिनाई होती है, लेकिन संचारकर्ता तीन आसान तरीके अपनाते है : बोलने में, सुनने में, और चुप रहने में। प्रत्येक विकल्प नैतिक निर्णय अपनाता है।


एक सन्देश में प्रेषक दूसरों को सूचना भेजने, उन्हें प्रेरित या महसूस करवाने का काम करता है। उस चुनाव में नैतिकता का तत्व अनिवार्य रूप से शामिल होता है। कुछ सूचनाएँ जिनमे कुछ गुप्त सन्देश निहित को नही भेजनी चाहिए। ऐसा करने से कई बार कुछ लोग बाजार में इसका फायदा उठा लेते है। अपने सहकर्मी के साथ संगठन में हुए बदलाव की बातचीत करना जो कि एक तरह से अफवाह ही है, ऐसी क्रियाएं कम आपत्तिजनक मानी जाती है बजाय इसके की किसी भी आंतरिक सूचनाओ को इधर से उधर करना।


समय और संचार का तरीका नैतिक दुविधा की जटिलता को और बढ़ा देता है। क्या सच बोलना गलत है? क्या किसी को बहुत मुँहफट होना चाहिए। क्या कुछ सूचनाएँ सिर्फ आमने सामने होने पर ही देनी चाहिए ? समय, विषय और संचार के तरीके का अनिवार्य रूप से ध्यान रखते हुए लोग नैतिक निर्णय लेते है।



2. संचार की नैतिकता प्रकृति को कौन, क्या, कब और कहां के संदर्भ में सोचना चाहिए - मानलो कुछ सहकर्मी किसी परियोजना जिसमे वे काम कर रहे है इसके बारे में बातचीत कर रहे है। यह सतही तौर पर पूर्ण रूप से नैतिक है। इस तरह की बातचीत आपसी रिश्तों को और मजबूत करती है। परेशानी तब आती है जब यही बातचीत किसी भीड़ वाली जगह जैसे रेस्टोरेंट में कई जाती है या उनकी बातचीत किसी प्रतियोगी द्वारा सुन ली जाती है। जब उन कर्मचारियों से इसके बारे में पूछा जाता है तो उनका सीधा प्रश्न यह होता है "हमने ऐसा गलत क्या कह दिया? हमने किसी  प्रतियोगी से बात नही की है? प्रश्न यह नही है कि क्या कहा गया था और बात करने वाले कौन थे? नैतिक बात तो यह है कि बातचीत कहाँ हुई थी?

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