प्राप्य के बारे में जानकारी


हेलो दोस्तों।

आज के पोस्ट में हम प्राप्य और इसके उद्देश्यों के बारे के समझेंगे।


प्राप्य का अर्थ (Meaning of Receivables)

प्राप्य से आशय व्यवसाय की उन चालू सम्पत्तियो से है जो माल के उधार विक्रय के कारण उतपन्न होती है। प्राप्यों को अन्य कई नामों से भी जाना जाता है जैसे पुस्तकीय ऋण, प्राप्य बिल, विविध देनदार, प्राप्य खाते, व्यापारिक प्राप्य, व्यापारिक स्वीकृतियां व ग्राहक प्राप्य आदि। आधुनिक समय मे अत्यधिक प्रतिस्पर्धा के कारण व्यावसायिक इकाई को उधार विक्रय करना जरूरी होता जा रहा है। अतः आज के समय के प्राप्यों का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। जब तक प्राप्यों को रोकड़ के परिवर्तित न कर दिया जाए जब तक इनमें रोकड़ फंसी रहती है और रोकड़ प्राप्ति सम्बन्धी जोखिम बना रहता है। प्राप्यों के प्रबन्ध को व्यापारिक साख का प्रबन्ध कहते है।




Meaning and Definition of Receivables and Main objectives or Advantages of Receivables and Motives of Maintaining Receivable in Hindi
प्राप्य के बारे में जानकारी





परिभाषा (Definition)

प्राप्य ऐसे सम्पत्ति खातों को कहते है जो व्यवसाय के सामान्य संचालन में वस्तुओ या सेवाओ के विक्रय के परिणामस्वरूप फर्म को देय राशि का प्रतिनिधित्त्व करते हैं।




प्राप्यों के मुख्य उद्देश्य या लाभ (Main objectives or Advantages of Receivables)

एक उपक्रम द्वारा प्राप्यों का सृजन करने के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित है :

1. विक्रय को बढ़ाना - वस्तु का प्रत्येक क्रेता नकद क्रय की स्थिति में नही होता है परंतु अगर उसे उधार क्रय की सुविधा दी जाए तो वह वस्तु को जेर क्रय कर लेता है। इस प्रकार उपक्रम नकद विक्रय की अपेक्षा अगर उधार विक्रय करता है तो निश्चित रूप से विक्रय में वृद्धि होती है। अतः उपक्रम द्वारा प्राप्यों की उतपत्ति का एक मुख्य उद्देश्य एपीजे विक्रय को बढ़ाना होता है।


2. लाभ को बढ़ाना - जैसा कि ऊपर वाले पॉइंट में स्पष्ट किया गया है कि प्राप्यों की उत्पत्ति से उपक्रम के विक्रय बढ़ते है। अतः जितना विक्रय अधिक होगा लाभों की मात्रा उतनी ही अधिक हो जाएगी। अन्य शब्दों में, लाभों को बढाने के लिए भी एक उपक्रम प्राप्यों का सृजन करता है।


3. प्रतियोगिता का सामना करना - प्राप्यों के सृजन का एक अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्य प्रतियोगिता का सामना करना होता है। आज बाजार के तीव्र प्रतिस्पर्धा की स्थिति पाई जाती है और अगर प्रतियोगी उधार माल विक्रय ही करना पड़ेगा अन्यथा वस्तु के सभी ग्राहक प्रतियोगी उपक्रम से वस्तु क्रय कर लेंगे।




प्राप्य प्रबन्ध के प्रेरक (Motives of Maintaining Receivable)

प्राप्य प्रबन्ध को प्रेरित करने वाले मुख्य प्रेरक तत्व निम्नलिखित हैं :

1. विक्रय वृद्धि सम्बन्धी प्रेरक - एक कंपनी या उपक्रम प्राप्य प्रबन्ध विक्रय में वृद्धि करने की प्रेरणा से करता है। उधार क्रय करने की सुविधा मिलने से वे क्रेता भी वस्तु खरीद पाते है जिनके पास एक साथ नकद भुगतान करके क्रय करने के लिए रोकड़ नही होती है।


2. लाभ वृद्धि सम्बन्धी प्रेरक - प्राप्य प्रबन्ध करने का एक अन्य प्रेरक तत्व लाभों में वृद्धि करना भी है। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि प्राप्य प्रबन्ध से विक्रय बढ़ जाते है और विक्रय के बढ़ने से लाभों में भी वृद्धि होती है। अतः प्राप्यों का प्रबन्ध लाभ वृद्धि की प्रेरणा से भी किया जाता है।


3. प्रतियोगिता का सामना करने सम्बन्धी प्रेरक - प्राप्य प्रबन्ध का एक अन्य महत्वपूर्ण प्रेरक प्रतियोगिता का सामना करना होता है। यदि प्रतियोगी उधार विक्रय की नीति अपनाते है तो अपने उपक्रम को भी उधार विक्रय करना जरूरी हो जाता है। नही तो सभी ग्राहक प्रतियोगी उपक्रम की वस्तुओं को क्रय करना आरम्भ कर देंगे। 

Post a Comment