श्रवण के सिद्धांत के बारे में जानकारी


हेलो दोस्तों।

आज के पोस्ट में हम श्रवण के सिद्धांतों के बारे में जानेंगे।


श्रवण के सिद्धांत (Principles of Listening)

श्रवण के तीन मुख्य सिद्धांत है :

1. समझना (Comprehension)

2. सराहना (Appreciation)

3. मूल्यांकन (Evaluation)




Principles of Listening in Hindi
Principles of Listening in Hindi




1. समझना - प्रभावपूर्ण श्रवण का पहला सिद्धान्त समझना है। यह संवाद पर बल देता है। इसमें निम्नलिखित तत्व शामिल है

प्रभावपूर्ण श्रवण केवल वक़्ता की बात को सुनता ही नही है, इसके लोए विषय को समझना भी जरूरी है। इसके लिए हमे निम्न कार्य करने होंगे।

(i) वक़्ता के साथ दृष्टि सम्पर्क बनाना।

(ii) वक़्ता के विचारों पर ध्यान देना।


(iii) वक़्ता के शब्दों पर ध्यान देने से हम अन्य शोर शराबे से विचलित होने से बच जाते है।

(iv) अगर वक़्ता के विचारों को समझना कठिन हो तो श्रोता को और भी प्रतिबद्ध होकर सुन्ना चाहिए।

(v) वक़्ता के विचारों के क्रम को पहचानना।

(vi) हमे वक़्ता के विचारों के प्रारूप पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

(vi) वक़्ता के विचारों को अपने ज्ञान से जोड़ना चाहिए।




2. सराहना - प्रभावपूर्ण श्रवण का दूसरा सिद्धान्त सराहना एवं सकारात्मक दृष्टिकोण है। कुछ व्यक्ति केवल दोष निकालने के लिए ही सुनते है किंतु कुशल श्रोता इतने संकुचित नही होते। वास्तव में प्रभावपूर्ण श्रवण के लिए हमे वक़्ता के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।


अगर सुनने वाला पूर्वाग्रह से ग्रस्त है तो श्रवण के विपरीत परिणाम मिलते है। इससे सुनने वाला कार्यवाही में सक्रिय भाग नही ले पाता। वह केवल निष्क्रिय श्रवण करता है। यह दृष्टिकोण विचाराधीन विषय के लिए घातक सिद्ध होता है।


प्रशंसा के लिए सुनने वाले में कल्पनाशील, तनावहीन एवं सकारात्मक दृष्टिकोण होना बहुत जरूरी है। प्रशंसा श्रवण के मुख्य तत्व निम्नलिखित है :

(i) शारीरिक एवं मानसिक तनावहीनता।

(ii) आलोचनात्मक दृष्टिकोण की अपेक्षा सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना।

(iii) कल्पनाशीलता एवं सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण।




3. मूल्यांकन - मूल्यांकन के लिए आलोचनात्मक और विश्लेषणात्मक श्रवण जरूरी है, मूल्यांकन, समझ की अपेक्षा अधिक कठिन है। श्रोता को वक़्ता की तार्किक क्षमता के विश्लेषण के साथ साथ उसके तर्कों की वैद्यता को भी जांचना होता है।


मूल्यांकन के लिए हमे ध्यान रखना पड़ता है कि वक़्ता किस तरह समस्याओं का विश्लेषण करता है। उसकी प्रेरक अपील और उनका तर्क से सम्बन्ध भी जांचना पड़ता है। वक़्ता किस तरह की तर्क प्रणाली अपनाता है यह भी जांचना पड़ता है। इसके अतिरिक्त उसके द्वारा प्रयोग किए गए शब्दों पर भी ध्यान केंद्रित करना पड़ता है। वक़्ता द्वारा प्रयोग की गई सहायक सामग्री की मात्रा एवं उसकी विश्वसनीयता भी जांचनी पड़ती है।


संवाद को जांचने के लिए हमे तथ्यों के अतिरिक्त वक़्ता की भावनाओ पर भी ध्यान देना चाहिए। उचित मूल्यांकन के लिए गहन जांच बहुत जरूरी है। इस हेतु हमे इस बात पर ध्यान देना होगा कि वक़्ता के लिए उन शब्दों का क्या अर्थ है ना कि इसके कि शब्दकोष में उन शब्दों का क्या अर्थ है या हम उन शब्दों का क्या अर्थ मानते है ? हमे उसी तरह सोचने का प्रयास करना चाहिए जिस तरह वक़्ता सोच रहा है। जैसे कि वक़्ता के ज्ञान के अनुसार ही हमे उसके शब्दों का मूल्यांकन करना चाहिए। इसके लिए हमे अतिरिक्त प्रयासों की जरूरत है। जैसे हमे अपनी तर्क क्षमता को, अपनी जांच क्षमता को बढ़ाने में अतिरिक्त प्रयास करना पड़ता है।


अपनो जांच क्षमता को बढ़ाने की एक विधि यह है कि हम यह अनुभव करें कि हमारे सोचने की गति, हमारे बोलने की गति से तीन या चार गुणा अधिक होती है। अतः हमें अपने निष्कर्षों तक पहुचने में जल्दबाजी नही करनी चाहिए। जब वक़्ता अपने विचार प्रकट कर रहा हो तो हमे बीच मे रुकावट नही डालनी चाहिए। ना ही इस बारे में सोचना चाहिए कि हमे आगे क्या कहना है? इसकी अपेक्षा हमे मानसिक रूप से वक़्ता के कथन के सच्चे अर्थ को समझने का प्रयास करते रहना चाहिए। 

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