जीवन निर्वाह सूचकांक के बारे में जानकारी


हेलो दोस्तों।

इस पोस्ट में हम जीवन निर्वाह सूचकांक के बारे में जानेंगे।


जीवन निर्वाह सूचकांक (Cost of Living Index Number)

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक या जीवन निर्वाह सूचकांक की सहायता से एक विशेष स्थान पर, विशेष वर्ग के व्यक्तियों के एक निश्चित समय अवधि में निर्वाह व्ययों में होने वाले परिवर्तनों की मात्रा तथा परिवर्तन की दिशा सम्बन्धी जानकारी प्राप्त की जाती है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक या जीवन निर्वाह सूचकांक उपभोक्ता द्वारा जीवन व्ययों में वृद्धि या कमी को प्रकट किया जाता है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की इसी विशेषता के कारण इसे जीवन निर्वाह सूचकांक भी कहा जाता है।



Cost of Living Index Number
Cost of Living Index Number




समाज मे विभिन्न वर्गों के व्यक्ति रहते है तथा वे अपनी अपनी आवश्यकतानुसार विभिन्न वस्तुओं का उपभोग करते है। इसी कारण अलग अलग स्थान पर अलग अलग वर्ग के व्यक्तियों के लिए अलग से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की रचना करनी पड़ती है। उपभोक्ता सूचकांक की सहायता से देश की आर्थिक प्रगति के एक विशेष वर्ग के व्यक्तियों के जीवन निर्वाह पर पड़ने वाले प्रभाव को भी जाना जा सकता है।


संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से अभिप्राय एक निश्चितता समय मे कीमत स्तर में हुए परिवर्तन का एक विशेष वर्ग के उपभोक्ता के जीवन निर्वाह पर पड़ने वाले प्रभाव को जानने के लिए तैयार किए गए सूचकांक से है।




जीवन निर्वाह सूचकांक के विभिन्न उपयोग (Various Uses of Cost of Living Index Number)

जीवन निर्वाह सूचकांक या उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के विभिन्न उपयोगों का विवरण निम्नलिखित है :

1. सरकार की आर्थिक नीति निर्धारण - उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का प्रयोग सरकार विभिन्न प्रकार की आर्थिक नीतियों के निर्धारण में करती है। उदहारण के लिए न्यूनतम वेतन निर्धारण, राशनिंग, मूल्य नियंत्रण इत्यादि।


2. महंगाई भत्ता तथा मजदूरी संशोधन का निर्धारण - उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की सहायता से विभिन्न कर्मचारियों तथा श्रमिकों को भुगतान किए जाने वाले वेतन व मजदूरी के सम्बंध में महंगाई भत्ते तथा मजदूरी संशोधन आदि की राशि का निर्धारण किया जाता है।


3. फुटकर मूल्यों में परिवर्तनों के प्रभाव की जानकारी - उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की सहायता से किसी विशेष वर्ग के व्यक्तियों के द्वारा किए जाने वाले जीवन निर्वाह के व्ययों पर फुटकर मूल्यों में होने वाले परिवर्तनों के प्रभाव की जानकारी प्राप्त की जाती है।



अपस्फीति

सूचकांकों की अपस्फीति से आशय उस प्रक्रिया से है जिसमे मौद्रिक मजदूर से वास्तविक मजदूरी या मौद्रिक आय से वास्तविक आय प्राप्त करने के लिए सूचकांकों में आवश्यक समायोजन या संशोधन किए जाते है। इस प्रकार समायोजन की आवश्यकता उस समय पड़ती है जब विभिन्न वस्तुओं की कीमतों तथा जीवन यापन व्यय में परिवर्तन होते है। 

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